भारत से सुभाष नीरव की दो लघु कथाएं

लेखक परिचय
हिंदी कथाकार/कवि सुभाष नीरव लगभग पिछले 35 वर्षों से कहानी, लघुकथा, कविता और अनुवाद विधा में सक्रिय हैं। अब तक तीन कहानी-संग्रह ”दैत्य तथा अन्य कहानियाँ (1990)”, ”औरत होने का गुनाह (2003)” और ”आखिरी पड़ाव का दु:ख(2007)” प्रकाशित। इसके अतिरिक्त, दो कविता-संग्रह ”यत्किंचित (1979)” और ”रोशनी की लकीर (2003)”, एक बाल कहानी-संग्रह ”मेहनत की रोटी (2004)”, एक लधुकथा संग्रह ”कथाबिन्दु”(रूपसिंह चंदेह और हीरालाल नागर के साथ) भी प्रकाशित हो चुके हैं। अनेकों कहानियाँ, लधुकथाएँ और कविताएँ पंजाबी, तेलगू, मलयालम और बांगला भाषा में अनूदित हो चुकी हैं।
हिंदी में मौलिक लेखन के साथ-साथ पिछले तीन दशकों से अपनी माँ-बोली पंजाबी भाषा की सेवा मुख्यत: अनुवाद के माध्यम से करते आ रहे हैं। अब तक पंजाबी से हिंदी में अनूदित डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें ”काला दौर”, ”पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं”, ”कथा पंजाब-2”, ”कुलवंत सिंह विर्क की चुनिंदा कहानियाँ”, ”तुम नहीं समझ सकते”(जिन्दर का कहानी संग्रह)”, ”छांग्या रुक्ख” (पंजाबी के दलित युवा कवि व लेखक बलबीर माधोपुरी की आत्मकथा), पाये से बंधा हुआ काल(जतिंदर सिंह हांस का कहानी संग्रह), रेत (हरजीत अटवाल का उपन्यास) आदि प्रमुख हैं। मूल पंजाबी में लिखी दर्जन भर कहानियों का आकाशवाणी, दिल्ली से प्रसारण।
हिंदी में लघुकथा लेखन के साथ-साथ, पंजाबी-हिंदी लधुकथाओं के श्रेष्ठ अनुवाद हेतु ”माता शरबती देवी स्मृति पुरस्कार 1992” तथा ”मंच पुरस्कार, 2000” से सम्मानित।
सम्प्रति : भारत सरकार के पोत परिवहन विभाग में अनुभाग अधिकारी(प्रशासन)
सम्पर्क : 372, टाईप-4, लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली-110023
ई मेल : subhneerav@gmail.com
दूरभाष : 09810534373, 011-24104912(निवास)

एक और कस्बा
सुभाष नीरव

देहतोड़ मेहनत के बाद, रात की नींद से सुबह जब रहमत मियां की आँख खुली तो उनका मन पूरे मूड में था। छुट्टी का दिन था और कल ही उन्हें पगार मिली थी। सो, आज वे पूरा दिन घर में रहकर आराम फरमाना और परिवार के साथ बैठकर कुछ उम्दा खाना खाना चाहते थे। उन्होंने बेगम को अपनी इस ख्वाहिश से रू-ब-रू करवाया। तय हुआ कि घर में आज गोश्त पकाया जाए। रहमत मियां का मूड अभी बिस्तर छोड़ने का न था, लिहाजा गोश्त लाने के लिए अपने बेटे सुक्खन को बाजार भेजना मुनासिब समझा और खुद चादर ओढ़कर फिर लेट गये।

सुक्खन थैला और पैसे लेकर जब बाजार पहुँचा, सुबह के दस बज रहे थे। कस्बे की गलियों-बाजारों में चहल-पहल थी। गोश्त लेकर जब सुक्खन लौट रहा था, उसकी नज़र ऊपर आकाश में तैरती एक कटी पतंग पर पड़ी। पीछे-पीछे, लग्गी और बांस लिये लौंडों की भीड़ शोर मचाती भागती आ रही थी। ज़मीन की ओर आते-आते पतंग ठीक सुक्खन के सिर के ऊपर चक्कर काटने लगी। उसने उछलकर उसे पकड़ने की कोशिश की, पर नाकामयाब रहा। देखते ही देखते, पतंग आगे बढ़ गयी और कलाबाजियाँ खाती हुई मंदिर की बाहरी दीवार पर जा अटकी। सुक्खन दीवार के बहुत नज़दीक था। उसने हाथ में पकड़ा थैला वहीं सीढ़ियों पर पटका और फुर्ती से दीवार पर चढ़ गया। पतंग की डोर हाथ में आते ही जाने कहाँ से उसमें गज़ब की फुर्ती आयी कि वह लौंडों की भीड़ को चीरता हुआ-सा बहुत दूर निकल गया, चेहरे पर विजय-भाव लिये !

