जब वतन छोड़ा……
महावीर शर्मा
जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए
खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए
बचपना भी याद है जब माँ सुलाती थी मुझे
आज सपनों में उसी की गोद में हम सो गए
गुल्लि डंडा खेलते, खिड़की किसी की टूटती
भागने का वो नज़ारा, पांव मोटर हो गए
दोस्त लड़ते जब कभी तो फिर मनाते प्यार से
आज क्यूं उन के बिना ये चश्म पुरनम हो गए!
किस कदर तारीक है दुनिया मिरी उन के बिना
दर्द फ़ुरक़त का लिए हम दिल ही दिल में रो गए
था मिरा प्यारा घरौंदा, ताज से कुछ कम न था
गिरती दीवारों में यादों के ख़ज़ाने खो गए
हर तरफ़ ही शोर है, ये महफ़िले-शेरो-सुखन
अजनबी सी भीड़ में फिर भी अकेले हो गए
महावीर शर्मा
A Big Hello From India Sir,
बड़े ही संजीदा और कोलाहल संयुक्त हृदय से देश को जो पुकारा व स्मरण किया है वह काबिले तारीफ़ है,सच में…मैंने तो यह महसूस ही नहीं किया है कि मातृभूमि से विलग रहकर कैसे अकुलाता होगा मन…लेकिन अपनी माँ से अलग रहने के कारणत: थोड़ी संवेदना जरुर उभरती हैं,यहाँ मेरा तारीफ़ करना मायने नहीं रखता किंतु–शब्द तो बहुतों निकलते हैं इन चक्षुओं के पास से मगर थोड़े ही हैं, जो अपने करीब ला पाते हैं…Simply Great.
महावीर जी
नमस्कार
आपाकी गज़ल हमें शब्दों के परों पर फिर वतन के हर दौर की सैर आपकी नज़र से करा रही है, हकीकत से वाकिफ होना होना एक मौका है, पर हकीकत से गुज़रना एक अनुभव. इसी अनुभव को सुन्हरे शब्दों में प्रस्तुत का पाना बस आपके बस की बात ही है.बहूत सुंदर मतले से आगाज़ हुआ है इस गज़ल का, और हर शेर एक दास्तां बयां कर रहा है.
जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए
आपकी नज़र यह शेर इसी कड़ी का ए क हिस्सा भी है.
भीड़ में चहरा शनासा तो न था इक भी मगर
रस्मे दुनिया में न जाने आज फिर क्यों खो गए.
सादर
देवी
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sajshirazi.blogspot.com/
[…] महावीर शर्मा जी की कुछ पंकियां याद आ रही हैं की जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ? वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए वतन से दूर वतन की बातें करने और सुनने का मज़ा ही कुछ और हैं. मेरा सभी मेम्बेर्स से अनुरोध है की जो भी लिखें वो जौनपुर ब्लोगर के लिए ही लिखें. एक ही समय मैं कोई पोस्ट यहाँ भी और दूसरे ब्लॉग पे भी एक साथ ना डालें. इस ब्लॉग मैं जिस किसी को भी आना है उसके लिए पयाम ए मुहब्बत और वतन की धरती से प्रेम आवश्यक है. यहाँ ना कोई पद है और कोई बड़ा ना छोटा. सबके अधिकार बराबर के हैं और आशा करता हूँ की सभी इस को अपना ब्लॉग समझते हुए अपने लेख़ और कविताएँ पोस्ट करेंगे. http://www.jaunpurcity.in 0.000000 0.000000 […]
[…] महावीर शर्मा जी की कुछ पंकियां याद आ रही हैं की जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ? वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए वतन से दूर वतन की बातें करने और सुनने का मज़ा ही कुछ और हैं. मेरा सभी मेम्बेर्स से अनुरोध है की जो भी लिखें वो जौनपुर ब्लोगर के लिए ही लिखें. एक ही समय मैं कोई पोस्ट यहाँ भी और दूसरे ब्लॉग पे भी एक साथ ना डालें. इस ब्लॉग मैं जिस किसी को भी आना है उसके लिए पयाम ए मुहब्बत और वतन की धरती से प्रेम आवश्यक है. यहाँ ना कोई पद है और कोई बड़ा ना छोटा. सबके अधिकार बराबर के हैं और आशा करता हूँ की सभी इस को अपना ब्लॉग समझते हुए अपने लेख़ और कविताएँ पोस्ट करेंगे. http://www.jaunpurcity.in […]