Archive for the ‘हास्य-रस/व्यंग्य’ Category

पति या कुत्ता

नवम्बर 11, 2008

tripathy-neerajनीरज त्रिपाठी

पति या कुत्ता
नीरज त्रिपाठी

उस दिन शर्मा जी जब घर लौटे तो उन्होने देखा कि पूरे घर में सजावट थी और बड़ा सा केक भी रखा था, शर्मा जी के कुछ सोचने से पहले ही उनकी पत्नी नीलू जी ने अचानक प्रकट होते हुए कहा ‘…सरप्राइज।’ शर्मा जी ने सोचा कि उन्हें अपना जन्मदिन याद नहीं लेकिन नीलू को याद है। इससे पहले कि उनकी आंखों से निकले आंसू फर्श पर बिछे कालीन को गीला करते नीलू जी बोलीं, ‘पता है आज जोजो का जन्मदिन है, जोजो नीलू जी का लाड़्ला कुत्ता।’

शर्मा जी को तो जैसे किसी ने बीसवीं मन्जिल से धक्का दे दिया हो, क्योंकि उन्हें अब याद आ चुका था कि उनका जन्मदिन पिछले महीने था और वो वैसे ही निकल गया था, जैसे सरकारी दफ्तर में मेज के नीचे से काला धन जिसका किसी को पता नहीं चलता कि कब कहां से आया और कहां गया। शर्मा जी भले ही जोजो के जन्मदिन की तैयारियों से अनभिज्ञ हों उनके क्रेडिट कार्ड ने नीलू जी का भरपूर सहयोग किया।

शर्मा जी अब अपने आंगन में बच्चों की किलकारियां सुनना चाहते थे लेकिन नीलू जी के विचार इस मामले में (और मामलों की तरह) शर्मा जी से अलग थे, वो कहतीं,

‘अगर बच्चों की जिम्मेदारी हम पर आएगी तो हम जोजो का ध्यान अच्छे से नहीं रख पाएंगे।

‘शर्मा जी भविष्य के बारे में सोचकर सिहर जाते, जब उनके मित्र अपने बच्चों की पापा पापा की आवाज सुनकर हर्षाएंगे और शर्मा जी को जोजो की पीं पीं पीं पीं सुनकर सन्तोष करना पड़ेगा।

शर्मा जी अगर भूल से जोजो को कुत्ता कह देते तो उनकी सजा थी तब तक जोजो से सॉरी बोलते रहना जब तक वो उन्हें माफ करके खुशी से अपनी पूंछ न हिला दे। शर्मा जी पर जोजो ने जो जो सितम ढाए, शर्मा जी सब सहते गए। नीलू जी जब शर्मा जी से नाराज होतीं तो उन्हें कोसतीं कि मेरे साथ रहते रहते जोजो की पूंछ सीधी हो गयी लेकिन तुम कभी नहीं सुधरोगे।

जब नीलू जी जोजो के साथ चलतीं तो लोग कहते कितना भाग्यशाली कुत्ता है, और जब वो शर्मा जी के साथ चलतीं तो लोग कहते कितना अभागा पति है। कभी कभी तो शर्मा जी का ये हाल देख मोहल्ले वालों की हंसी वैसे ही फूट पड़ती जैसे खुले मेनहोल से बारिश का पानी उफन कर निकलता है।

एक तो मोहल्ले वालों के ताने और दूसरा नीलू जी का उनके प्रति सौतेला व्यवहार, शर्मा जी क्षुब्ध होकर बोल पड़े या तो इस घर में जोजो रहेगा या मैं! नीलू जी बोलीं कि उन्हें सोंचने के लिए थोड़ा समय चाहिए और फिर गहन विचार मन्थन के बाद उन्होंने फैसला कर लिया।

शर्मा जी का पति वाला रिश्ता कुत्ते पर भारी पड़ा और वो भार उठाने में नीलू जी असमर्थ थीं, नीलू जी ने जोजो को अपने पास रखने का फैसला किया।

शर्मा जी आजकल एक किराए के मकान में रहते हैं।

नीरज त्रिपाठी

ठहरो अभी बताऊंगा

सितम्बर 11, 2007

(सन् 1960 के पन्नों से)

