
प्राण शर्मा जी की एक ग़ज़लः
परखचे अपने उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
आपबीती को सुनाना दोस्तो आसां नहीं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
देखने में लगता है यह हल्का फुल्का सा मगर
बोझ जीवन का उठाना दोस्तों आसां नहीं
रूठी दादी को मनाना माना कि आसान है
रूठे पोते को मनाना दोस्तो आसां नहीं
तुम भले ही मुस्कुराओ साथ बच्चों के मगर
बच्चों जैसा मुस्कुराना दोस्तो आसां नहीं
दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक से
दोस्ती सब से निभाना दोस्तो आसां नहीं
आंधी के जैसे बहो या बिजली के जैसे गिरो
होश हर इक के उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
कोई पथरीली जमीं होती तो उग आती मगर
घास बालू में उगाना दोस्तो आसां नहीं
एक तो है तेज पानी और उस पर बारिशें
नाव कागज़ की बहाना दोस्तो आसां नहीं
आदमी बनना है तो कुछ ख़ूबियां पैदा करो
आदमी ख़ुद को बनाना दोस्तों आसां नहीं
प्राण शर्मा
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Posted by महावीर on नवम्बर 21, 2008 at 12:55 अपराह्न
Filed under कविता, ग़ज़ल/नज़्म, प्राण शर्मा  |
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रूठी दादी को मनाना माना कि आसान है
रूठे पोते को मनाना दोस्तो आसां नहीं
बहुत उम्दा बात!
कोई पथरीली जमीं होती तो उग आती मगर
घास बालू में उगाना दोस्तो आसां नहीं
बहोत ही उम्दा लिखा है अपने बहोत खूब ,,
ढेरो बधाई आपको ..
प्रिय महावीर जी,
आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आना हुआ. काफी समय बिताया. कई रचनायें देखीं, कई पढीं. अच्छा लगा.
बुकमार्क कर लिया है.
प्राण शर्मा जी की इस गजल के लिये विशेष आभार !!
सस्नेह — शास्त्री
दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक से
दोस्ती सब से निभाना दोस्तो आसां नहीं
bahut khuub..
जनाबे प्राण साहिब
आपकी खुबसूरत ग़ज़ल देखी
आपकी तमाम ग़ज़लें जहाँ कला पक्ष से
जीवन और सादगी की प्रतिमा हैं वहां विषय पक्ष
से इन्सानी ज़मीर की आवाज़ भी हैं सादा शब्दों में
बे -हद गंभीर बात कहना तो कोई आपसे सीखे
आपकी रचनाएँ इन्सानी रिश्तों का दर्पण है
हिन्दी ग़ज़ल को आपसे बहुत उम्मीद है
आपके लिए मुलाहिज़ा फरमाएं
वोह चार चाँद लगाता जिधर भी जाता था
जिसे समझते थे ग़ालिब वोह मेरे निकला था
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
रूठी दादी को मनाना माना कि आसान है
रूठे पोते को मनाना दोस्तो आसां नहीं
तुम भले ही मुस्कुराओ साथ बच्चों के मगर
बच्चों जैसा मुस्कुराना दोस्तो आसां नहीं
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ये शेर दिलको छू गये और मुस्कुराहट दे गये 🙂
प्राण साहब क्या खूब लिखते हैँ आप
और आदरणीय महावीरजी का शुक्रिया
जो एक से बढकर एक नायाब नगीनोँ को सँजो रहे हैँ
और जाल घर को आकर्षक बनाये हुए हैँ –
बहुत शुभकामनाएँ आप दोनोँ को !
बहुत स्नेह सहित,
– लावण्या
दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक से
दोस्ती सब से निभाना दोस्तो आसां नहीं
आंधी के जैसे बहो या बिजली के जैसे गिरो
होश हर इक के उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
कोई पथरीली जमीं होती तो उग आती मगर
घास बालू में उगाना दोस्तो आसां नहीं
ruthe pote ko manana aasan nahi,bahut sundar gazal
वर्ग अन्तराल को बखूबे रेखांकित किया है।
अच्छी गज़ल।
शर्मा जी को बधाई।
वर्ग अन्तराल को बखूबी रेखांकित किया है।
अच्छी गज़ल।
शर्मा जी को बधाई।
रूठी दादी को मनाना माना कि आसान है
रूठे पोते को मनाना दोस्तो आसां नहीं
….क्या खूब है…प्राण साब के तो हम पुराने फ़ैन हैं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
रूठी दादी को मनाना माना कि आसान है
रूठे पोते को मनाना दोस्तो आसां नहीं
आदमी बनना है तो कुछ ख़ूबियां पैदा करो
आदमी ख़ुद को बनाना दोस्तों आसां नहीं
गुरुदेव की ऐसी अनोखी ग़ज़ल को पढ़ कर क्या कहा जा सकता है…सिर्फ़ नत मस्तक ही हुआ जा जासकता है….और वो मैं हो रहा हूँ….शुक्रिया महावीर जी प्राण साहेब की इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़वाने का…
नीरज
कोई पथरीली जमीं होती तो उग आती मगर
घास बालू में उगाना दोस्तो आसां नहीं
” bhut sunder abhevykti, jindge ke sach ko sarthk krtee rachna..”
regards
हर शे’र जैसे एक-एक मोती है जड़ा हुआ।
आभार और बधाई।
डा. रमा द्विवेदीsaid….
