Archive for the ‘सामान्य/General’ Category

पुष्पा भार्गव के काव्य संग्रह ‘लहरें’ का लोकार्पण

जून 22, 2009

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रविवार ३१ मई २००९ को काव्य धारा लन्दन के विशेष कार्यक्रम में पुष्पा भार्गव के काव्य संग्रह ‘लहरें’ का विमोचन भारतीय उच्चायोग की संस्कृति मंत्री तथा नेहरू केंद्र की निर्देशिका श्री मती मोनिका कपिल मोहता के कर-कमलों द्वारा बोम्बे पैलेस, लन्दन में हुआ. इस आयोजन का संचालन काव्य धारा के मुख्य सचिव श्री मोडगिल ने किया. इस अवसर पर लन्दन के जानेमाने साहित्यकार, लेखक, कवि और विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष तथा काव्य धारा के सभी सदस्य व पदाधिकारी उपस्थित थे.

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बाएं से दायें: प्रेम मोडगिल, मधुप मोहता, मोनिका कपिल मोहता, पुष्पा भार्गव

आयोजन की व्यवस्था बहुत ही सुन्दर और सुरुचिपूर्ण रूप से की गई थी. स्वागत और परिचय के पश्चात कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वन्दना के साथ दीप जला कर किया गया.

संस्कृति मंत्री श्री मती मोनिका कपिल मोहता और लन्दन के विख्यात लेखक और कवि डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने दीप प्रज्जलित किया. तत्पश्चात काव्य धारा की सदस्या कवयित्री उर्मिला भारद्वाज ने कविता पाठ करके पुष्प भार्गव का अभिनन्दन किया.

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बाएं से दायें: प्रेम मोडगिल, मधुप मोहता, मोनिका कपिल मोहता,

पुष्पा भार्गव, उषा राजे सक्सेना, कमलेश भार्गव

कार्यक्रम के बीच डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने काव्य संग्रह ‘लहरें’ के ऊपर अपना बहुत ही प्रभावशाली वक्तव्य दिया. इसके उपरान्त हिन्दी समिति की उपाध्यक्षा और लन्दन की जानीमानी लेखिका व कवयित्री श्री मती उषा राजे सक्सेना ने पुष्पा भार्गव के सामाजिक व साहित्यिक कार्यों की प्रसंशा करते हुए उनके काव्य संग्रह की भरसक सराहना की.  इस आयोजन में पुष्पा भार्गव के गीतों पर आधारित नृत्यों का प्रदर्शन शमा डांस कम्पनी द्वारा किया गया जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

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पुष्पा भार्गव के गीतों पर आधारित ‘शमा डांस कम्पनी’ द्वारा नृत्य-प्रदर्शन

काव्य संग्रह के विमोचन के पश्चात श्री मती मोहता ने पुष्पा भार्गव के अतियन्त सुन्दर काव्य संग्रह ‘लहरें’ की प्रसंशा करके उनको उनकी सफलता के लिए अनेकानेक बधाईयाँ दीं.

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जया भार्गव द्वारा कविता-पाठ

इस अवसर पर श्री मती पुष्पा भार्गव की पोती जया भार्गव ने कविता-पाठ किया जिसकी सभी ने बहुत प्रसंशा की.

इस आयोजन में भारतीय उच्चायोग के उच्च अधिकारी और प्रसिद्ध कवि श्री मधुप मोहता भी उपस्थित थे. इसके अतिरिक्त लन्दन के जानेमाने कवि सोहन ‘राही’, भारतेंदु विमल, तोषी अमृता व हिन्दी अधिकारी श्री आनंद कुमार, ‘लहरें’ के चित्रक श्री बजरंग माथुर एम. बी. ई., शमा डाँस कम्पनी की आर्टिस्टिक डायरेक्टर श्री मती सुषमा मेहता, भारतीय संस्थाओं के अध्यक्ष, नृत्यकला की आर्टिस्टिक डायरेक्टर बीथिका राहा, हिन्दू वेलफ़ेयर एसोसिएशन एसेक्स के चेयरमेन श्री बलदेव गोयल एम. बी. ई. इत्यादि उपस्तिथ थे. अंत में स्वादिष्ट प्रितिभोजन के बाद आयोजन समाप्त हुआ.

प्रेषक: महावीर शर्मा

सुन्दर ग़ज़लों और कविताओं के लिए नीचे दिए ब्लॉग पर क्लिक कीजिए:
महावीर

आतंक के युद्ध में जीत!!!

नवम्बर 30, 2008

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आतंक के युद्ध में जीत!!!

यह सब से बड़ा आतंकी हमला था। १० आतंकियों को मार कर आतंक के खिलाफ यह जंग जीत ली है – गर्व की बात है!
१९९३ के बम विस्फोट में, संसद पर हमले में, दिल्ली में, जयपुर में – जहां भी देखो कितनी ही जानें खो कर अंत में यही कहने में गर्व होने लगता है – ‘आतंकियों पर जीत’ और जय जयकार से आकाश गूंज उठता है।

बस, कुछ करना-धरना नहीं, केवल खोखली बातें :
“सरकार को यह करना चाहिए, वह करना चाहिए था, जो मैं कह रहा हूं वही करना चाहिए, मैंने तो पहले ही कह दिया था कि ये आतंकी फिर आएंगे ……” –

बस यहां ख़त्म हो जाती हमारी कर्मभूमि की सीमा! वागाडंबर और वाग्-युद्ध में हमें सिद्धि प्राप्त है!

१९९३ के बम-विस्फोट में, संसद पर हमले में, दिल्ली में, जयपुर में – जहां भी देखो कितनी ही जानें खो कर अंत में यही shok1कहने में गर्व होने लगता है और वही पुनरावृत्ति – ‘आतंकियों पर जीत’ और जय जयकार से आकाश गूंज उठता है। कितनी ही बार यही विजय-घोष का नारा सुनते आए हैं किंतु विजयश्री की श्रृंखला में अनेक निर्दोष लोगों की आत्माएं गोलियों से छिदे और विस्फोट की आग में झुलसते हुए शरीरों से विदा लेकर रोती रहीं। हमले का आकार और भीषणता का विस्तार होता रहा। मिडिया और अखबारों का व्यापार बढ़ जाता है। पान की दुकान पर, पार्कों में, हर जगह लोगों के झुंड इकट्ठे हो कर शासन-नीति, कूट-नीति, सरकारी-नीति पर बहस और दावेदारी के साथ एक दूसरे पर लांछन और आरोप लगा कर अपनी भड़ास निकालने का अवसर मिल जाता है।

मैं भी तो यही कर रहा हूं। ब्लॉग में अपनी भड़ास ही तो निकाल रहा हूं – अपनी शर्मिंदगी पर आवरण डालने की कोशिश में कहे देता हूं :-

“इस वाग्-युद्ध के अलावा हम क्या कर सकते हैं, यह तो सरकार का, पुलिस का, खुफिया एजेंसियों, डिज़ास्टर मैनेजमेंट विभाग का, कमांडो का कर्तव्य है। ड्यूटी ही तो कर रहे हैं हम – नारा लगा रहे हैं, लोगों में जागृति उत्पन्न कर रहे हैं।”

भैया, कुछ भी नहीं कर सकते तो फिरका-परस्ती मिटाने के लिए इतना तो कर सकते हो कि जब कोई पूछे –
“भाई साहब आप हिंदू हो?”
“नहीं”
“मुसलमान हो?”
“नहीं।”
“तो क्या सिख हो?”
“नहीं।”
” तो फिर लगता है पारसी या यहूदी होगे।”
“नहीं”
“अरे अब समझ गया। दलित हो तुम!”

” मैं बताता हूं। मैं क्या हूं! मैं हूं ‘भारतीय’ – केवल ‘भारतीय’ जिसका मुझे गर्व है।
दुनिया के किसी भी भाग में चला जाऊं, मैं जन्म-जन्मांतर से ‘भारतीय’ हूं। “

महावीर
**********************

‘नीरज त्रिपाठी’ ने जयपुर में विस्फोट पर एक कविता में अपना रोष कुछ शब्दों में व्यक्त किया था जो आज भी लागू होते हैं।

जब भी यही हुआ था, आज फिर उसकी पुनरावृत्ति और कल भी कौन जाने………?
यह पंक्तियां उसी दिन स्वयं ही लुप्त हो जाएंगी जिस दिन ‘आतंकवाद’ शब्द मानव की जबान पर आते ही उबकाई आने लगेः-

नीरज त्रिपाठी की कविता की कुछ पंक्तियां :-

मिट गया सिंदूर हाथ मेंहदी है अभी भी
राख है वो आज मासूमियत उसकी हँसी
सुलगेगी बस अब जिंदगी भर जिंदगी
वो जहाँ जब भी जो चाहेंगे करेंगे
हम नपुंसक थे नपुंसक हैं नपुंसक ही रहेंगे

था लगा मन में वो कुछ सपने संजोने
था क्या पता हैं पापियों के हम खिलौने
बम फटे और साथ में अरमान उसके
बहन खोयी भाई खोये खोये हैं बेटे किसी ने
कैसे मरे कितने मरे दो चार दिन चर्चा करेंगे
हम नपुंसक थे नपुंसक हैं नपुंसक ही रहेंगे

शर्ट के टुकड़े मिले हैं लाल गायब
लाश भी मिलती नही कुछ को चहेतों की
सरकार ने तो कर दिया है काम अपना
एक कमेटी थोड़ा शोक थोड़ा पैसा
ये धमाके कल हुए थे आज भी और कल भी होंगे
हम नपुंसक थे नपुंसक हैं नपुंसक ही रहेंगे

नीरज त्रिपाठी

कथा महोत्सव-2008

अगस्त 23, 2008

कथा महोत्सव-2008

अभिव्यक्ति, भारतीय साहित्य संग्रह तथा वैभव प्रकाशन द्वारा आयोजित

अभिव्यक्ति, भारतीय साहित्य संग्रह तथा वैभव प्रकाशन की ओर से कथा महोत्सव २००८ के लिए हिन्दी कहानियाँ आमंत्रित की जाती हैं।

• दस चुनी हुई कहानियों को एक संकलन के रूप में में वैभव प्रकाशन, रायपुर द्वारा प्रकाशित किया जाएगा और भारतीय साहित्य संग्रह से http://www.pustak.org पर ख़रीदा जा सकेगा।

• इन चुनी हुई कहानियों के लेखकों को ५ हज़ार रुपये नकद तथा प्रमाणपत्र सम्मान के रूप में प्रदान किए जाएँगे। प्रमाणपत्र विश्व में कहीं भी भेजे जा सकते हैं लेकिन नकद राशि केवल भारत में ही भेजी जा सकेगी।

• महोत्सव में भाग लेने के लिए कहानी को ईमेल अथवा डाक से भेजा जा सकता है। ईमेल द्वारा कहानी भेजने का पता है- teamabhi@abhivyakti-hindi.org डाक द्वारा कहानियाँ भेजने का पता है- रश्मि आशीष, संयोजक- अभिव्यक्ति कथा महोत्सव-२००८, ए – ३६७ इंदिरा नगर, लखनऊ- 226016, भारत।