इस दुनिया में आ कर साथी, देखो मैं ने सब कुछ पाया
पर एक चीज़ अब तक ना मिली ठहरो अभी बताऊंगा

जाड़े के ठण्डे मौसम में जब शीत पवन चल जाता है
सच कहता हूं यह बन्दा तो सर्दी में रोज़ नहाता है
एक थाल सजा, दीपक रख कर, लोटे में ले ठण्डा पानी
शिव राम कृष्ण हनुमान रटूं, निकला करती कम्पित वाणी
फिर जा कर प्रतिदिन मन्दिर में बस यही प्रार्थना करता हूं
भगवन सुनो विनती मेरी, मैं बिन मारे ही मरता हूं
सप्ताह में छः दिन व्रत रख के, फल दूध दही मीठा खाया

पर एक चीज़ अब तक ना मिली ठहरो अभी बताऊंगा

डिग्री एम.ए. तक की ले कर बी.टी. की पूंछ लगाई है
अध्यापक बन, ट्यूशन से भी, कर ली बहुत कमाई है
धोती कुर्ते को दे तलाक़ मैं ने पतलून सिलाई है
सिलकन कमीज़ और कोट गरम, पहनी नीली नकटाई है
पैरिस से सैण्ट मंगा कर सब वस्त्रों पर छिड़का करता हूं
मॉडर्न बूट पहन पैरों को धीरे धीरे धरता हूँ
जीवित माँ बाप अभी तक हैं पर मूंछों का भी किया सफ़ाया

पर एक चीज़ अब तक ना मिली ठहरो अभी बताऊंगा

यदि कमरे में जा कर देखो तो, भेद पता चल जायेगा
झाड़ू कोने में सिसक रही, कूड़े का शासन पायेगा
जा के रसोई में देखो सच चूहे दण्ड पेलते हैं
बर्तन आपस में मिल कर के, बस आंख मिचौनी खेलते हैं
रावण धर भेष भिखारी का, लाया था सीता को हर के
मैं किस की सीता हर लाऊं अपना यह मुख काला करके
कहते हैं वो मिले जिसको, व्यर्थ हुई सारी माया
पाठक हैं सब ज्ञानी मानी , अब मैं ही क्या समझाऊंगा

जो एक चीज़ अब तक मिली, अब कैसे जुबाँ पर लाऊंगा

महावीर शर्मा

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अनिद्रा से विष्णु जी परेशान हैं!

अप्रैल 24, 2007

नारद जी सोच रहे थे कि मृत्यु-लोक (पृथ्वी) में जाकर एक गिटार ले लिया जाए। युगयुगांतरों के समय की सीढ़ियां चढ़ चढ़ कर नारद जी के शरीर में अब पहले सी ऊर्जा नहीं रही थी। वीणा का भार और आकार दोनों ही वादन में कभी कभी आड़े आजते थे।

इसी गुनताड़े में नेत्र मुंदे हुए थे कि अचानक से एक दैवी अलौकिक ज्योति के तेज से आंखें खुल कर चुंधिया गईं। देखा तो साक्षात सृष्टि-पालक चतुर्भुजधारी विष्णु भगवान दैन्यावस्था में हाथ जोड़े खड़े हुए थे। नारद जी ने घबड़ा कर प्रभू को आसन पर बिठाया। स्तुति करने लगे,”आपका यश तीनों लोकों में …..” विष्णु जी ने बीच में ही रोक कर कहा, ” नारद, इस लंबी चौड़ी स्तुति में समय व्यर्थ मत करो। वह फिर कभी हो जाएगी। मैं तुम्हारी मंत्रणा और सहायता लेने के लिए आया हूं।”
नारद जी ने खड़ताल बजाते हुए कहा,” प्रभो, आप निष्कंटक हो अपनी समस्या बताएं और आज्ञा दें”

