नाम लिखा था रेत पर,
हवा का एक झोंका आया
आ कर, उसको मिटा गया!
हवाओं पे लिख दूँ हलके हाथों से दुबारा, क्या मैं, उनका नाम ?
ओ पवन, तू ही ले जा !
यह संदेसा मेरा उन तक, पहुंचा आ !
कह देना जा कर उनसे
तुम आए हो वहीँ से जो था, उनका गाँव !
तेरी भी तो कुछ खता, अरी बावरी पवन
कुछ पल को रूक जा !
रेतों से अठखेली कर, लुटाये तुने ,
मुझ बिरहन के पैगाम !
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना !
अब , इन्तेज़ार रहेगा तेरा ,
चूड़ी को, झूमर को,पायल को और बिंदी को !
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
– लावण्या
वाह -मारुति-दूत !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
आदरणीय महावीर जी,
नमस्ते !
आपने कविता को अपने जाल घर पर स्थान दिया
और इतना सुंदर चित्र लगाया जिसे देखा और बहुत खुशी हुई :)..
आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहे ..यही कामना है ..
बहुत बहुत आभार .
स स्नेह सादर,
– लावण्या
बहुत सुंदर है यह कविता ..
सुन्दर अभिव्यक्ति है….मेघदूत की स्मृति हो आई….लावण्या जी को बधाई।
सुंदर लिखा है।
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना..
” bhut sunder or najuk abheevyktee”
regards
ख़ूबसूरत मनोभावनाओं से उमड़ी कविता!
Mahavir jee ,jaesa sunder chitra hai vaesee hee sunder kavita bhee.
Aapkee kalpanaa bhee Lavanya jee kee kalpanaa se kam nahin hai.
Aap dono ne kamaal kar dikhaayaa hai.kavita mein gayta hai.Geet se
kam nahin.Main to kaee baar isko gungunaakar ras le chukaa hoon.
Ek sashakt rachna padhvaane ke liye aapko dheron dhanyawaad.
Lavanya Shah ki kavita aur aapka blog dono hi dekhe aaj pahli baar aur dono bahut acche lage.
Shail Agrawal
भावनाओं को शब्द देने में लावण्य जी कुशल हैंं और इस रचना में भी यह स्पष्ट दॄष्टिगोचर होता है. आपको और लावण्यजी को साधुवाद
लावण्या दी की भावपूर्ण कविता पढ़ कर आनंद आ गया…साधुवाद आप को उनकी रचना प्रकाशित कर हम सब तक पहुँचने पर…
नीरज
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
बहुत सुंदर
मजा आया पढ़कर …
bhaav puurn kavita..
lavnya ji ko badhayee aur aap ko bhi dhnywaad.
लावण्या जी, आपका ‘महावीर’ ब्लॉग पर हार्दिक अभिनंदन।
आभार।
महावीर शर्मा
लावण्या जी को ढ़ेरों बधाई इस मोहक मनोरम रचना पर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।बधाई।
सुंदर कविता , बधाई
सादर