• महोत्सव के लिए भेजी जाने वाली कहानियाँ स्वरचित व अप्रकाशित होनी चाहिए तथा इन्हें महोत्सव का निर्णय आने से पहले कहीं भी प्रकाशित नहीं होना चाहिए।

• कहानी के साथ लेखक का प्रमाण पत्र संलग्न होना चाहिए कि यह रचना स्वरचित व अप्रकाशित है।

• प्रमाण पत्र में लेखक का नाम, डाक का पता, फ़ोन नम्बर ईमेल का पता व भेजने की तिथि होना चाहिए।

• कहानी के साथ लेखक का रंगीन पासपोर्ट आकार का चित्र व संक्षिप्त परिचय होना चाहिए।

• कहानियाँ लिखने के लिए A – ४ आकार के काग़ज़ का प्रयोग किया जाना चाहिए।

• ई मेल से भेजी जाने वाली कहानियाँ एम एस वर्ड में भेजी जानी चाहिए। प्रमाण पत्र तथा परिचय इसी फ़ाइल के पहले दो पृष्ठों पर होना चाहिए। फ़ोटो जेपीजी फॉरमैट में अलग से भेजी जा सकती है। लेकिन इसी मेल में संलग्न होनी चाहिए। फोटो का आकार २०० x ३०० पिक्सेल से कम नहीं होना चाहिए। कहानी यूनिकोड में टाइप की गई हो तो अच्छा है लेकिन उसे कृति, चाणक्य या सुशा फॉन्ट में भी टाइप किया जा सकता है।

• कहानी का आकार २५०० शब्दों से ३५०० शब्दों के बीच होना चाहिए।

• कहानी का विषय लेखक की इच्छा के अनुसार कुछ भी हो सकता है लेकिन उसमें मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था होना ज़रूरी है।

• इस महोत्सव में नए, पुराने, भारतीय, प्रवासी, सभी सभी देशों के निवासी तथा सभी आयु-वर्ग के लेखक भाग ले सकते हैं।

• देश अथवा विदेश में हिन्दी की लोकप्रियता तथा प्रचार प्रसार के लिए चुनी गई कहानियों को आवश्यकतानुसार प्रकाशित प्रसारित करने का अधिकार अभिव्यक्ति के पास सुरक्षित रहेगा। लेकिन निर्णय आने के बाद अपना कहानी संग्रह बनाने या अपने व्यक्तिगत ब्लॉग पर इन कहानियों को प्रकाशित करने के लिए लेखक स्वतंत्र रहेंगे।

• चुनी हुई कहानियों के विषय में अभिव्यक्ति के निर्णायक मंडल का निर्णय अंतिम व मान्य होगा।

• कहानियाँ भेजने की अंतिम तिथि १५ नवंबर २००८ है।

• यह विवरण http://www.abhivyakti-hindi.org/kahaniyan/2008/kathamahotsav2008.htm पर वेब पर भी देखा जा सकता है।

पूर्णिमा वर्मन
टीम अभिव्यक्ति

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

जुलाई 22, 2008

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

सूचनाः देखने वालों के अनुरोध पर ‘मुशायरे का यह रूप अगले कुछ दिनों के लिए बढ़ा दिया गया है। ‘यू.के. की डायरी’ के अंतर्गत ‘ब्रिटिश संसद में एक बार फिर गूंज उठी हिन्दी’ शीघ्र ही किसी आगामी पोस्ट में दिखाई जाएगी।
***********************

आदरणीय प्रधान जी, कवियों, कवियत्रियों और श्रोतागण को आपके सेवक (महावीर शर्मा) और श्री प्राण शर्मा जी का नमस्कार।

‘बरखा-बहार’ पर १५ जुलाई २००८ के मुशायरे का अभी भी ख़ुमार बाक़ी है। आज जो गुणवान कवि और कवियत्रियां अपना अमूल्य समय देकर रचनाओं से इस कवि-सम्मेलन की शोभा बढ़ा रहे हैं, उन्हें मैं विनम्रतापूर्वक प्रणाम करता हूं। आप सभी श्रोताओं का हार्दिक स्वागत है।

यहां यह कहना उचित होगा कि यह कवि-सम्मेलन हमारे यू.के. के प्रितिष्ठित कवि, लेखक, समीक्षक और ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा जी की ही प्रेरणा और सुझाव से आयोजित किया किया गया है जिनका मार्गदर्शन पग-पग पर मिलता रहा है। आप ग़ज़ल की दुनिया में एक जाने माने उस्ताद हैं। ‘अभिव्यक्ति’ में उनका एक सारगर्भित लेख “उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल”‘ नए ग़ज़ल-प्रेमयों को सही मार्ग दर्शाता है।
प्राण शर्मा जी की दो पुस्तकें ‘सुराही’ और ‘ग़ज़ल कहता हूं’ प्रकाशित हो चुकी हैं। “सुराही” एक मुक्तक-संग्रह है। ‘बच्चन’ जी की ‘मधुशाला’ की परंपरा को आगे बढ़ाने में जो योग दिया है, सराहनीय है। लेकिन प्राण शर्मा जी के नए प्रयोगों में पुराने प्रयोगों से भिन्न हैं, उनके काव्य में मौलिकता है।आप की ग़ज़लें मुशायरों, आकाशवाणी और अनेक जालघरों की रौनक़ बढ़ाते रहे हैं।

मैं शर्मा जी को सादर आमंत्रित करता हूं कि अपनी रचना प्रस्तुत करें :
(श्रोतागण खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत कर रहे हैं और वे माइक पर आगए
हैं)
प्राण शर्मा जीः
श्री महावीर जी का मैं बहुत आभारी हूं जिन्हों ने कवि सम्मेलन में शामिल कर, अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी, देवमणि पांडेय, द्विजेन्द्र ‘द्विज’, समीर लाल ‘समीर’, पारुल, रज़िया अकबर मिर्ज़ा, डॉ. मुंजु लता, नीरज गोस्वामी, राकेश खंडेलवाल, नीरज त्रिपाठी, रंजना भाटिया ‘रंजू’, सतपाल ‘ख़्याल’ जैसे गुणी कवियों और कवियत्रियों के साथ पढ़ने का सुनहरा मौक़ा दिया है। भाईयो और बहनों मैं अपना एक ग़ज़लनुमा गीत सुनाने से पहले “सुराही” में से एक मुक्तक सुनाना चाहता हूं।

(कवियों और कवियत्रियों का समवेत् स्वरः- “इर्शाद”

अर्ज़ किया हैः

सौंधी हवाओं की मस्ती में जीने का कुछ और मज़ा है
भीगे मौसम में घावों को सीने का कुछ और मज़ा है
मदिरा का रस दुगना-तिगना बढ़ जाता है मेरे प्यारे
बारिश की बूंदा-बादी में पीने का कुछ और
मज़ा है।

(शायरों समेत श्रोतागण की वाह वाह से हॉल गूंज उठता है।)
अब मैं आपके सामने एक ग़ज़लनुमा गीत पेश करता हूं।

शीर्षक है “बदलियाँ” –

आस्मां में घुम घुमा कर आ गई हैं बदलियां
जल-तरंगों को बजाती छा गई हैं बदलियां

नाज़ और अन्दाज़ इनके झूमने के क्या कहें
कभी इतराई कभी बल खा गई हैं बदलियां

पेड़ों पे पिंगें चढ़ी हैं प्यार की मनुहार की
हर किशोरी के हृदय को भा गई हैं बदलियां

साथ उठी थी सभी मिलकर हवा के संग संग
राम जाने किस तरह टकरा गई हैं बदलियां

इक नज़ारा है नदी का जिस तरफ़ ही देखिए
पानियों को किस तरह बरसा रही हैं बदलियां

भीगते हैं बारिशों के पानियों में झूम कर

बाल-गोपालों को यूं हर्षा गई हैं बदलियां

उठ रही हैं हर तरफ़ से सौंधी सौंधी ख़ुशबुएं
बस्तियां जंगल सभी महका गई हैं बदलियां

याद आएगा बरसना ‘प्राण’ इनका देर तक
गीत रिमझिम के रसीले गा गई हैं बदलियां

(ग़ज़ल ख़त्म होते ही सारा हॉल तालियों से गूंज रहा है।)

वाह! बहुत ख़ूब।
उठ रही हैं हर तरफ़ से सौंधी-सौंधी ख़ुशबुएं
बस्तियां जगल सभी महका गई हैं बदलियां।

(वाह! वाह! के साथ तालियों से हॉल गूंज उठा है।)

***

आज हमें बेहद खुशी है कि हमारे दरमियान जनाब डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी साहेब मौजूद हैं। आपको शायरी का फ़न विरसे में मिला है। आप मशहूर शायर जनाब बर्क़ साहेब के बेटे हैं जो जनाब नूह नारवी के शागिर्द थे। जनाब नूह नारवी साहेब दाग़ देहलवी के शागिर्द थे।
डॉ. बर्क़ी साहेब ने फ़ारसी में पी.एच.डी. हासिल की है और आजकल ऑल इंडिया रेडियो में ऐक्स्टर्नल सर्विसिज़ डिवीज़न के पर्शियन (फ़ारसी) सर्विस में ट्रांस्लेटर/अनाउंसर/ब्रॉडकास्टर की हैसियत से काम कर रहे हैं। आप का तआरुफ़ आज की ग़ज़ल
में देखा जा सकता है।

मैं जनाब डॉ. अहमद अली ‘बर्क़ी’ साहेब से दरख़्वास्त करता हूं कि माइक पर आकर अपने कलाम से इस मुशायरे की शान बढ़ाएं :

जनाब अहमद अली ‘बर्क़ी’:

खिल उठा दिल मिसले ग़ुंचा आते ही बरखा बहार
ऐसे मेँ सब्र आज़मा है मुझको तेरा इंतेज़ार

आ गया है बारिशोँ मेँ भीग कर तुझ पर निखार
है नेहायत रूह परवर तेरी ज़ुल्फ़े मुश्कबार

जलवागाहे हुस्ने फितरत है यह दिलकश सबज़ाज़ार
सब से बढकर मेरी नज़रोँ मे है लेकिन हुस्ने यार

ज़िंदगी बे कैफ है मेरे लिए तेरे बग़ैर
गुलशने हस्ती मेँ मेरे तेरे दम से है बहार

है जुदाई का तसव्वुर ऐसे मेँ सोहाने रूह
आ भी जा जाने ग़ज़ल मौसम है बेहद साज़गार

ग़ुचा वो गुल हंस रहे हैँ रो रहा है दिल मेरा

इमतेहाँ लेती है मेरा गर्दिशे लैलो नहार

साज़े फ़ितरत पर ग़ज़लख़्वाँ है बहारे जाँफेज़ा
क़ैफ़—ओ— सरमस्ती से हैँ सरशार बर्क़ी बर्गो बार