बहुत खास अभिव्यक्ति है…हर शेर बेहतरीन है। प्राण साहब को बधाई।
आदमी बनना है तो कुछ ख़ूबियां पैदा करो
आदमी ख़ुद को बनाना दोस्तों आसां नहीं
bahut umda
आदमी बनना है तो कुछ ख़ूबियां पैदा करो
आदमी ख़ुद को बनाना दोस्तों आसां नहीं……
ek utkrisht ghazal
बहुत खूब!
महावीर जी,
आप के ब्लाग पर पहली बार आई हूँ,
बहुत कुछ पढ़ा–प्राण शर्मा जी की ग़ज़लों के
एक-एक शे’र ने बहुत कुछ कह दिया है.
मैं महावीर जी और प्राण जी दोनों की आभारी हूँ
जो इतनी सुंदर ग़ज़ल पढ़ने को दी.
बहुत-बहुत बधाई,
सस्नेह,
सुधा ओम ढींगरा
बहुत ही खूबसूरत भाव बोध लिये प्राण जी की यह गज़ल पढ़वाने के लिये महावीर जी साधुवाद स्वीकारें
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
तुम भले ही मुस्कुराओ साथ बच्चों के मगर
बच्चों जैसा मुस्कुराना दोस्तो आसां नहीं
दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक से
दोस्ती सब से निभाना दोस्तो आसां नहीं
शब्दों के फूल तो लाती रहती हैं गज़लें
मगर बहारें भी छा जाएँ ये आसां नहीं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
तुम भले ही मुस्कुराओ साथ बच्चों के मगर
बच्चों जैसा मुस्कुराना दोस्तो आसां नहीं
दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक से
दोस्ती सब से निभाना दोस्तो आसां नहीं
शब्दों के फूल तो लाती रहती हैं गज़लें
यूं बहारों का भी छा जाना दोस्तो आसां नहीं
आदरणीय शर्मा जी
“महावीर” पर इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल और अन्य रचनाओं के प्रकाशन में आपकी अनुमति
के लिए मैं आपका आभारी हूं। आपकी रचनाओं से नव-लेखकों के लिए बहुत कुछ
सीखने को मिलता है और मिलता रहा है।
आशा है आगे भी आप इसी तरह अपनी रचनाओं से हमें और हमारे पाठकों का
मार्गदर्शन करते रहेंगे।
महावीर शर्मा
प्राण शर्मा जी,
आपकी गज़ल अभी पढ़ी। हर शेर बहुत ख़ूबसूरत है, सादा मगर गहरा। ख़ास कर ये शेर बहुत अच्छा लगा-
एक तो है तेज पानी और उस पर बारिशें
नाव कागज़ की बहाना दोस्तो आसां नहीं
सादर
मानोशी
bahut prabhvshali gazal hai. abhivyakti prakhar hai.
हर पंक्ति अच्छी लगी ,एक एक पंक्ति में बहुत कुछ है . मजा आ गया पढ़कर ..
अभी इसे कई बार और पढूंगा ..बहुत बढ़िया ..
इतने सुंदर भाव लिखना प्राण जी आसाँ नही..! हर पंक्ति अच्छी….! बधाई..!
आदरणीय प्रणाम,
सर्वप्रथम तो इतनी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए साधुवाद. इसके बाद मेरी तरफ़ से क्षमा-प्रार्थना स्वीकार करें जी, जो मैं आप जैसे आलातरीन बुज़ुर्गवार से अब तक दूर था. बहुत मार्गदर्शन मिलेगा सर जी आपसे हम ब्लॉगर्स को. प्राण जी को हमारा सविनय नमन निवेदन.
मैंने गूगल ब्लागर पर एक चिट्रठा बनया है परन्तु यदि उसके कुछ भी वर्ड सर्च करते है तो वह सर्च रिजल्ट में नहीं आता जबकि आप लोगों का चिट्रठा सर्च रिजल्ट में आ जाता है मैं ऐसा क्या करू जिससे मेरा चिट्रठा भी सर्च रिजल्ट में आए कपया जल्दी इमेल कर बताए मेरा ईमेल और चिट्रठा इस प्रकार है http://www.money-pradeep.blogspot.com .
email :- pradeep.bakdeeya@gmail.com
वाह, हर इक शेर पर दाद कबूल करें.
आदमी बनना है तो कुछ ख़ूबियां पैदा करो
आदमी ख़ुद को बनाना दोस्तों आसां नहीं
कितनी बेहद गहराई है इस बात में. काश, सब समझ पाते कि आदमी संज्ञा नहीं, एक विशेषण है.
आभार इस उम्दा गज़ल के लिए प्राण जी का और महावीर जी का साधुवाद.
बहुत सुन्दर गजल। अन्य रचनाकारों की रचनाएं पढवाने का शुक्रिया।
परखचे अपने उड़ाना दोस्तो आसां नहीं
आपबीती को सुनाना दोस्तो आसां नहीं
ख़ूबियां अपनी गिनाते तुम रहो यूं ही सभी
ख़ामियां अपनी गिनाना दोस्तो आसां नहीं
–बहुत ख़ूब लिखा है. आदाब.
–महेश चन्द्र गुप्त “ख़लिश”