डर
सुधा अरोड़ा
दुपहर की फुरसती धूप में शेल्फ पर मुस्कुराती किताबें थीं.
करीने से सजी किताबों में से एक नयी सी दिखती किताब को उसकी उँगलियों ने हल्के से बाहर सरका लिया. उसे उलट – पलट कर देखा. यह एक रूमानी उपन्यास था. कवर पर एक आकर्षक तस्वीर थी.
उसने कुछ पन्नों पर एक उड़ती सी निगाह डाली. फिर पहले पन्ने पर उसकी निगाह थम गई . किताब के पहले पन्ने पर दायीं ओर ऊपर से चिपकाई हुई थी.
अब वहां किताब की जगह सिर्फ एक चिप्पी थी.
उसके नाखून भोथरे थे. फिर भी चिप्पी का एक कोना नरम होकर खुला.
उसकी उंगलियाँ अब कौशल में ड़ूब गई. उसे सिर्फ चिप्पी निकालनी थी. किताब का पन्ना खराब किये बिना.
“कोई फायदा नहीं , छोड़ दे” , उसने अपनी उँगलियों से कहा, “इस चिप्पी को हटाने के बाद भी इसके निशान किताब पर रह जाएंगे.”
पर उँगलियों ने सुना नहीं. वे अपने काम में दक्षता से तल्लीन रहीं. तब तक जब तक वह चिप्पी उखड़ नहीं गई.
उसकी मुस्कुराहट फैलने से पहले ही सिमट गई. चिप्पी के साथ किताब का थोड़ा सा कागज़ भी लितढ़ गया था. उस पर लिखा नाम आधा रगड़ खाए किताब पन्ने और आधा चिप्पी पर था.
वह अपनी सोच से लौट आई थी. उसने चिप्पी को कांपते हाथों से दुलारा, सीधा किया, हथेली पर रखा और आईने के सामने जा खड़ी हुई. आईने में नाम सीधा हो गया था.
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एक जादुई ताला जैसे खुला. वह सर थाम कर बैठ गई. वह इस नाम से परिचित थी. यह उसके पति की प्रेमिका का नाम था.
फिर ताकत लगाकर उठी. उसने अपनी उँगलियों को कोसा. क्यों वे कोई न कोई खुराफात करती रहना चाहती है? क्यों?
उसके कानों में एक रूआबदार आवाज़ बजी, वह थरथराने लगी.
उस चिप्पी के पीछे गोंद लगा कर उसे फिर से चिपकाना चाहा. पर कागज़ उँगलियों के निरंतर प्रहार से छीज गया था. वह गीली छाप छोड़ रहा था.
उसने खुली किताब को धूप में रखा और बदहवास सी सारा घर ढूँढती फिरी, वैसी ही चिप्पी के लिए. मेज, दराज, शेल्फ. डिब्बे, फाइलें, लिफ़ाफ़े, अलमारियां, टी.वी. के ऊपर, किताबों के बीच. वह छपे हुए डाक के नीचे का अनछपा कागज था.
आखिर मिला वह – पुरानी डायरी में रखे डाक टिकट के साथ.
उसने उसी साइज़ की चिप्पी फाड़ी, वैसा ही उल्टा नाम लिखा. उसे एहतियात से चिपकाया. फिर उंगली को ज़रा मैला कर उस पर फिरा दिया.
उस चिप्पी को कई कोणों से उसने देखा.
अब उसने राहत की सांस ली. सब ठीक था.
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उसने इत्मीनान से किताब को शेल्फ पर मुस्कुराती दूसरी किताबों के साथ पहले की तरह टिका दिया और दुपहर की फुर्सत ओढ़कर लेट गई.
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