जुलाई 19th, 2010 के लिए पुरालेख

यू.के. से प्राण शर्मा की दो लघु कथाएं

जुलाई 19, 2010

दाता दे दरबार विच

प्राण शर्मा

पंडित नरदेव जी नगर के प्रसिद्ध भजन गायक हैं. बहुत व्यस्त रहते हैं. खूब डिमांड है
उनकी. भजन गा गा कर यानि प्रभु का नाम ले लेकर उन्होंने अपना भव्य मकान
खड़ा कर लिया है. महीने में एक दिन वे भजन गायकी का कार्यक्रम अपने घर में भी
रखते हैं. श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. उनके बड़े कमरे में बैठने को जगह नहीं मिलती है.
एक बार मेरा मित्र मुझे पंडित नरदेव जी के घर ले गया था. उनका कीर्तन चल
रहा था. वे अपनी भजन मंडली के साथ भजन पर भजन गाये जा रहे थे. क्या
सुरीली आवाज़ थी उनकी! सुन-सुन कर श्रद्धालु जन प्रेम भाव से झूम रहे थे और
साथ ही साथ धन की बरखा भी कर रहे थे. धन की बरखा होते देख कर पंडित
नरदेव जी का भजन गाने का उत्साह दुगुना-तिगुना हुआ जा रहा था. हर
भजन की समाप्ति पर वे कहते – श्रद्धालुओ, ऐसी संगत बड़े भाग्य से मिलती है .
वातावरण में भक्ति की उफान लेती धारा को देख कर पंडित नरदेव जी ने अपने
अति लोकप्रिय भजन का सुर अलापा —
‘तन, मन, धन सब वार दे अपने दाता दे दरबार विच’.
धुन बड़ी प्यारी थी, मंत्रमुग्ध कर देने वाली. सुन कर पाषाण ह्रदय भी पिघल गये.
श्रद्धालु जन तन, मन तो नहीं वार पाए लेकिन धन वारने में कोई पीछे नहीं हटा. शायद
ही किसीकी जेब बची थी. देखा देखी मेरी जेब भी नहीं बच पाई.
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आकांक्षा

प्राण शर्मा

“अरी ,क्या हुआ जो वो पैंसठ साल का बूढ़ा खूसट है ! है तो करोड़पति न ! !
एकाध साल में बेचारा लुढ़क जाएगा. उसकी सारी की सारी संपत्ति की तू ही तो – – – तब ऐश और आराम से रहना. इंग्लॅण्ड हो या इंडिया कौन छैल–छबीला करोड़ों कीजायदाद की मालकिन का हाथ मांगने को तैयार नहीं होगा ? देखोगी, तुझसे शादी करने के लिए हजारों लड़के ही भागे आयेंगे .”

तीस साल की आकांक्षा को माँ का सुझाव बुरा नहीं लगा.
दूसरे दिन ही अग्नि के सात फेरों के बाद वो बूढ़े खूसट की अर्धांगिनी बन गयी.
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