नाम लिखा था रेत पर,
हवा का एक झोंका आया
आ कर, उसको मिटा गया!
हवाओं पे लिख दूँ हलके हाथों से दुबारा, क्या मैं, उनका नाम ?
ओ पवन, तू ही ले जा !
यह संदेसा मेरा उन तक, पहुंचा आ !
कह देना जा कर उनसे
तुम आए हो वहीँ से जो था, उनका गाँव !
तेरी भी तो कुछ खता, अरी बावरी पवन
कुछ पल को रूक जा !
रेतों से अठखेली कर, लुटाये तुने ,
मुझ बिरहन के पैगाम !
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना !
अब , इन्तेज़ार रहेगा तेरा ,
चूड़ी को, झूमर को,पायल को और बिंदी को !
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
– लावण्या