भगवान अपने कमल-लोचनों के भीतर अमृत समान अश्रु-कण को संभालते हुए बोले, “नारद, युग बीत गया है, मानव ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि मेरी नींद हराम हो गई है। कहीं कोई ऐसा स्थान मिल जाए जहां छुप कर थोड़ा विश्राम कर सकूं। जहां भी जाता हूं मानव मुझे ढूंढ ही लेता है। इसी कारण स्वास्थ्य गिरता जा रहा है, शरीर और मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो पा रहा है। सोने के लिए मंदिर-मंदिर भटकता हूं कि कहीं शयन कर सकूं। किंतु धन-लोलुप पुजारियों ने दिन रात छः छः बार आरतियों के समय निर्धारित कर दिए हैं और शेष काल में कीर्तन की धम-धम जिससे भक्त-गण बार बार आकर धन-विसर्जन द्वारा परलोक सुधारें।”
“मेरी निद्रा का नाटक होता है लेकिन सोने नहीं देते। बड़े बड़े सेठ महंगे से महंगे नए नए स्वादिष्ट चाकलेट, मिठाइयां, फल आदि मेरे मुंह में ठूंसे रहते हैं। तुम देख रहे हो मेरा जो छरैरा लावण्य-युक्त शरीर था चर्बी का लोथड़ा बनता जा रहा है। तौंद ऐसी बढ़ गई है जैसे उदर में से कोई नया प्लैनिट निकलने वाला है।”
“अब डर लग रहा है कि मैं प्रकृति को कैसे संभाल पाऊंगा। मानव-जाति ने तो मेरी सृष्टि को रसातल में पहुंचाने की ठान ली है। न्यूक्लियर विस्फोटक धमाकों से मेरी सुंदर और कोमल प्रकृति डर के मारे अपनी फबन ही भूल गई। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग से प्रकृति उथल-पुथल हो रही है। वनस्पति, पेड़, पौदे, फूल आदि अनायास ही ऋतु-परिवर्तन के कारण असमंजस में पड़ गए हैं। नाना प्रकार के रोगों को आश्रय मिल गया है।”
“लक्षमीं जी की इतनी मांग है कि उनसे भेंट किए हुए युग होने लगा है। अर्थ-शास्त्र के नियम ‘डिमांड एंड सप्लाई’ का प्रश्न है, उन्हें क्या दोष दें?”
चंद्रमा, बृहस्पति, मंगल आदि नक्षत्रों में शांति ढूंढने गया तो वहां भी मानव अपने अंतरिक्ष-यान भेज कर मानवीय प्रदूषण फैलाने में रत हैं।”

नारद जी सांत्वना देते हुए बोले,”हे महाबाहो, आप चिंतित मत हो, मैं निर्विलंब मृत्यु-लोक जाकर जांच-पड़ताल कर, शीघ्र लौट कर कोई उपाय करता हूं।।”

नारद जी ने अपने पाइलट को मेघ-दूत नामक विमान को तैयार करने का आदेश दिया। आकाश-मार्ग से पृथ्वी की ओर रवाना हो गए। विमान से विहंगम-दृष्टि डाली और कहने लगे, “पाइलट, नीचे देखो – इंद्र देव ने इंद्र के अखाड़े की एक शाखा पृथ्वी पर भी खोल दी है। अनेक अप्सराएं तीन-चौथाई नग्न-शरीर द्वारा अपनी नृत्य-कला का प्रदर्शन कर रहीं हैं। पाइलट ने जो नीचे देखा तो विमान डोलने लगा। किंतु संभल कर कहा, “मुनिवर, यह इंद्र का अखाड़ा नहीं है। यह मुम्बई नगर का प्रख्यात बॉलीवुड है।” नारद जी ने विमान वहीं पास में लैंड कर, विमान को दैवी-कला से अदृश्य-रूप देकर, अकेले ही एक फिल्म स्टूडियो में जा फंसे। किसी धार्मिक फिल्म की शूटिंग हो रही थी। बड़ा सुंदर सैट बना हुआ था। क्षीर सागर में शेष-शैया पर विष्णु जी लेटे हुए थे और लक्षमी जी उनके चरण दबा रही थीं। नारद जी आश्चर्य-वश कुछ क्रोधित से हुए कि विष्णु जी ने मुझ से ऐसा छल क्यों किया। यहां आराम से निद्रा का आनंद ले रहे हैं। अभी सोच ही रहे थे कि डाइरेक्टर ने असिस्टेंट
को झाड़ पिलाई, ” नारद कहां मर गया? जभी देखा दूर पर नारद जी खड़े हुए थे, उन पर बरस पड़ा, “अबे अब खड़ा खड़ा क्या देख रहा है, अपनी लाइन बोल ना!” नारद जी सकपका गए- कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह व्यक्ति क्या कह रहा है। इतने में ही जूनियर आर्टिस्ट (extra)जो पास ही था, बीड़ी का एक लम्बा कश खींच कर जल्दी से आ पहुंचा। नारद के मेक अप में वीणा के तार झंकारते हुए स्तुति की लाइनें बोलनी आरंभ की। डाइरेक्टर ने झल्ला कर नारद जी की ओर इशारा देकर कहा,
“इस मरदूद को बाहर निकालो। मूड बिगाड़े दे रहा है।”
नारद जी ने साहस कर, जोर से कहा,”अपने हृदय में झांक कर तक नहीं देखते, दया तो लगता है आप लोगों के शब्द-कोश में ही नहीं है।” किसी ने धक्का मारते हुए कहा, “यहां दिल में झांकने का किस को वक्त है। देख नहीं रहा कि जरा सी गलती से लाखों पर पानी फिर जाएगा।”