(श्रोतागण खड़े होकर तालियों से ‘बर्क़ी’ साहेब के धन्यवाद और दाद का इज़हार कर रहे हैं।)
जनाब डॉ. बर्क़ी साहेब आपकी शिरकत के लिए हम सभी तहे दिल से ममनून और शुक्रगुज़ार हैं। उम्मीद है कि आगे होने वाले मुशायरों में भी आपकी राहनुमाई मिलती रहेगी।
***

“छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश”

मुम्बई से प्रतिष्ठित लोक-प्रिय कवि , मंच संचालक जिनके दो प्रकाशित संग्रह ‘दिल की बातें’ और ‘खुशबू की लकीरें’ ,फ़िल्म ‘पिंजर’, ‘हासिल’ और ‘कहां तुम’ के अलावा सिरियलों के गीतकार, संपादित संस्कृतिक निर्देशिका ‘संस्कृति संगम में मुम्बई के रचनाकारों को एक जुट करने का अदम्य कार्य समपन्न होने का सेहरा आपके ही सर सजाया गया है।

मैं देख रहा हूं कि आपकी उत्सुकता बढ़ती जारही है। लीजिए आपका सस्पेंस दूर किए देते हैं। देखिए श्री देवमणि पांडेय जी मंच पर आगए हैं और माइक संभाल लिया है। हॉल तालियों से गूंज गया है।

श्री देवमणि पांडेयः

मौसम की पहली बारिश

छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश

गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश

जब तेरा आंचल लहराया
सारी दुनिया चहक उठी
बूंदों की सरगोशी तो
सोंधी मिट्टी महक उठी

मस्ती बनकर दिल में छाई मौसम की पहली बारिश

रौनक़ तुझसे बाज़ारों में
चहल पहल है गलियों में
फूलों में मुस्कान है तुझसे
और तबस्सुम कलियों में

झूम रही तुझसे पुरवाई मौसम की पहली बारिश

पेड़-परिन्दें, सड़कें, राही
गर्मी से बेहाल थे कल

सबके ऊपर मेहरबान हैं
आज घटाएं और बादल

राहत की बौछारें लाई मौसम की पहली बारिश

आंगन के पानी में मिलकर
बच्चे नाव चलाते हैं
छत से पानी टपक रहा है
फिर भी सब मुस्काते हैं

हरी भरी सौग़ातें लाई मौसम की पहली बारिश

सरक गया जब रात का घूंघट
चांद अचानक मुस्काया
उस पल हमदम तेरा चेहरा
याद बहुत हमको आया

कसक उठी बनकर तनहाई मौसम की पहली बारिश

(हॉल तालियों से एक बार फिर गूंज गया है।)

क्या बात हैः
मस्ती बनकर दिल में छाई मौसम की पहली बारिश

***

आज हमारे हमारे बीच २००७ के बेस्ट हिंदी ब्लॉग का इण्डीब्लॉगीज़ अवॉर्ड और तरकश स्वर्ण कमल, २००६ से सम्मानितउडन तश्तरी ब्लॉग के चिट्ठाकार श्री समीर लाल ‘समीर’ जी विद्यमान हैं। आप जबलपुर, भारत में जन्मे थे। चार्टर्ड एकाउंटैंसी पास करने के बाद, अब ९ वर्षों से कनाडा में बैंक में टैक्नोलॉजी सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं। आपके टैक्नोलॉजी पर कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी काव्य में रुचि होने से कविता पढ़ने और लिखने का शौक उनकी कविताओं और लेखन में स्पष्ट लक्षित होता है। भारत, अमेरिका, कनाडा में अनेकों कवि सम्मेलनोंमें शिरकत की है। आपकी पुस्तक ‘बिखरे मोती’ शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है।

मैं श्री समीर लाल जी को आमंत्रित करता हूं और विनती है कि अपनी रचना प्रस्तुत करें।

(लोग तालियों से समीर जी का स्वागत कर रहे हैं)

श्री समीर लाल ‘समीर’ जीः

पहले बारिश पर एक दोहा सुनें:

बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.

(कवि और कवियत्रियों का सम्वेत स्वरः वाह! बहुत सुंदर!)

अब एक गीत:

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

सांस सावनी बयार, बन के कसमसाती है
प्रीत की बदरिया भी ,नित नभ पे छाती है

इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं

उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

झूम रही है धरा ,ओढ़ के हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी

इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

–समीर लाल ‘समीर’

(कवि और कवियत्रियों के साथ साथ श्रोताओं की तालियों से गूंजने लगा है।)
***

मैं डॉ. मंजुलता सिंह जी को मंच पर आने के लिए आमंत्रित करते हुए निवेदन करता हूं कि मंच पर आकर अपनी कविता
सुनाएं।

गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. मंजुलता सिंह जी जिन्हों ने लखनऊ विश्व विद्यालय से एम.ए. और पी.एच.डी प्राप्त करके विभिन्न कॉलेजों में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहीं और सन् २००० में दिल्ली विश्व विद्यालय में रीडर के पद से निवृत्ति लेकर हिंदी साहित्य की सेवा कर रहीं है। उनकी कविताएं हस्ताक्षर पर पढ़ सकते हैं। आपकी ७ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जो हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।

लीजिए, डॉ. सिंह माइक के सामने आगई हैं और स्वागत में लोगों लोग खड़े होकर तालियो से उनका स्वागत कर रहे हैं। तालियो से हॉल गूंज रहा है …. यह कहना असंगत ना होगा कि मंजुलता जी की सुपुत्री रचना सिंह जी भी बधाई की पात्र हैं। हमें मंजुलता जी से मिलवाने का श्रेय रचना जी को ही जाता है।

डॉ. मंजुलता सिंह जी :–

मेरी कविता है ‘बरसात’

कैसे भूलूँ वे बरसातें
कैसे भूलूँ तुम्हारी बांतें ।

जब सावन को हम तुम तरसे
तब नैनो से मेघा बरसे
कैसे भूलूँ तुम्हारी यादें

कैसे भूलूँ वे बरसातें

उठा बवंडर धरती प्यासी
मेघा तुम फिर भी ना बरसे

कैसे भूलूँ तुम्हारी बांतें ।
कैसे भूलूँ वे बरसातें

कितनी सुंदर पंक्तियां हैं-
उठा बवंडर धरती प्यासी
मेघा तुम फिर भी ना बरसे

(हॉल तालियों से एक बार फिर गूंज गया है।)
***

आज हमारे मध्य एक ऐसे कवि हैं जिन्हें कवित्व के गुण विरासत में मिले हैं और उन गुणों का विस्तार उनकी ग़ज़लों, कविताओं, लेखों और सभी रचनाओं में देखा जा सकता है। आप हैं श्री द्विजेन्द्र ‘द्विज’ जी जो सुविख्यात ग़ज़लकार स्वर्गीय श्री मनोहर लाल ‘साग़र’ जी के सुपुत्र हैं। ‘साग़र’ साहिब के नाम से स्वतः ही नतमस्तक हो जाता है।’साग़र’ साहेब की रचनाएं ग़ज़ल-एक प्रयास पर देखी जा सकती हैं।
श्री ‘द्विज’ जी ने हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय के सेन्टर फ़ॉर पोस्ट्ग्रेजुएट स्टडीज़ और धर्मशाला से अंग्रेज़ी साहित्य में सनातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। आपकी रचनाएं भारत की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। कई राष्ट्र एवं राज्य स्तरीय कवि सम्मेलनों, मुशायरों में भाग लेते रहे हैं और रचनाएं आकाशवाणी से प्रसारित हुई हैं। आपका ग़ज़ल-संग्रह ‘जन-गण-मन’ २००३ में प्रकाशित हुआ था।

श्री द्विजेन्द्र ‘द्विज’ जी को मंच पर आने का मेरा विनम्र आग्रह स्वीकार करें और अपनी ग़ज़ल सुनाएँ :

श्री द्विजेन्द्र ‘द्विज’ :

मैं आपके सामने एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूं।

(कवि और कवियत्रियों का समवेत् स्वरः ‘इर्शाद’)

नग़्मगी नग़्मासरा है और नग़्मों में गुहार
तुम जो आओ तो मना लें हम भी ये बरखा बहार

‘पी कहाँ है, पी कहाँ है, पी कहाँ है, पी कहाँ’
मन—पपीहा भी यही तो कह रहा तुझ को पुकार

पर्वतों पे रक़्स करते बादलों के कारवाँ
बज उठा है जलतरंग अब है फुहारों पर फुहार

पर्वतों से मिल गले रोये हैं खुल कर आज ये
इन भटकते बादलों का इस तरह निकला ग़ुबार

नद्दियों, नालों की सुन फ़िर आज है सरगम बजी
रुह का सहरा भिगो कर जाएगी बरखा बहार

बैठ कर इस पालकी में झूम उठा मेरा भी मन
झूमते ले जा रहे हैं याद के बादल—कहार

झूमती धरती ने ओढ़ा देख लो धानी लिबास
बाद मुद्दत के मिला बिरहन को है सब्रो—क़रार

बारिशों में भीगना इतना भी है आसाँ कहाँ
मुद्दतों तपती ज़मीं ने भी किया है इन्तज़ार

आसमाँ ! क्या अब तुझे भी लग गया बिरहा का रोग?
भेजता है आँसुओं की जो फुहारें बार—बार

तेरी आँखों से कभी पी थी जो इक बरसात में
मुद्दतें गुज़रीं मगर उतरा नहीं उसका ख़ुमार

वो फुहारों को न क्यों तेज़ाब की बूँदें कहें
उम्र भर है काटनी जिनको सज़ा—ए—इन्तज़ार

भीगना यादों की बारिश में तो नेमत है मगर
तेरी बिरहा की जलन है मेरे सीने पर सवार

इस भरी बरसात ने लूटा है जिसका आशियाँ
वो इसे महशर कहेगा, आप कहियेगा बहार.

