।।लघुकथा ।।
जन नायक
प्राण शर्मा
अपने आपको प्रतिष्ठित समझने वाले गुणेन्द्र प्रसाद के मन में एक अजीब-सी लालसा जागी, यदि बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, मोहन दास कर्म चंद गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, भगत सिंह आदि को क्रमशः लोकमान्य महामना, महात्मा, लौहपुरुष, चाचा, नेता जी, शेरे पंजाब और शहीदे आज़म की उपाधियों से विभूषित किया जा सकता है तो उन्हें क्यों नहीं? तीस सालों के सामाजिक जीवन में उन्होंने जन-सेवा की है, कई संस्थाओं को धनराशि दी है, भले ही सच्चाई के रास्ते पर वे कभी नहीं चले हैं। आख़िर वे क्या करते ! उनका पेशा ही झूठ को सच और सच को झूठ करने वाला है यानी वकालत का है।
विचार-विमर्श के लिए गुणेन्द्र प्रसाद जी ने अपने कर्मचारियों को बुलाया। निश्चित हुआ कि गुणेन्द्र प्रसाद जी को ‘जन नायक’ की उपाधि से विभूषित किया जाना चाहिए। इसके लिए रविवार को एक विशाल जनसभा के आयोजन का फैसला किया गया। प्रचार-प्रसार का बिगुल बज उठा। घोषणा की गयी की जनसभा में हर आनेवाले को पाँच सौ ग्राम का शुद्ध खोये के लड्डुओं का डिब्बा दिया जायेगा ।
छोटा-बड़ा हर कोई जनसभा में पहुँचा। गुणेन्द्र प्रसाद की ख़ुशी का पारावार नहीं रहा जब उन्हें “जननायक” सर्वसम्मति से चुना गया। ये अलग बात है की आजतक किसी ने भी उन्हें “जन नायक” की उपाधि से संबोधित नहीं किया है।
प्राण शर्मा
***********************************
।। लघुकथा ।।
मुखौटे
आचार्य संजीव ‘सलिल’
मेले में बच्चे मचल गए- ‘पापा! हमें मुखौटे चाहिए, खरीद दीजिए.’ हम घूमते हुए मुखौटों की दुकान पर पहुंचे. मैंने देखा दुकान पर जानवरों, राक्षसों, जोकरों आदि के ही मुखौटे थे. मैंने दुकानदार से पूछा- ‘क्यों भाई! आप राम, कृष्ण, ईसा, पैगम्बर, बुद्ध, राधा, मीरा, गांधी आदि के मुखौटे क्यों नहीं बेचते?’
‘कैसे बेचूं? राम की मर्यादा, कृष्ण का चातुर्य, ईसा की क्षमा, पैगम्बर की दया, बुद्ध की करुणा, राधा का समर्पण, मीरा का प्रेम, गाँधी की दृष्टि कहीं देखने को मिले तभी तो मुखौटों पर अंकित कर पाऊँगा. आज-कल आदमी के चेहरे पर जो गुस्सा, धूर्तता, स्वार्थ, हिंसा, घृणा और बदले की भावना देखता हूँ उसे अंकित कराने पर तो मुखौटा जानवर या राक्षस का ही बनता है. आपने कहीं वे दैवीय गुण देखे हों तो बताएं ताकि मैं भी देखकर मुखौटों पर अंकित कर सकूं.’ -दुकानदार बोला.
aadarneeya praan sharmaaji,
saadar vande !
nat mastak hoon aapki laghukatha JANNAYAK ke samaksh
bahut kuchh
balki sab kuchh kah diya aapne thode se aur saada shabdon me………………
aapko naman kartaa hoon
dhnyavaad !
आचार्य जी
बहुत ही श्रेष्ठ लघुकथा है। वैसे इंसान तो आज मुखौटे लगाकर ही घूम रहा है। वास्तविकता का पता ही नहीं चलता।
बहुत ही सुन्दर रचनाएं, आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आदरणीय शर्मा जी और सलिल जी,
दोनों ही लघुकथाएं सामाजिक विद्रूपताओं को व्याख्यायित करती हैं.
अच्छी रचनाओं के लिए आप दोनों को मेरी हार्दिक बधाई.
चन्देल
प्राण जी ने कहानी में मानों उन चरित्रों को बेनकाब कर दिया है जो बिना कुछ किये ही नाम और यश चाहते हैं । आजकल ये नयी प्रथा प्रारंभ हो गई है । प्राण साहब वहां सात समंदर पार रह कर भी अपने देश पर और यहां के चरित्रों पर पैनी नजर रखे हुए हैं । ये उनके जैसे माहिर फनकार के ही बूते की बात है । उनकी लघुकथाएं भी उनकी ग़ज़लों की तरह हैं, अद्भुत ।
Adarneey acharya ji
aap ki laghukatha mein benaqaab karne ki kshamta hai. shabdon ke tevar baat karte hain
Devi nangrani
तीस सालों के सामाजिक जीवन में उन्होंने जन-सेवा की है, कई संस्थाओं को धनराशि दी है, भले ही सच्चाई के रास्ते पर वे कभी नहीं चले हैं। आख़िर वे क्या करते ! उनका पेशा ही झूठ को सच और सच को झूठ करने वाला है यानी वकालत का है।
गुणेन्द्र प्रसाद की ख़ुशी का पारावार नहीं रहा जब उन्हें “जननायक” सर्वसम्मति से चुना गया। ये अलग बात है की आजतक किसी ने भी उन्हें “जन नायक” की उपाधि से संबोधित नहीं किया है।
Bahut hi anokha mod diya hai katha ke antarman ko Pranji.
Devi nnangrani
आदरणीय प्राण भाई साहब व आचार्य जी की लघु कथाओं ने नये युग के मानव को बेनकाब किया है और फिर सिध्ध किया है के आज का युग
बनावटीपन का युग है जहां मानवीय मूल्य , बिसराकर , अपना दंभ और जूठा यश अर्जित करने की मनोवृत्ति पनप रही है – ऐसे प्रयास सराहनीय हैं और आदरणीय महावीर जी तथा दोनों वरिष्ठ रचनाकार बधाई के पात्र हैं –
सादर नमस्ते
– लावण्या
प्राण शर्मा जी की लघु कथा मे आज केुन लोगों का चेहरा छुपा है जो आत्म शलाघा के लिये सदा लालायित रहते हैं सिर्फ दिखावा करते हैं कि वो लोगों मे अपनी पहचान बना सके वर्ना अच्छे व्यक्ति को तो पुरुस्कार की जरूरत नहीं होती पुरुस्कार उन्हें खुद ढूँढ लेता है बहुत सुन्दर रचना और सलिल जी कि रचना आज के इन्सान पर एक सटीक प्रहार है लाजवाब रचनाओं के लिये बधाई और आभार्
सभी पाठकों और टिप्पणीकारों को धन्यवाद. प्राण जी जैसे दिग्गज के साथ एक पृष्ठ पर छापना मेरे जैसे नौसिखिया के लिए उपलब्धि है. यह सौभाग्य देने के लिए महावीर जी का आभारी हूँ.
laghukathao me bahut dam hai,bahut bahut badhai
r.k.khareakela.united bank,m,p.nagar,278,zone-2,bhopal,09893683285
bandhu!
nmn.
divyanarmada.blogspot.com se juden, likhen, mitron ko refer karen