बेचारे बाहर निकले तो पुलिस ने घेर लिया जिन्हें शक हुआ कि कोई आतंकवादी तोनहीं है, “हाथ ऊपर उठालो, वर्ना एक ही गोली से सिर में से भेजा बाहर आजाएगा।” पुलिस बिना सोचे ही समझे इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि वीणा के तंबूरे में बम है।
बस बम-सुंघनी कुतिया बुलाई गई। कुतिया ने सूंघ कर नारद जी की धोती, वीणा और सारे शरीर का एक्स-रे कर डाला। वीणा तोड़ फोड़ डाली।चारों तरफ हल्ला मच गया। लोग जोर जोर से चीखते हुए भाग कर कह रहे थे ,”भागो, भागो। बम फट गया।”
मिंटों में बाजार बंद हो गया। पुलिस चीफ ने हंसते हुए कहा, “अरे भई, यह तो बहरूपिया है। लोगों का दिल बहलाता है।” नारद जी को थोड़ी सी वार्निंग दे कर छोड़ दिया। नारद जी कहने लगे,
“तुम्हारे हृदय में तो जरा भी दया नहीं है। वहां धक्के मार मार कर निकाल दिया और यहां मेरी वीणा भी नष्ट-भ्रष्ट कर डाली।” वही उत्तर मिला, “अबे बहरूपिये, दिल विल की बात मत कर, किसके पास वक्त है? तू शुक्र कर कि तुझे बिना रिश्वत के ही छोड़ रहे हैं। यह तंबूरा कहीं और जा कर बजा।”

नारद जी घबरा गए। तुरंत ही पाइलट को आदेश दिया और उड़े ही थे कि चारों ओर हल्ला मच गया कि ‘एलियन आगए हैं’। पाइलट ने दैवी ऐक्सलेटर दबाया तो विमान हवा से बातें करने लगा। नीचे चारों ओर लोगों की भीड़, मीडिया के कैमरों की फ्लैश से आकाश में ऐसा लग रहा था जैसे किसी मिनिस्टर के बेटे के विवाह पर आतिशबाज़ी हो रही हो। अगले सवेरे ही अखबारों में मुख्य पृष्ठ पर खबर छपी थी “एलियंस इन मुंबई”। सुर्खियों की खबर से सारे अखबार मिन्टों में बिक गए।