महशर= प्रलय का दिन

वाह!
नग़्मगी नग़्मासरा है और नग़्मों में गुहार
तुम जो आओ तो मना लें हम भी ये बरखा बहार

(श्रोतागण खड़े हो कर तालियां बजा कर अपनी दाद दे रहे हैं)
***

भारत के ‘बोकारा स्टील सिटी’ से भारतीय संगीत स्नातकोत्तर ‘पारुल’ जी जब अपनी कविताएं संगीत के स्वरों में ढाल कर प्रस्तुत करती हैं तो श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। पारुल…चाँद पुखराज का जालघर से अनेक महान गायकों के स्वरों को हमारे कानों में रस घोलने का श्रेय आपको जाता है।

मैं पारुल जी को मंच पर आने के लिए आमंत्रित करता हूं और मधुर स्वरों में अपनी रचना प्रस्तुत करें।

( पारुल जी मंच पर आगई हैं और हॉल तालियों से गूंज रहा है। सभी उनकी स्वर-लहरी को सुनने के लिए बेताब हैं)

पारुल जीः-

झर झर नीर झरे बरखा बन
अपलक नयन निहारें बाट
आस बसा के हिय हमारे
कंत सिधारे तुम किस धाम

कुंज कुंज मे तुम्हे पुकारूँ
बूंद बूंद मे तुम्हे निहारूँ
विरह वेदना मे अकुलाये
मीत सिधारे तुम किस धाम

तुम बिन झूला कौन झुलाये
तुम बिन कजरी किसे सुहाये
ऐसा निर्मम रास रचाकर
सखा सिधारे तुम किस धाम

घन गरजे कजरा घुल जाये
श्यामल मेघ मल्हारें गायें
आँचल ओट जलाये सावन
सजन सिधारे तुम किस धाम

(हॉल में एक भावातिरेक वातावरण छा गया है। स्वर बंद हो गए हैं किंतु कानों में उनके स्वर अभी भी गूंज रहे हैं। पारुल जी के मुख से जैसे ही ‘धन्यवाद’ शब्द निकला तो ऐसा लगा जैसे लोग सम्मोहनवत् तंद्रा से जाग उठे हों और तालियों से हॉल फिर से गूंज उठा है।)
***

‘हंसता हुआ नूरानी चेहरा’! आप पहचान गए होंगे – नीरज गोस्वामी जिनकी रचनाओं में एक विशेष सौंदर्य झलकता है, जिसका रहस्य है कि वे कभी अपने गुरू या उस्ताद को नहीं भूलते। नीरज उनके उद्गारों की जालघरीय किताब है।

अहंकार रहित, जीवन से संतुष्ट, हर हाल में हंसते रहने वाले इंजिनियरिंग स्नातक नीरज गोस्वामी, स्वांतःसुखाय के लिए एशिया, यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया महाद्वीपों के अनेक देशों के भ्रमण के बाद अभी भी कौन जाने उनके पांव कितने और देशों की सीमाएं पार करेंगे।
अधिकांश जीवन-काल जयपुर में गुज़ारने के बाद अब भूषण स्टील, मुम्बई में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्य-रत हैं।

लीजिए वह हंसता हुआ चेहरा माइक के सामने है। नीरज जी, आप से निवेदन है कि अपनी रचना प्रस्तुत करें।

नीरज गोस्वामी जीः

(हॉल तालियों से गूंज रहा है और नीरज जी ने चश्मा ठीक करते हुए शुरू कर दिया है):

तू अगर बाँसुरी सुना जाए
मेरे दिल को करार आ जाए

कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए

इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए

लौटती है बहार गुलशन में
फिर ख़िज़ाँ से भी क्यूँ डरा जाए?

याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए

हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!

दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए

नीरज

वाह! नीरज जी, बहुत ख़ूबसूरत!
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए

***

अमेरिका के ‘वाशिंग्टन हॉस्पिटल सेंटर, वाशिंग्टन डी.सी. से थोड़ा समय निकाल कर गुणी गीतकार श्री राकेश खंडेलवाल जी मंच पर आरहे हैं। राजस्थान के भरतपुर शहर की गलियों में गूंजते हुए बृज के रसिया और करौली तथा कैलादेवी की ओर जाते हुए भक्तों के लांगुरियां लोक गीतों को सुनते सुनते अपने आप ही इनका काव्य में रुझान हो गया था। भरतपुर की हिंदी साहित्य समिति में उपलब्ध साहित्य और कवि सम्मेलनोक्त ने इस रुचि को और बढ़ा दिया था। आगरा विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान कई कवि सम्मेलनों और आकाशवाणी के माध्यम ने इनको निरंतर लिखने को उत्साहित किया। आप १९८३ से यू.एस.ए. से गीत कलश द्वारा अपने गीतों से लोगों के दिलों में ऐसी छाप छोड़ जाते हैं कि पाठक दीर्घ काल तक उनके गीतों को गुनगुनाता रहता है। अमेरिका में भी बड़े २ साहित्यिक समारोहों में उनका योगदान सराहनीय है।

(लीजिए राकेश जी माइक पर आगए हैं और लोग खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत कर रहे हैं।)

श्री राकेश खंडेलवाल जीः

गगन के नील पत्रों पर घटाओं के हैं हस्ताक्षर
किसी के काजरी नयनों की कोई श्याम छाया है

ये घिर कर आये हैं बदरा या उमड़े भाव हैं मन के
किसी का रात सा आँचल हवा ने या उड़ाया है

झुलसती आस को यह तॄप्ति का सन्देश है कोई
कि जिसकी चाह लेकर प्राण में धरती तरसती है

अंधेरों की यह परछाईं पड़ी आषाढ़ के नभ पर
किसी के नैन विरही में कोई नदिया संवरती है

किसी चातक के सपनों को मिला है शिल्प क्या कोई
किसी ने स्वाति के नक्षत्र को फिर से पुकारा है

ये घिर कर आये हैं बदरा किसी के मरुथली आँगन
भ्रमों के या किसी आभास ने फिर से लुभाया है

ये घिर कर आये हैं बदरा बिना सावन तो क्या कारन
किसी ने आज फिर दरबार में मल्हार गाया है

पिया के गांव के पाहुन गगन के मार्ग से आये
किसी ने मेघदूतम आज फिर से गुनगुनाया है

राकेश खंडेलवाल

(लोग एक बार फिर खड़े होकर तालियां बजा रहे हैं, वह देखिए पीछे से लोग उनकी यह पंक्ति गा गा कर मस्त हो रहे हैं- किसी के नैन विरही में कोई नदिया संवरती है)

क्या बात है! श्री राकेश खंडेलवाल जी
पिया के गांव के पाहुन गगन के मार्ग से आये
किसी ने मेघदूतम आज फिर से गुनगुनाया है

***

ग़म की तपिश से यारो थी सुर्ख लाल आंखें
ठंडक मिली है दिल को कुछ आंख आज तर है

अब मैं हिमाचल निवासी श्री सतपाल ‘ख़्याल’ जी को मंच पर आने के लिए आमंत्रित करता हूं। आप यद्यपि पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन अंतःकरण में बैठा हुआ भावुक कवि आपकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है। आपके गुरू श्री द्विजेन्द्र ‘द्विज’ और आपने आज की ग़ज़ल ब्लॉग के माध्यम से आज के ग़ज़लकारों को एक जगह प्रकाशित करने के इस सुनहरे सपने को साकार बनाने का सफल प्रयास सराहनीय है।

श्री सतपाल ‘ख़्याल’ जी

कच्चा मकान उसपे बरसात का भी डर है
छ्त सर पे गिर न जाए सहमी हुई नज़र है

तपती हुई ज़मी की सुन ली है आसमां ने
बरसा है अपनी धुन मे हर कोना तर-बतर है

भीगे लिबास में से झलका बदन जो उसका
उसपे सब आशिकों की ठहरी हुई नज़र है

ग़म की तपिश से यारो थी सुर्ख लाल आंखें
ठंडक मिली है दिल को कुछ आंख आज तर है

टूटा है कहर उसपे सैलाब में घिरा जो
उसका ख्याल किसको जो शख्स दर-बदर है.

वाह! बहुत ख़ूब।

(श्रोताओं की ज़ोर ज़ोर से तालियां बज रही हैं, ‘ख़्याल’ साहिब वापस अपने स्थान पर बैठ गए हैं।)
***

जो लोग विज्ञान और रोग-चिकित्सा से संबंध रखते हैं, उनका साहित्य से भी गहरा लगाव होता है।
आज हमारे सामने एक विज्ञान की विद्यार्थी, अस्पताल में कार्य-रत कवियत्री जो अस्पताल में रोगियों की स्थिति बचपन, यौवन तथा
बुढ़ापे को हर रोज़ नज़दीक से देख कर उनके जीवन की गहराईयों को खोजती रहती हैं, और इन्हीं संवेदनाओं से एक कवियत्री “राज़” ने जन्म लिया जिसे साहित्य से प्रगाढ़ प्रेम हो गया और वह हैं रज़िया अकबर मिर्ज़ा “राज़” गुजरात से। वैसे तो आप उनकी रचनाएं Razia786’s Weblog पर देखते रहते होंगे लेकिन आज यहां अन्य कवियों के बीच उनकी कविता का आनंद लीजिएः

रज़िया जी मंच पर आगई हैं।

(काफ़ी देर तक तालियां बजती रहीं और अब बंद होने पर भी कानों में यह आवाज़ अभी भी गूंज रही है।)

लीजिए,

रज़िया मिर्ज़ा “राज़”:-

बरख़ा

देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)
आसमान से बरसा पानी.. देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)

पत्ते पेड़ हुए हरियाले
पानी-पानी नदियां नाले।
धरती देख़ो हो गई धानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)

मेंढक ने जब शोर मचाया।
मुन्ना बाहर दौड़ के आया।
हंसके बोली ग़ुडीया रानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)

बिज़ली चमकी बादल गरज़े।
रिमझिम रिमझिम बरख़ा बरसे।
आंधी आई एक तुफ़ानी। देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)

कोयल की कुउ,कुउ,कुउ सुनकर।
पपीहे की थर,थर,थर भरकर।
”राज़”हो गई है दीवानी।

देख़ो आई रुत मस्तानी..(2)

(वाह! श्रोता-गण मस्ती में ‘देखो आई रुत मस्तानी’ ‘राज़’ जी के साथ साथ तालियों से ताल देते हुए खुद भी गा रहे हैं। हॉल में मस्ती का वातावरण छा गया है। ‘राज़’ जी धन्यवाद देते हुए मंच से उतर रही हैं।)
***

आपके सामने रंजना भाटिया जी आरही हैं जिनको हम सब स्नेहावश रंजू के नाम से पुकारते हैं। बहुत छोटी सी आयु से ही लिखना शुरू कर दिया था। इनके लेख और कविताएं अनेक पत्रों और पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। आपका हिंदी साहित्य से विशेष लगाव रहा है। आप कविताओं और बच्चों का विषय लेकर दो पुस्तकों के प्रकाशन में संलग्न हैं वैसे तो आप उनकी कविताएं उनके ब्लॉग कुछ मेरी कलम से में पढ़ते ही रहते हैं, आज इस मंच पर उनकी रचना का आनंद लीजिए।

(तालियों से हॉल गूंज रहा है और सब उत्सुकता से उनकी ओर देख रहे हैं। )

रंजना भाटिया ‘रंजू’ जी

बरस आज तू किसी सावन की बादल की तरह
मेरी प्यासे दिल को यूँ तरसता क्यूँ है

है आज सितारों में भी कोई बहकी हुई बात
वरना आज चाँद इतना इठलाता क्यूँ है

लग रही है आज धरती भी सजी हुई सेज सी
तू मुझे अपनी नज़रो से पिला के बहकता क्यूँ है

दिल का धडकना भी जैसे हैं आज कोई जादूगिरी
हर धड़कन में तेरा ही नाम आता क्यूँ है

बसी है मेरे तन मन में सेहरा की प्यास सी कोई
यह दिल्लगी करके मुझे तडपाता क्यूँ है
रंजू