झुटपुटा सा हो गया था, थके हारे हुए, भूखे प्यासे पिटे से नारद जी ने एक पार्क देख कर मेघ-विमान वहीं ठहरा लिया। पाइलट वहीं विमान में बैठा रहा । नारद जी एक बैंच पर बैठ गए। उसी बैंच पर एक नशैड़िया हाथ में बोतल लिए बहक रहा था। नारद जी को जो देखा तो दोनों हाथेलियों के बीच बोतल पकड़ कर जमीन पर साष्टांग लेट कर विनयपूर्वक लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, “नारदाए नमो नमो! मुनि जी परसाद रूप जमना पार जगतपुर की यह गंगा घाट की जिन जो प्योर देसी है, स्वीकार करके इस दास को किरतारथ करें। नारद जी, एक दिन भोले नाथ के एक भक्त ने अंगरेजी शैंपेन पला दी तो पता लगा कि यह अंग्रेज लोग हम भारतियों को कितना धोका देते हैं। जरा भी नशा नहीं हुआ। आप ही बताओ कि हमारी गौरमेंट जान बूझ कर गलती करते हैं या नहीं? अगर गंगा घाट की देसी जिन यूरोप में एक्सपोर्ट कर दें तो तो वहां के लोग स्कॉच, व्हिस्की, शैंपेन वगैरह वगैरह को छुएंगे भी नहीं।
नारद जी ने इस पर ध्यान ना देते हुए पूछा, “बंधु, यहां समीप ही कहीं कोई मंदिर है?” नशैड़िए भाई फट से बोले, “दुनिया की सब से बड़े परजा तंतर देश में भला मंदिर ना हो , कैसे हो सकता है? बिड़ला मंदिर, शिवाला, गौरी मंदिर, काली मंदिर, हनुमान मंदिर…….जामा मस्जिद, मोती मस्जिद……. गुरद्वारा……” सूची बढ़ती जा रही थी।

नारद जी चुपचाप उठ कर चल दिए। पास के ही मंदिर में पहुंचे तो भक्तों की लंबी कतार, भिखारियों की भीड़। दो लड़के, थे तो भिखारी, किंतु एक के हाथ में माउथ-आर्गन था और दूसरा सिर से चुनरी
लहराते हुए गाना गा रहा थाः
‘चोली के पीछे क्या है।’
नारद जी ने एक भिखारी से पूछा, ‘भई, यह किस देवता का मंदिर है?’ भिखारी ने नारदजी की जेब का दृष्टि-भोग करके देखा कि यह तो कोई फोकटिया है। धक्का देते हुए कहा,’ अबे हट! धंधे का वक्त है, बात मत कर….’ जोर जोर से पेट पर हाथ मार मार कर चिल्लारहा था, “दस रुपए का सवाल है, सड़क के उस पार चारों बच्चे भूक से तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। आप को भगवान दस करोड़ देगा……”

नारद जी लाइन में खड़े हो गए। अंत में अंदर जाने का अवसर मिल ही गया। लाउडस्पीकर के शोर में यह ही पता नहीं लग रहा था कि पुजारी जी श्लोक बोल रहे थे या किसी को फटकार रहे थे।

अब आरती का समय हो गया। पुजारी जी आरती की बोली लगा रहे थे,
“आज सभी भक्तों को स्वर्ण अवसर दिया जा रहा है। आज इस विशेष दिवस पर इस समय जो भक्त अर्द्ध नारीश्वर की आरती उतारेगा, उसके पिछले और वर्तमान के सारे पाप धुल जाएंगे। इतना ही नहीं, भविष्य में जो भी पाप करेंगे, वे भी इस आरती की ज्योत में जल जायेंगे जिससे आप धनातिरेक से वंचित ना रहें। तो भक्तों बढ़ बढ़ के बोली लगाओ।

आरती की नीलामी १००१ रुपए से आरंभ होकर ११००१ रुपए पर रुकी। आरती की थाली नीलामी विजेता सेठ छदम लाल के हाथों में थमा दी गई। सेठ जी ने आरती के लिए जो मुंह खोला तो बत्तीसी में सामने के दो दांत नदारद और दांतों के झरोके से हवा निकलने के कारण गा रहे थेः-
‘ओम जै जगदी हरे फ्वामी जै जगदी हरे!!’
आरती के बाद थाली में नोटों की बौछार! नारद जी का दम सा घुट रहा था। अर्द्ध नरीश्वर की मूर्ती के साथ ही विष्णु भगवान की मूर्ती पर नारद जी को दया आ रही थी। भक्तों की कुछ भीड़ कम हुई तो साहस जुटा कर प्रसाद मांगा। पहले तो पुजारी ने अपनी आंखों की ऐनक हटा कर नारद जी ऊपर से नीचे का एक्स-रे कर डाला, “बंधु लगता है तुम इस इलाके में नए आए हो। तुम्हारा नाम क्या है?” नारद जी ने अपनी वीणा से गंधार स्वर को झंकारते हुए कहा,”नारद!” पुजारी ने अपने शिष्य से धीरे से कहा, “लगता है पागलखाने से भाग आया है। परसों के बासी बचे हुए प्रसाद में से दो तीन दाने दे कर इसे ‘बिहारी’ कर।”

हर जगह यही देखा कि हृदय का कोई मूल्य नहीं है। हृदय में किसी के भी पास झांकने तक का समय नहीं है।एक बार तो रैड-लाईट के इलाके में फंस गए थे, पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया था।

विमान में बैठ कर सोच रहे थे कि यदि विष्णु जी का यही हाल रहा तो विश्व का क्या होगा। फिर सोचा कि विष्णु जी व्याकुल हो रहे होंगे, विमान की गति को तीव्र कर शीघ्र ही विष्णु-लोक पहुंच गए। देखते ही भगवान ने नारद के पैर पकड़ लिए।” नारद, आपने कोई उपाय ढूंढा है क्या?” नारद जी मुस्कराए और वीणा के टूटे हुए तारों से ही कुछ प्रेम-भरे स्वरों को झंकारते हुए बोले, “हाँ, महाबाहो। मेरी मृत्यु-लोक यात्रा व्यर्थ नहीं थी। मैंने वह स्थान ढूंढ लिया है जहां आप निष्कण्टक हो विश्राम करेंगे और देखने के लिए कोई फटकेगा तक नहीं।”
भगवान की बांछें खिल गईं। खुशी में नींद भी उड़ गई। लालायित हो पूछने लगे,
“कहां है वह स्थान? शीघ्र कहिए!”

नारद जी वीणा की ट्यूनिंग करते हुए बोले, “हे त्रिलोकीनाथ! संसार में इंसान को धन-लोलुपता के कारण अपने हृदय में झांकने तक का समय नहीं है। आप निःसंकोच मनुष्य के हृदय में विराजिए। मंदिरों में घंटे घड़ियाल बजते रहेंगे, मूर्तियों को खिलाते रहेंगे, धन लुटाते रहेंगे किंतु कोई नहीं देखेगा कि प्रभू दिल के मंदिर में वास करते हैं।

महावीर शर्मा

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ससुराल से पाती आई है !

मई 18, 2005

ससुराल से पाती आई है !

    ससुराल से पाती आई है !

बहुत हुए मैके में ही, सच तनिक न तबियत लगती है
भैया भाभी सो जाते हैं, लेकिन यह विरहन जगती है
कमरे की बन्द किवाङों से, मीठे मीठे स्वर आते हैं
वे प्यार की बातें करते हैं, अरमान मेरे जग जाते हैं
विश्वास करो मैं ने रातें तारों के साथ बिताई हैं

    ससुराल से पाती आई है !

चिट्ठी के मिलते ही प्रियतम, पहली गाङी से आ जाना
छत पर चढ़ बाट निहारूंगी , आने पर खाऊंगी खाना
बस अधिक नहीं लिख सकती हूं , इतने को बहुत समझ लेना
त्रुटियां चिट्ठी में काफ़ी हैं, साजन न ध्यान उन पर देना
हे नाथ तुम्हारी दासी ने आने की आस लगाई है ।

    ससुराल से पाती आई है !

पाती में बातें बहुत सी हैं, लज्जा आती है कहने में
जा कर बस लाना ही होगा, अब खैर नहीं चुप रहने में
दस बीस बार पढ़ पाती को, सोचा अब जाना ही होगा
पाजामे कुर्ते काफी हैं, एक सूट सिलाना ही होगा
पैसे की चिन्ता ही क्या है , ऊपर की खूब कमाई है

    ससुराल से पाती आई है !

दर्जी बोला इस सूट में तो , पूरा सप्ताह लग जायेगा
मैं ने सोचा सप्ताह में तो , मरने का ही खत आयेगा
सारे मित्रों पर हो आया पर, सूट सभी के छोटे थे
पत्नी की किस्मत फूटी थी , या भाग्य हमारे खोटे थे
देखा तो इधर मिला कूंआ, उस ओर बनी एक खाई थी ।

    ससुराल से पाती आई है !