वाह!
बसी है मेरे तन मन में सेहरा की प्यास सी कोई
यह दिल्लगी करके मुझे तड़पाता क्यूं है

***
हास्य-रस कवि नीरज त्रिपाठी खरामा खरामा चले आरहे हैं।
जन्म नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ और आजकल निज़ामों के शहर हैदराबाद में एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं। ईश्वर उस कंपनी का भला करे, क्योंकि वो कहा करते है :

‘करते करते काम अगर तुम थक जाओ
कार्यालय में कुर्सी पर चौड़े हो जाओ।’

आजकल उन्हें उम्रेरिया हो गया है कि मिलते ही पूछते हैं कि उनकी उम्र कितनी
लगती है! फिर कह ही गएः
‘एक बात सताने लगी प्रतिदिन प्रतिपल
बच्चे बुलाने लगे नीरज अंकल’

लीजिए, अब मंच पर पहुंच गये हैं। नीरज त्रिपाठी जी, लीजिए माइक संभालिए ।लोगों को ज़्यादा इंतज़ार ना करवाएं।

‘नीरज त्रिपाठी जी :


महावीर जी को एक कविता भेजी थी – ‘हम गधे हैं’, पर पता लगा यह मुशायरा तो बरखा-बहार पर आयोजित किया गया है। तो सज्जनों आपके सामने एक कविता प्रस्तुत है जिसका शीर्षक हैः ‘पढ़ाई और बरसात’।
(तालियों से नीरज जी का स्वागत हो रहा है , कुछ शोर भी है)

पढ़ाई और बरसात

जब भी मेरे मन में पढ़ाई के विचार आते थे
जाने क्यों आकाश में काले बादल छा जाते थे

मेरे थोड़ा-सा पढ़ते ही गगन मगन हो जाता था
पंख फैला नाचते मयूर मैं थककर सो जाता था

पाठयपुस्तक की पंक्तियाँ लोरियाँ मुझे सुनाती थीं
छनन छनन छन छन बारिश की बूँदें आती थीं

टर्र टर्र टर्राते मेंढक ताल तलैया भर जाते थे
रात-रात भर जाग-जाग हम चिठ्ठे खूब बनाते थे

बरखा रानी के आते ही पुष्प सभी खिल जाते थे
कैसे भी नंबर आ जाएँ हरदम जुगत लगाते थे

पूज्यनीय गुरुदेव हमारे जब परिणाम सुनाते थे
आँसुओं की धार से पलकों के बाँध टूट जाते थे

पास होने की आस में हम पुस्तक पुन: उठाते थे
फिर गगन मगन हो जाता फिर नाचने लगते मयूर
फिर से बादल छा जाते थे

(तालियों का शोर और ऊपर से लोग ठहाके मार रहे हैं, नीरज जी ने तो मुशायरे का
वातावरण ही बदल दिया।)
लगे रहो नीरज भाई, पास होने के लिए नंबर लाने की जुगत लगाते रहो, नैय्या पार हो ही जाएगी।

***

नीरज त्रिपाठी जी की कविता-पाठ के ही साथ साथ आज का मुशायरा समाप्त हो……….नहीं नहीं मुशायरा अभी समाप्त नहीं हो रहा है। दरवाज़े पर देखियेगा, जनाब ‘चांद’ शुक्ला हदियाबादी आ रहे हैं। अचम्भा हो रहा है कि आज उनके हाथ में मोबाईल नहीं है। याद हो, १५ जुलाई के मुशायरे में एक ज़रूरी काम की वजह से वो अपने कलाम के बीच में चले गये थे।
आईये चाँद साहेब, पिछले कलाम की किश्त बाक़ी है, हमें खुशी है कि आज आप आगये हैं।

(चाँद साहेब माईक पर आगये हैं)
जनाब ‘चाँद’ शुक्ला हदियाबादी


दोस्तों, पिछली बार राडियोसबरंग पर एक रिकॉर्डिंग की वजह से जाना पड़ गया था जिसके लिए मैं आप से मुआफ़ी चाहता हूं। बरसात पर कुछ अशा’र आपके सामने पेश कर रहा हूं :

यह अब के काली घटाओं के गहरे साये में
जो हमपे गुजरी है ऐ “चाँद ” हम समझते हैं

जब पुराने रास्तों पर से कभी गुज़रे हैं हम
कतरा कतरा अश्क बन कर आँख से टपके हैं हम

तुन्द हवाओं तुफानो से दिल घबराता है
हलकी बारिश का भीगा पन अच्छा लगता है

अपने अश्कों से मैं सींचुगा तेरे गुलशन के फूल
चार सु बूए मोहबत को मैं फैला जाऊँगा

जो पूरी कायनात पे बरसाए चाँदनी

ऐसा भी किया के उसको दुआएं न दीजिये

तेरी बातों की बारिश मैं भीग गया था
फ़िर जा कर तन मन का पौदा हरा हुया था

तपते सहराओं में देखा है समुन्द्र मैंने

मेरी आंखों में घटा बन के बरसता क्या है

ऐ घटा मुझको तू आँचल में छुपा कर लेजा
सुखा पत्ता हूँ मुझे साथ उडा कर लेजा

(लोगों की तालियों से हॉल गूंज उठा है।)

********************************

“वो आए घर हमारे ख़ुदा की कुदरत है,

कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं।”

आप हमारी ख़ुशी का अन्दाज़ा नहीं लगा सकते जब हमें पता लगा कि अरब इमारत के शारजाह शहर से पूर्णिमा वर्मन जी इस मुशायरे में चार चांद लगाने के लिए आरही हैं। पूर्णिमा जी का परिचय किसी भी शब्दों का मुहताज नहीं है जिनकी ख्याति विश्व के कोने कोने में फैली हुई है। विश्व-विख्यात “अभिव्यक्ति” और “अनुभूति” के लेखक और कवि आज भी उनके गुणगान करने से तृप्त नहीं हो पाते। कोई भी ऐसी स्तरीय पत्र-पत्रिका नहीं जो उनकी क़लम से अछूती रह गई हो। उपमाएं और अलंकार उनकी रचनाओं में सजीव हो जाती हैं।

लीजिए, पूर्णिमा जी मंच पर आगई हैं।

(श्रोतागण खड़े होकर उनका स्वागत कर रहे हैं। अन्य कवि।कवियत्रियां भी तालियों से उनके आगमन पर ख़ुशी का इज़हार कर रहे हैं)

पूर्णिमा वर्मन जीः

घिरा गगन

मुदित मगन

मन मयूर नाचे!

ग्राम नगर सभी डगर

बूँदों की टपर-टपर

चपला की जगर मगर

रात्रि पत्र बाँचे!

पवन हुई मदिर-मदिर

वन पल्लव पुष्प रुचिर

जुगनू के बाल मिहिर

भरते कुलांचे!

हरित चुनर श्यामल तन

वर्षा ऋतु चितरंजन

इंद्रधनुष का कंगन

सतरंगा साजे!

दूर हुई कठिन अगन

धरती की बुझी तपन

कोकिल-शुक-पिक-खंजन

बोल कहें साँचे

बारिश की यह सरगम

पानी की यह छम-छम

सावन का यह मौसम

साल भर विराजे

-पूर्णिमा वर्मन

(श्रोताओं की तालियों से हॉल गूंज उठा है, पूर्णिमा जी सभी का धन्यवाद देते हुए मंच से जा रही हैं पर लोगों की तालियों का शोर कम नहीं हो रहा है)

******************

आप गुणी कवि/कवियत्रियों की मनभावन रचनाओं और ग़ज़लों से विभोर हो रहे हैं। अब आपके सामने कनाडा से मनोशी चैटर्जी मंच पर आरही हैं जिनके ‘हाइकू’ आपके दिलों में जिज्ञासा उत्पन्न कर देंगे कि सागर की गहराई जैसे भाव ५-७-५ अक्षरों के ‘हाइकू’ में कैसे भर दिए गए हैं! मनोशी जी का नाम ज़बान पर आते ही उनके ब्लॉग ‘मानसी’ और ‘संगीत’ स्वतः ही आंखों के सामने आ जाते हैं। उनके ब्लॉग ‘संगीत’ में शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों को आरंभ से लेकर उनकी बारीकियों तक सरल रूप में सिखाने की दक्षता देखी जा सकती है। उनकी ग़ज़लें आकाशवाणी पर प्रसारित हो चुकी हैं।

लीजिए, मनोशी जी माईक पर आगई हैं।

मनोशी चैटर्जीः

मैं आपके सामने कुछ ‘हाईकू’ पेश कर रही हूं :

बादल संग

आंख मिचौली खेले

पागल धूप

प्रकोपी गर्मी

मचा उत्पात अब

शांत हो भीगी

हल्की फुहार

रिमझिम के गीत

रुके न झड़ी

रोये पर्बत

चूम कर मनाने

झुके बदरा

बदरा तले

मेंढक की मंडली

जन्मों की बातें

झुका के सर

चुपचाप नहाये

शर्मीले पेड़

ओढ़ कम्बल

धरती आसमान

फूट के रोये


मानोशी चैटर्जी

(श्रोता वाह! वाह! कहते हुए ज़ोर ज़ोर से तालियां बजा रहे हैं।)

महावीर शर्माः-

इस मुशायरे/कवि-सम्मेलन में जिन कवियों और शायरों ने अपनी अनमोल रचनाएं और अमूल्य समय देकर इसे सफल बनाने में योगदान दिया है, उसके लिए हम आभारी हैं और हार्दिक धन्यवाद करते हैं। आशा है कि आप इसी तरह आगामी कवि-सम्मेलनों में योगदान देते रहेंगे।
मुशायरा चाहे किसी हॉल में हो, पार्क में हो या ब्लॉग पर हो, श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों के बिना मुशायरा एक शेल्फ़ पर पड़ी किताब बन कर रह जाती है। इस ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद।

शुभकामनाओं सहित
महावीर शर्मा
प्राण शर्मा

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार”- भाग 1

जुलाई 15, 2008

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” (पहला भाग)

दोस्तों, प्राण शर्मा जी का और मेरा (महावीर शर्मा) आप सभी को प्यार भरा नमस्कार
यह कहने में गर्व होता है कि इस ‘बरखा-बहार’ मुशायरे/कवि-सम्मेलन में देश-विदेश के
कवि इस मंच की रौनक़ बढ़ाने के लिए इकट्ठे हुए हैं।

आज हमारी ख़ुशकिस्मती है कि अमेरिका से इस मंच पर बरखा पर अपनी कविता से आपके दिलों में आनंद का संचार करने के लिए श्रीमती लावण्या शाह जी आ रही हैं। मैं देख रहा हूं कि लावण्या जी का नाम सुनते ही तालियों के शोर में मेरी आवाज़ ऐसे गुम हो गई जैसे नक्कारख़ाने में तूती की आवाज़। मैं जानता हूं कि आप उनकी कविता के लिए बेज़ार हो रहे हैं। हों भी क्यों ना, जिनकी ख्याति उनके ब्लॉग अंतरमन और कितने ही जालघरों, पत्रिकाओं, कवि-सम्मेलनों आदि में फैली हुई है। आप जानते ही कि लावण्या जी महाकवि स्व. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं । पंडित जी के विषय में कुछ कहना तो सूरज के सामने दीपक दिखाने वाली बात होगी।


लीजिए,
लावण्या जी माइक पर आगई हैं-

” पाहुन ”
बरखा स -ह्रदया, उमड घुमड कर बरसे,
तृप्त हुई, हरी भरी बन्, शुष्क धरा,
बागोँ मेँ खिल उठे कँवल – दल
कलियोँ ने ली मीठी अँगडाई !

फैला बादल दल , गगन पर मस्ताना
सूखी धरती भीग कर मुस्काई !

मटमैले पैरोँ से हल जोत रहा

कृषक थका गाता पर उमग भरा
” मेघा बरसे मोरा जियरा तरसे ,
आँगन देवा, घी का दीप जला जा !”

रुन झुन रुन झुन बैलोँ की जोडी,
जिनके सँग सँग सावन गरजे !
पवन चलये बाण, बिजुरिया चमके

सत्य हुआ है स्वप्न धरा का आज,
पाहुन बन हर घर बरखा जल बरसे !

बहुत सुंदर।
बागोँ मेँ खिल उठे कँवल – दल
कलियोँ ने ली मीठी अँगडाई !
***************

पंजाब के ‘जगराँव’ शहर का नाम आता है तो भारत स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गज ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय के नाम मात्र से ही गर्व से सर उठ जाता है। उसी ‘जगरांव’ में जन्में, आज व्यस्त के जीवन से कुछ क्षण निकाल कर यू.के. के सुविख्यात लेखक, कवि, कहानीकार श्री तेजेन्द्र शर्मा जी इस मुशायरे में शिरकत कर रहे हैं।

(वे अभी तो मंच पर भी नहीं आए और नाम लेते ही उनके स्वागत में तालियों से हॉल गूंज उठा है।)

तेजेन्द्र जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंगरेज़ी की डिग्री हासिल की। उनके हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषाओं में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिन में कुछ कविता एवं ग़ज़ल संग्रह ‘यह घर तुम्हारा है’, पांच कहानियों का संग्रह, और अंगरेज़ी में (Black & White – the biography of a Banker, Lord Byron – Don Juan, John Keats – The Two Hyperions) उल्लेखनीय हैं।

उनके अन्य भाषाओं नेपाली, उर्दू और पंजाबी में अनुवादित संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरुस्कार के अतिरिक्त देश-विदेशों में पुरुस्कारों से सम्मनित हुए हैं।
तेजेन्द्र जी आजकल लंदन में कथा यू.के. के महासचिव हैं। उनकी १६ कहानियों की आडियो बुक और ग़ज़लों की एक सी.डी. भी बाज़ार में उपलब्ध है।

लीजिए, तेजेन्द्र जी माइक पर आगये हैं और उनकी रचना का लुत्फ़ उठाइयेः

(एक बार फिर से हॉल तालियों से गूंज उठा है)

तेजेन्द्र शर्मा:

लंदन में बरसात….

ऐसी जगह पे आके बस गया हूं दोस्तो

बारिश का जहां कोई भी होता नहीं मौसम .
पतझड़ हो या सर्दी हो या गर्मी का हो आलम
वर्षा की फुहारें हैं बस गिरती रहें हरदम ..

मिट्टी है यहां गीली, पानी भी गिरे चुप चुप
ना नाव है कागज़ की, छप छप ना सुनाई दे .

वो सौंघी सी मिट्टी की ख़ुशबू भी नहीं आती
वो भीगी लटों वाली, कमसिन ना दिखाई दे ..

इस शहर की बारिश का ना कोई भरोसा है
पल भर में चुभे सूरज, पल भर में दिखें बादल .

क्या खेल है कुदरत का, ये कैसे नज़ारे हैं
सब कुछ है मगर फिर भी ना दिल में कोई हलचल.

चेहरे ना दिखाई दें, छातों की बनें चादर
अपना ना दिखे कोई, सब लगते हैं बेगाने .

लगता ही नहीं जैसे यह प्यार का मौसम है
शम्मां हो बुझी गर तो, कैसे जलें परवाने..

वाह!
चेहरे ना दिखाई दें, छातों की बनें चादर
अपना ना दिखे कोई, सब लगते हैं बेगाने .
(फिर वही ना रुकने वाली तालियां)

**********

‘न बुझ सकेगी ये आंधियाँ
ये चराग़ है, दिया नहीँ।’

जी हाँ, ये शे’र उस शाइरा का लिखा हुआ है जिन्हों ने अपनी ग़ज़लों में भाव, उद्गारों और अहसास के उमड़ते हुए सैलाब को अपने ग़ज़ल संग्रहों चराग़े-दिलआस की शमअ'(सिंधी में), दिल से दिल तक और ‘सिंध जी माँ जाई आह्याँ’ में समेट लिया है। ‘रेडियो सबरंग’ में अपनी गुलोसोज़ आवाज़ से और राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं , जालघरों में ग़ज़ल, कहानियों और लेखों, मुशायरों में अपनी रचनाओं की अमिट छाप छोड़ देती हैं।

वह हैं श्रीमती ‘देवी’ नागरानी जी जिन्हें भारत और अमेरिका में अनेक सम्मानों से नवाज़ा गया हैं। अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से ‘Eminent Poet’ काव्य सम्मान, स्वतंत्रता दिवस २००७ पर जर्सी सिटी के मेयर द्वारा ‘Proclamation Honor Award’, न्यू यार्क में विद्याधाम का ‘काव्य रतन’, बाल दिवस पर पदक और काव्यमणि परुस्कार, रायपुर छत्तीसगढ़ राज्य की सृजन सन्मान का ‘सृजन-श्री सम्मान’ उल्लेखनीय हैं। अमेरिका निवासी श्रीमती ‘देवी’ नागरानी ग़ज़ल के सफ़र में अथक मुसाफ़िर हैं। लीजिए,

देवी नागरानी जी मंच पर माइक के सामने आगई हैं…

(सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा हैः)
देवी नागरानीः

आपके सामने एक ग़ज़ल पेश हैः

बहारों का आया है मौसम सुहाना
नये साज़ पर कोई छेड़ो तराना.

ये कलियां, ये गुंचे ये रंग और खुशबू
सदा ही महकता रहे आशियाना.

हवा का तरन्नुम बिखेरे है जादू
कोई गीत तुम भी सुनाओ पुराना.

चलो दोस्ती की नई रस्म डालें
हमें याद रखेगा सदियों जमाना.

खुशी बाँटने से बढ़ेगी ज़ियादा
नफ़े का है सौदा इसे मत गवाना.

मैं देवी खुदा से दुआ मांगती हूं
बचाना, मुझे चश्मे-बद से बचाना.

बहुत ख़ूब देवी जी,
चलो दोस्ती की नई रस्म डालें
हमें याद रखेगा सदियों जमाना.
(देवी जी मंच से दूर जारहीं हैं और सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से
गूंज रहा है।)

****************

राक्षसों के विनाश हेतु भगवान विष्णु और अन्य देवताओं की एकत्रित शक्तियों से पहाड़ों से एक ज्वाला उठी और उसी ज्वाला से ‘आदि-शक्ति’ देवी माँ का जन्म हुआ। हिमाचल प्रदेश की उसी पवित्र-पावन भूमि ज्वालामुखी में अप्रैल १९३८ में एक शायर का जन्म हुआ जिसे आज हम सुरेश चन्द्र “शौक़” के नाम से जानते हैं। आप आजकल ए.जी. आफ़िस से बतौर सीनियर आडिट आफ़िसर रिटायर होकर शिमला में रहते हैं। सुप्रसिद्ध शायर श्री राजेन्द्र नाथ “रहबर” ने कहा थाः ” ‘शौक़’ साहिब की शायरी किसी फ़कीर द्वारा मांगी गई दुआ की तरह है जो हर हाल में क़बूल हो कर रहती है।” ‘शौक़’ साहिब का ग़ज़ल संग्रह “आँच” बहुत लोकप्रिय हुआ है।

लीजिए ‘शौक’ साहिब का कलाम…….
(लोगों को इतनी उत्सुक्ता हो रही थी कि मेरी बात को नज़र अंदाज़ कर उनके स्वागत
में खड़े हो गए और तालियों से हाल गूंज उठा)

जनाब सुरेश चन्द्र जी ‘शौक़’ :


सावन की बरखा

भूले बिसरे दर्द जगा कर बीत गई सावन की बरखा
दिल में सौ तूफ़ान उठा कर बीत गई सावन की बरखा

दीवारो —दर को सुलगा कर बीत गई सावन की बरखा
जज़्बों में हलचल— सी मचा कर बीत गई सावन की बरखा

कितने फूल खिले ज़ख़्मों के,कितने दीप जले अश्कों के
कितनी यादों को उकसा कर बीत गई सावन की बरखा

सोज़,तड़प, ग़म ,आँसू ,आहें ,टीसें ,ख़ामोशी, तन्हाई
हिज्र के क्या—क्या रंग दिखा कर बीत गई सावन की बरखा

रिम—झिम,रिम—झिम बूँदे थीं या सुर्ख दहकते अंगारे थे
दिल के नगर में आग लगा कर बीत गई सावन की बरखा

उनसे मिलन की आस कॊ शबनम साथ लिये आई थी ,लेकिन
यास के शोलों को भड़का कर बीत गई सावन की बरखा

हिज्र की रातें काटने वालों से यह जाकर पूछे कोई

क्या—क्या क़ह्र दिलों पर ढा कर बीत गई सावन की बरखा

ये आँखों की ज़ालिम बरखा आ कर जाने कब बीतेगी
‘शौक़’! सुना है कब की आ कर बीत गई सावन की बरखा.

(लोग मंत्रमुग्ध से ‘शौक़’ साहिब के चेहरे को निरख रहे हैं। अचानक यह क्या हुआ कि सब खड़े हो गए और आनंदविभोर हो कर तालियाँ से अपने उद्गारों का इज़हार कर रहे हैं।)

‘शौक़’ साहिब आपकी ग़ज़ल के सारे अशा’र एक से एक बढ़ कर हैं। हर शे’र पर वाह! ख़ुदबख़ुद निकल जाता है। काश! आपके पास कुछ और वक़्त होता और हम सुनते रहते।

(‘शौक़’ साहिब मंच से उतर रहे हैं।)

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अनछुई छुअन से सिहर गई पगली !