बहुत सोचने पर जा कर, एक रैडीमेड खरीदा सूट
रंग बिरंगे मोजे पर फिर ,, पहन लिया बाटा के बूट
दाढ़ी मूंछ सफ़ा कर के , नयनों में काजल घाल लिया
फिर क्रीम लगा कर हल्की सी, ऊपर से पाउडर डाल लिया
सिलकन कमीज़ के ऊपर ही पहनी नीली नकटाई है ।

    ससुराल से पाती आई है !

तांगा कर स्टेशन पहुंचे , इतने में आई गाड़ी
पहले चढ़ने के चक्कर में , खिङकी से उलझ पैण्ट फाङी
डब्बे के अन्दर पहुंचे तो , स्थान न था तिल धरने को
मानो जैसे ससुराल नहीं , जाते हैं नरक में मरने को
पाकेट में डाला हाथ मगर देखा तो वहां सफाई है ।

    ससुराल से पाती आई है !

ससुराल के स्टेशन पर आ , मैं गाङी से नीचे आया
जब आंख उठा कर देखा तो टी.टी.आई सम्मुख पाया
मांगा उसने जब टिकट तो मैं बोला भैय्या मजबूरी है
कट गई जेब अब माफ़ करो , मुझ को एक काम ज़रूरी है
पर डाल हथकङी हाथों में , ससुराल की राह दिखाई है ।

    ससुराल की पाती आई है ।।महावीर शर्मा



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“हम गधे हैं” – नीरज त्रिपाठी

अप्रैल 13, 2005

हम गधे हैं neeraj_tripathi.jpg

नीरज त्रिपाठी

एक दिन हुई एक गाधे से मुलाकात
हुई हमारी मित्रता, शुरू हुई बात
मैं ने पूछा गधे भाई
क्या आप वास्तव में गधे हैं
गधा बोला आपका प्रश्न सुनकर
लगता है कि आप गधे हैं

मै ने बात बिगड़ती देख
वार्तालाप को दूसरी ओर घुमाया
बहुत स्मार्ट लग रहे हो
गधे को बताया
गधे ने प्रशंसा के लिये
आभार जताया
खुश हो कर ढैंचू ढैंचू का
मधुर स्वर सुनाया

मैं ने पूछा गधे भाई
क्या कार्य-क्षेत्र है तुम्हारा
गधा बोला इम्पोर्ट ऐक्सपोर्ट का
व्यापार है हमारा
गधा बोला बहुत दिन बाद
मिला कोई अपने जैसा
क्या करते हो,
काम चल रहा है कैसा?

मैं बोला कविताएं लिखता हूं यार
गधा बोला अभी थोड़ा काम है
चलता हूं, नमस्कार!
मैं बोला मज़ाक कर रहा था यार

कम्प्यूटर के क्षेत्र में
करियर को दे रहा हूं नये आयाम
सुबह से लेकर शाम तक
तुम्हारी तरह करता हूं काम

गधा बोला वैसे कम्प्यूटर में
रुचि तो मेरी भी थी
लेकिन डैडी के व्यापार को
मेरी जरूरत थी

मैं बोला हम बेवकूफ़ इन्सान को
गधे कहते हैं
क्या तुम्हारी बिरादरी के लोग इस से
रुष्ट रहते हैं

गधा बोला इन्सान को गधा कहने पर
हमें नहीं विरोध
लेकिन गधे को इन्सान कहा
तो ईंट से ईंट बजा देंगे
दुलत्तियों की सज़ा देंगे
करेंगे प्रतिरोध

माना कि तुम्हारे यहां भी
कुछ लोग चारा खाते हैं
छोटे छोटे बच्चे हमारी तरह
बोझ उठाते हैं
और कुछ इन्सान वैसे ही गाते हैं
जैसे कि हम रैंकते हैं
लेकिन हमारे यहां
कोई थोड़ी सी भी बेईमानी करे
उसे बिरादरी से निकाल फेंकते हैं

टेढ़ों के लिये टेढ़े ,
सीधों के लिये सीधे हैं
गर्व है कि हम गधे हैं

गधे ने मुझ पर
कुछ यूं प्रभाव जमाया
मैं लगा सोचने भगवान ने मुझे
गधा क्यों नहीं बनाया

अब तो यही इच्छा है
कि ज़िन्दगी में कुछ ऐसा कर जाऊँ
समाज में, बिरादरी में
हर जगह गधा कहलाऊँ !

नीरज त्रिपाठी