एक ही पंक्ति जो दिल के साज़ के तारों को झंकार दे तो क्या उनकी पूरी कविता सुनकर अपना दिल संभाल पाएंगे? लीजिए दिल संभाल लीजिए जो आपके दिल के तारों को झंकारने के लिए हिन्दी तथा अंगरेज़ी में स्नातकोत्तर, ‘हृदय गवाक्ष’ ब्लॉग में जिनकी कविताओं और लेखों से ‘अनछुअन’ से भी ‘छुअन’ का आभास होने लगता है। हृदय गवाक्ष गवाह है कि उनकी रचनाएं कितनी संवेदनाशील और प्रभावशाली हैं।

गन्ना विकास निदेशालय, लखनऊ में हिंदी अनुवादक पद पर कार्यरत मंच पर माइक के सामने आगई हैं-

आप हैं कंचन चौहान जीः

(तालियों से हॉल गूंज रहा है।)

पेड़ों के काधों पे झुकी हुई बदली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।

तन कर खड़े हैं तरू, पहल पहले वो करे,
बदली ने झुक के कहा, अहं भला क्या करें ?

तुम से मिले, मिल के झुके नैन अपने,
झुकना तो सीख लिया, उसी दिन से हमने,

ये लो मैं झुकी पिया, शर्त धरो अगली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।

तेरे लिए घिरी पिया, तेरे लिए बरसी,
तुझे देख हरसी पिया, तेरे लिए तरसी।

तेरे पीत-पात रूपी गात नही देख सकी,
सरिता,सर,सागर भरे, इतना आँख बरसी,

तुझे देख मैं जो हँसी, नाम मिला बिजली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।

कंचन चौहान

वाह! क्या बात हैः
ये लो मैं झुकी पिया, शर्त धरो अगली।
अनछुई छुअन से सिहर गई पगली।।

(सारा हॉल तालियों से गूंज रहा है।)
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मुम्बई से कवि कुलवंत सिंह जी जिनकी विभिन्न विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ प्रकाशनाधीन हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं होती रहती हैं। ‘काव्य भूषण सम्मान’, ‘काव्य अभिव्यक्ति सम्मान’, ‘भारत गौरव सम्मान’, ‘राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, ‘बाबा अंबेडकर मेडल’ आदि सम्मानों से विभूषित आजकल भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर आसीन हैं। जिनके गीत सुनहरे आप पढ़ते ही रहते हैं, किंतु सावन के महीने में प्रकृति की सुंदरता आप के सामने अपनी सुंदर कविता से आपका दिल मोह लेंगे।

कवि कुलवंत सिंह जी

(हॉल की दीवारों से तालियों की गड़गड़हट टकरा कर अद्भुत नाद कर रही हैं। तालियों
की गूंज अब कम हो गई है और कवि जी माइक के सामने आगए हैं)

प्रकृति – बरखा बहार
सावन का महीना, प्रकृति की सुंदरता, बरसात.. इस मौसम में एक कविता प्रस्तुत है॥

सतरंगी परिधान पहन कर,
आच्छादित है मेघ गगन,

प्रकृति छटा बिखरी रुपहली,
चहक रहे द्विज हो मगन ।

कन – कन बरखा की बूंदे,
वसुधा आँचल भिगो रहीं,

किरनें छन – छन कर आतीं,
धरा चुनर है सजो रहीं ।

सरसिज दल तलैया में,
झूम – झूम बल खा रहे,
किसलय कोंपल कुसुम कुंज के,
समीर सुगंधित कर रहे ।

हर लता हर डाली बहकी,

मलयानिल संग ताल मिलाये,
मधुरिम कोकिल की बोली,
सरगम सरिता सुर सजाए ।

कल – कल करती तरंगिणी,
उज्जवल तरल धार संवरते,

जल-कण बिंदु अंशु बिखरते,
माणिक, मोती, हीरक लगते।

मृग शावक कुलाँचे भरता,
गुंजन मधुप मंजरी भाता,

अनुपम सौंदर्य समेटे दृष्य,
लोचन बसता, हृदय लुभाता ।

वाह! दिल मोह लियाः
हर लता हर डाली बहकी,

मलयानिल संग ताल मिलाये,

मधुरिम कोकिल की बोली,
सरगम सरिता सुर सजाए ।

कवि कुलवंत जी शायराना अंदाज़ से लोगों का धन्यवाद देते हुए मंच से जा रहे हैं और हॉल में अभी भी ‘सतरंगी परिधान पहन कर’
लोगों की ज़बान पर है और साथ ही तालियाँ बज रही हैं।

*************

आप दिल को थाम लीजिए क्योंकि आज हमारे बीच डॉक्टर महक जी मौजूद हैं जिनके क्लीनिक में उनके इलाज से कितने ही मरीज़ों को ज़िन्दगी में मायूसी से राहत मिली है। दोस्तों, आज वे आपके दिल की बढ़ती हुई धड़कनें दवाओं से नहीं बल्कि अपनी रोग निवारक खूबसूरत कविता से करेंगी। डॉ. महक जी की महक आपको उनके ब्लॉगों महक और मराठी भाषा में चांदणी में भी आपके दिलो-दिमाग़ की ताज़गी बनाए रखेगी।

(लीजिए, डॉ. महक माइक पर आगई हैं। लोग उनके स्वागत में ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजा रहे हैं।)

डॉ. महक जीः

मेघा बरसो रे आज

मौसम बदल रहा है ,एक नया अंदाज़ लाया
बहती फ़िज़ायो संग रसिया का संदेसा आया

आसमान पर बिखरे सात रंग
रोमांचित,पुलकित,मैं हूँ दन्ग
भिगाना चाहूं इन खुशियों में तनमन से
मेघा बरसो रे आज बरसो रे |

वादीयां भी तुमको,आवाज़ दे रही है

हवाए लहेराकर अपना साज़ दे रही है
घटाओ का जमघट हुआ है
रसिया का आना हुआ है
भीगना चाहती हूँ रसिया की अगन मे
मेघा बरसो रे आज बरसो रे |

हरे पन्नो पर बूँदे बज रही है
मिलन की बेला मैं अवनी सज रही है
थय थय मन मयूर नाच रहे है
पूरे हुए सपने,जो अरसो साथ रहे है

भीगना चाहती हूँ,प्यार के सावन में
मेघा बरसो रे आज बरसो रे |

डॉ. महक जी

बहुत ही सुंदर कविता सुनाई है आपने-

‘हरे पन्नों पर बूंदे बज रही है।’

बड़ा खूबसूरत ख़याल है।

*********************

आप सब उत्सुक्ता से अगले कवि का स्वागत करने के लिए बेज़ार हो रहे हैं। मैं जानता हूं कि ऑडियो वेब साइट रेडियो सबरंग के संचालक व्यस्तता के कारण खाना तक भी भूल जाते हैं। मैं देख रहा हूं कि इस वक़्त भी कान पर मोबाइल है, लीजिए उनका मोबाइल बंद हो गया है और मंच पर आगए हैं। आप हैं डेनमार्क से जनाब ‘चाँद शुक्ला हदियाबादी’ जी :-

लोगों की तालियां रुकने में नहीं आर हीं हैं।

जनाब चाँद साहिब माइक पर आगए हैं-

क़दम क़दम पे हमें मौसम ने रोका था
हम अपनी आंखों में बरसात लिये फिरते हैं।

लीजिए उनका मोबाइल बीच में ही बज उठा है और वो कह रहे हैं कि एक बहुत ही ज़रूरी काम से बीच में जाना पड़ रहा है जिसके लिए वह बहुत मुआफ़ी की दर्ख़्वास्त कर रहे हैं।

(लोगों के चेहरों पर मायूसी छा गई है लेकिन हॉल तालियों की गूंज से अभी भी गूंज रहा है।)

हम सब उनके आभारी हैं जो ‘ रेडियो सबरंग’ के ज़रिए ‘सुर संगीत’, ‘कलामे शायर’, ‘सुनो कहानी’ और ‘भूले बिसरे गीत’ २७ देशों में सुनने वालों का मनोरंजन कर रहे हैं।

******************

राजस्थान-भ्रमण में यदि कोटा बुन्दी देखने न जाएं तो राजस्थान-यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। आज उसी ऐतिहासिक कोटा नगर से हेमज्योत्स्ना ‘दीप’ जी अपने लम्हें जिन्दगी के कुछ लम्हे कविता के रूप में आपके सामने प्रस्तुत करने आ रही हैं।

हेम ज्योत्स्ना जी व्यवसाय से सॉफ्टवेअर इन्जीनियर हैं। B.E. (I.T.) के अतिरिक्त गणित से स्नातक की डिग्री ली है। उनकी काव्य-प्रतिभा तो छोटी सी आयु में ही पता लग गई थी जब ११वीं कक्षा में एक सुंदर कविता ने लोगों को चकित कर डाला था। मुझे तो लगता है कि ११वीं कक्षा में से ही नहीं, पिछले जन्म से भी इन्हें काव्य से लगाव रहा होगा।
(लोगों की तालियां अनायास ही बज उठी हैं।)

लीजिए हेमज्योतस्ना जी माइक के सामने आ गई हैं।

(तालियां और भी ज़ोर से बजने लगी हैं)

मन की चिड़िया
मन की चिड़िया सावन में तन का मैल है धोये ।
देख के बादल मतवारे निकले ,होना हो जो होये ।

कभी इधर को मचले , कभी उधर को मचले,
मौसम के इस जादु में मन बावरा सा होये ।

जेठ दुपहरी ,खून पसीना एक करा सब खेत में ,
खेत खड़े सब धरती-पुत्र मेघ के संग-संग रोये ।

तितली-भँवरे , फूल-बगीचा , गांव शहर ,
हर मौसम में लगे अलग ,सावन में एकसा होये ।

रिमझिम की झड़ी जब साज उठा कर गाये ,
सब के सब ताल मिलाये , उम्र कोई भी होये ।

मिट्टी में मिल जाये गम, भुल के नाचो गाओ ,
बिखरे सपनो के पर आओ उम्मीद की फसले बोये ।

आज घिरे हैं मेघ गगन में , “दीप” जलाओ कोई,
दिन में जब-जब बरखा आई , घना अन्धेरा होये ।

वाह! हेम ज्योत्स्ना जी, आपकी ‘मन की चिड़िया’ ने तो श्रोताओं के मन को जीत लिया।

(हेम ज्योत्सना जी श्रोताओं की ओर मुस्कुराते हुए मंच से जा रही हैं और
लोग और भी ज़ोर से तालियां बजा रहे हैं।)

मुशायरा अभी ख़त्म नहीं हुआ है। हमारे काफ़ी कवि और शायर आज के मुशायरे में शिरकत नहीं कर पाये लेकिन जुलाई २२, २००८ मंगलवार के दिन उन कवियों और शायरों की कविताएं, उनके ख़ूबसूरत कलाम का इसी ब्लॉग पर लुत्फ़ उठाना ना भूलियेगा,

जिनके नाम हैं-
प्राण शर्मा, समीर लाल ‘समीर’, देव मणि पांडेय, डॉ. मंजुलता, द्विजेन्द्र ‘द्विज’, रज़िया अकबर मिर्ज़ा ‘राज़’, राकेश खंडेलवाल,
रंजना भाटिया ‘रंजू’, नीरज गोस्वामी और हास्य-रस कवि नीरज त्रिपाठी।

इस मुशायरे/कवि-सम्मेलन में जिन कवियों और शायरों ने अपनी अनमोल रचनाएं और अमूल्य समय देकर इसे सफल बनाने में योगदान दिया है, उसके लिए हम आभारी हैं और हार्दिक धन्यवाद करते हैं। मुशायरा चाहे किसी हॉल में हो, पार्क में हो या ब्लॉग पर हो, श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों के बिना मुशायरा एक शेल्फ़ पर पड़ी किताब बन कर रह जाती है। इस ब्लॉग पर आने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद करते हैं।
हाँ, इसका दूसरा भाग मंगलवार २२ जुलाई २००८ के दिन इसी ब्लॉग पर देखना ना भूलियेगा।

ख़ाकसार
महावीर शर्मा

mahavirpsharmaऐटyahoo.co.uk

‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण लंदन में

जून 9, 2008

‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण लंदन में

राकेश बी. दुबेः हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी,भारतीय उच्चायोग, लन्दन, प्रज्ञा ‘सुरभि’ सक्सेना, उषा राजे सक्सेनाः लेखिका-‘ वह रात और अन्य कहानियां ‘, अचला शर्माः लेखिका तथा निदेशक, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस रेडियो-हिंदी, लंदन, मोनिका मोहताः निदेशक, नेहरू केन्द्र, ‘प्राण’ शर्माः आलोचक-समीक्षक गज़लकार, महेश भार्द्वाजः प्रकाशक,सामयिक प्रकाशन, भारत

*****

चर्चित कहानीकार उषा राजे सक्सेना के कहानी संग्रह ‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ का लोकार्पण’ लंदन स्थित नेहरूकेंद्र में दिनांक शुक्रवार 30 मई 2008 को संपन्न हुआ।

समारोह की अध्यक्षता, अचला शर्मा लेखिका, निदेशक बी.बी.सी वर्ल्ड सर्विस हिंदी लंदन ने किया। नेहरूकेंद्र की निदेशक सुश्री मोनिका मोहता, आलोचक-समीक्षक गज़लकार श्री प्राण शर्मा, लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन, तथा भारत से आए पुस्तक के प्रकाशक श्री महेश भारद्वाज (सामायिक प्रकाशन) विशिष्ट अतिथि थे।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए नेहरू केंद्र की निदेशक, मोनिका मोहता ने सभी आगंतुक साहित्यकारों और श्रोताओ का स्वागत करते हुए बताया कि उषा राजे सक्सेना ब्रिटेन की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं उनके कहानी संग्रह ‘वह रात ओर अन्य कहानियाँ’ पुस्तक का लोकार्पण समाहरोह आयोजित कर नेहरू सेन्टर गौरवान्वित है।

कार्यक्रम की अध्यक्षा अचला शर्मा ने अपने वक्तव्य में बताया उषा राजे की विशेषता यह है कि वे अपना काम चुपचाप करती हैं। उनकी कहानियों में युग-बोध है, यथार्थ है। ये कहानियाँ पाठक को अंत तक बाँधे रखते मे समर्थ हैं।

मुख्य वक्ता प्राण शर्मा ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा, उषा राजे की कहानियाँ’ उनके ब्रिटेन के साक्षात अनुभवों को अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ हिंदी साहित्य में तो शीर्ष स्थान बनाती ही हैं साथ अँग्रेज़ी कहानियों के समानांतर भी हैं। ‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ में दुनिया के अनेक देशों के आप्रवासी पात्र अपनी-अपनी व्यक्तिगत एवं स्थानीय समस्याओं और मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ हमारे समक्ष आते हैं।

लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन ने उषा राजे की कहानियों को गहन अनुभूतियोंवाली वाली कहानियाँ बताया। उन्होंने कहा ये कहानियाँ मात्र भारतीय या पाश्चात्य ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों से आए प्रवासियों की कहानियाँ है। युट्टा ने बताया कि उन्होंने इन कहानियों का अंग्रेजी अनुबाद कर इन्हें विश्वव्यापी बनाने का प्रयास किया है।

प्रकाशक महेश भारद्वाज ने ‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ को वैश्विक, यथार्थ पर आधारित पठनीय कहानियाँ बताया।

उषा राजे ने अपने वक्तव्य में कहा वे अपनी लेखनी के माध्यम से मातृ भाषा के उन पाठकों तक पहुँचना चाहती हैं जिनकी पहुँच अँग्रेज़ी भाषा साहित्य तक नहीं है परंतु वे पाश्चात्य जीवन-पद्धति, जीवन-मूल्य, कार्य-संस्कृति, मानसिकता और प्रवासी जीवन आदि का फर्स्टहैंड पड़ताल चाहते हैं।

कार्यक्रम का संचालन राकेश दुबे, अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) भारतीय उच्चायोग लंदन ने किया।

कहानी-पाठ किशोरी प्रज्ञा ‘सुरभि’ सक्सेना ने बड़े ही प्रभावशाली और सरस ढंग से किया।
नेहरूकेंद्र लंदन के तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के लगभग सभी गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे और सभागार श्रोताओं और अतिथियों से भरा हुआ था।
*****

पुस्तकः ‘वह रात और अन्य कहानियाँ’
लेखिकाः उषा राजे सक्सेना
प्रकाशकः सामायिक प्रकाशन (श्री महेश भारद्वाज)
3320-21 जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्ग
दरियागंज- नई दिल्ली, भारत
मोबाइल. 919811607086
मूल्य 5 पाउँड या 10 अमेरिकन डालर
भारत-200 रुपए

‘बापू जी’ की पुण्य-तिथि पर श्रद्धा-सुमन

जनवरी 30, 2008

‘बापू जी’ की पुण्य-तिथि पर श्रद्धा-सुमन

आज से ठीक ६० वर्ष पहले
“एक अर्द्ध-नग्न बूढ़ा जो ग्रामीण भारत में बसता था,उसके निधन पर मानवता रोई!” – लूइस फिशर (१८७६-१९७०)।

मानवता आज भी ‘बापू’ को खोज रही है, समय की धूल से ढके हुए उसके पद-चिन्हों को ढूंढ रही है। गांधी जी के साथ ‘महात्मा’ शब्द जोड़ने का साहस मुझ में नहीं है,क्योंकि उन्होंने एक बार कहा था,”इस महात्मा की पदवी ने मुझे बड़ा कष्ट पहुंचाया है,और मुझे एक क्षण भी ऐसा याद नहीं जब इसने मुझे गुदगुदाया हो।”
हाँ, ‘बापू’ संबोधित करते हुए ऐसा लगता है जैसे महात्मा, संत, मसीहा आदि अनेक गुण-वाचक शब्द स्वतः ही ‘बापू’ शब्द में समाहित हो गए हों।

लंदन में लगभग हर मास गांधी जी के पद-चिन्हों पर चलते हुए उनकी यादें ताज़ा रखने के लिए ‘गांधी जी के लंदन की पद-यात्रा’ (Gandhi’s London Walk) का आयोजन किया जाता है। आगामी पद-यात्रा १६ फरवरी २००८ के दिन निश्चित की गई है।

२१ जुलाई २००७ की एक ऐसी ही पद-यात्रा का हाल ‘यूट्यूब’ द्वारा देखिए और सुनिएः-


महावीर शर्मा

वर्ष २००७ के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों को बधाई.

जनवरी 16, 2008

सृजन-सम्मान द्वारा आयोजित सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक ब्लॉग पुरस्कारों के लिए चयन समिति के सदस्य श्री रवि रतलामी जी, बालेन्दु दाधीच जी और संयोजक जय प्रकाश मानस जी का यह जटिल कार्य सराहनीय है. यह कार्य और भी कठिन हो जाता है जब प्रविष्टियों के अतिरिक्त सभी अन्य ब्लॉगों को भी सम्मलित किया गया है. दस के स्केल में अंक देने के लिए निर्धारित मापदंडों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से निर्णय देने के लिए निर्णायक मंडल विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं. श्री रवि रतलामी जी ने स्पष्ट किया है की अंक देते समय ब्लॉगों के विषय की गुणवत्ता, सामयिकता, ब्लॉग की निरंतरता, उसके सक्रिय रहने की अवधि, भाषायी शुद्धता और रोचकता, प्रामाणिकता, पोस्टों की विविधता, कुल पोस्टों की संख्या तथा ब्लॉगिंग के प्रति उनके समर्पण और गंभीरता को पैमाना बनाया है, न कि सिर्फ ब्लॉगों की हिट संख्या को. और, इसी वजह से सिर्फ और सिर्फ 152 हिट्स वाला नैनो विज्ञान भी यहाँ पर सूची में स्थान पाने में सफल हुआ है.
इस प्रकार के आयोजन हिन्दी के प्रसार और विविधमुखी विकास में भी सहायक सिद्ध होते हैं. वह दिन दूर नहीं कि हिन्दी ब्लॉगों की बढ़ती हुई संख्या को देख कर पद्म भूषण सर मार्क टली के हृदय को भी एक सांत्वना मिलेगी जिन्होंने एक बार कहा था कि “जो बात मुझे अखरती है वह है भारतीय भाषाओं के ऊपर अंग्रेज़ी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषाओं के ‘भारतीय संस्कृति’ जिंदा नहीं रह सकती।”

विजेता अनूप जी, अजित जी तथा ममता जी को हार्दिक बधाइयाँ.

शीर्ष क्रम पर चयनित २२ ब्लॉगों में से पीले हाई लाईट में दिए हुए ब्लॉग को छोड़ कर अन्य २१ ब्लौगरों को हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित हैं.

http:// sarthi.info 6.5/10
http://hgdp.blogspot.com/ 6.5/10
http://alizakir.blogspot.com/ 6.5/10
http://nirmal-anand.blogspot.com 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://unmukt-hindi.blogspot.com/ 6/10
https://mahavir.wordpress.com 6/10
http://drparveenchopra.blogspot.com/ 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://nahar.wordpress.com/ 6/10
http://subeerin.blogspot.com/ 6/10
http://paramparik.blogspot.com/ 6/10
http://poonammisra.blogspot.com/ 5/10
http://rajdpk.wordpress.com/ 5/10
http://hemjyotsana.wordpress.com/ 5/10
http://antariksh.wordpress.com/ 5/10
http://hivcare.blogspot.com/ 5/10
http://sehatnama.blogspot.com/ 5/10
http://chhoolenaasmaan.blogspot.com/ 5/10
http://vigyan.wordpress.com/ 4/10
http://nanovigyan.wordpress.com/ 3/10
http://parulchaandpukhraajka.blogspot.com/ 3/10

सम्भव है कुछ लोग सोचते हों कि बहुत से स्तरीय ब्लॉग विचारार्थ सम्मलित नहीं हुए, किंतु श्री रवि रतलामी जी ने ‘सृजन-गाथा’ में इसका स्पष्टीकरण कर दिया है.
महावीर शर्मा

नव वर्ष की कामनाएं

जनवरी 1, 2008
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नव वर्ष की शुभकामनाएं

दिसम्बर 30, 2007

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