काफी देर बाद, जब उसे अपने थैले का ख़याल आया तो वह मंदिर की ओर भागा। वहाँ पर कुहराम मचा था। लोगों की भीड़ लगी थी। पंडित जी चीख-चिल्ला रहे थे। गोश्त की बोटियाँ मंदिर की सीढ़ियों पर बिखरी पड़ी थीं। उन्हें हथियाने के लिए आसपास के आवारा कुत्ते अपनी-अपनी ताकत के अनुरूप एक-दूसरे से उलझ रहे थे।

सुक्खन आगे बढ़ने की हिम्मत न कर सका। घर लौटने पर गोश्त का यह हश्र हुआ जानकर यकीनन उसे मार पड़ती। लेकिन वहाँ खड़े रहने का खौफ भी उसे भीतर तक थर्रा गया- कहीं किसी ने उसे गोश्त का थैला मंदिर की सीढ़ियों पर पटकते देख न लिया हो ! सुक्खन ने घर में ही पनाह लेना बेहतर समझा। गलियों-बाजारों में से होता हुआ जब वह अपने घर की ओर तेजी से बढ़ रहा था, उसने देखा- हर तरफ अफरा-तफरी सी मची थी, दुकानों के शटर फटाफट गिरने लगे थे, लोग बाग इस तरह भाग रहे थे मानो कस्बे में कोई खूंखार दैत्य घुस आया हो!

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चोर

सुभाष नीरव

मि. नायर ने जल्दी से पैग अपने गले से नीचे उतारा और खाली गिलास मेज पर रख बैठक में आ गये।

सोफे पर बैठा व्यक्ति उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर उठ खड़ा हुआ।

”रामदीन तुम ? यहाँ क्या करने आये हो ?” मि. नायर उसे देखते ही क्रोधित हो उठे।

”साहब, मुझे माफ कर दो, गलती हो गयी साहब… मुझे बचा लो साहब… मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं… मैं बरबाद हो जाऊँगा साहब।” रामदीन गिड़गिड़ाने लगा।

”मुझे यह सब पसन्द नहीं है। तुम जाओ।” मि. नायर सोफे में धंस-से गये और सिगरेट सुलगाकर धुआँ छोड़ते हुए बोले, ”तुम्हारे केस में मैं कुछ नहीं कर सकता। सुबूत तुम्हारे खिलाफ हैं। तुम आफिस का सामान चुराकर बाहर बेचते रहे, सरकार की आँखों में धूल झोंकते रहे। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।”

”ऐसा मत कहिये साहब… आपके हाथ में सब कुछ है।” रामदीन फिर गिड़गिड़ाने लगा, ”आप ही बचा सकते हैं साहब, यकीन दिलाता हूँ, अब ऐसी गलती कभी नहीं करुँगा, मैं बरबाद हो जाऊँगा साहब… मुझे बचा लीजिए… मैं आपके पाँव पड़ता हूँ, सर।” कहते-कहते रामदीन मि. नायर के पैरों में लेट गया।

”अरे-अरे, क्या करते हो। ठीक से वहाँ बैठो।”

रामदीन को साहब का स्वर कुछ नरम प्रतीत हुआ। वह उठकर उनके सामने वाले सोफे पर सिर झुकाकर बैठ गया।

”यह काम तुम कब से कर रहे थे ?”

”साहब, कसम खाकर कहता हूँ, पहली बार किया और पकड़ा गया। बच्चों के स्कूल की फीस देनी थी, पैसे नहीं थे। बच्चों का नाम कट जाने के डर से मुझसे यह गलत काम हो गया।”

इस बीच मि. नायर के दोनों बच्चे दौड़ते हुए आये और एक रजिस्टर उनके आगे बढ़ाते हुए बोले, ”पापा पापा, ये सम ऐसे ही होगा न ?” मि. नायर का चेहरा एकदम तमतमा उठा। दोनों बच्चों को थप्पड़ लगाकर लगभग चीख उठे, ”जाओ अपने कमरे में बैठकर पढ़ो। देखते नहीं, किसी से बात कर रहे हैं, नानसेंस !”

बच्चे रुआँसे होकर तुरन्त अपने कमरे में लौट गये।

”रामदीन, तुम अब जाओ। दफ्तर में मिलना।” कहकर मि. नायर उठ खड़े हुए। रामदीन के चले जाने के बाद मि. नायर बच्चों के कमरे में गये और उन्हें डाँटने-फटकारने लगे। मिसेज नायर भी वहाँ आ गयीं। बोलीं, ”ये अचानक बच्चों के पीछे क्यों पड़ गये ? सवाल पूछने ही तो गये थे।”

”और वह भी यह रजिस्टर उठाये, आफिस के उस आदमी के सामने जो…” कहते-कहते वह रुक गये। मिसेज नायर ने रजिस्टर पर दृष्टि डाली और मुस्कराकर कहा, ”मैं अभी इस रजिस्टर पर जिल्द चढ़ा देती हूँ।”

मि. नायर अपने कमरे में गये। टी.वी. पर समाचार आ रहे थे। देश में करोड़ों रुपये के घोटाले से संबंधित समाचार पढ़ा जा रहा था। मि. नायर ने एक लार्ज पैग बनाया, एक सांस में गटका और मुँह बनाते हुए रिमोट लेकर चैनल बदलने लगे।

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21 Comments »

  1. 2
    pran sharma Says:

    Subhash NEERAV HINDI AUR PUNJABI KE SAMARTH RACHNAKAR HAIN.
    UNKEE DONO SMARTH LAGHU KATHAAON KO PADH KAR BAHUT
    ACHCHHA LAGAA HAI.

  2. 3
    indli.com Says:

    नमस्ते,

    आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

  3. 4
    रूपसिंह चन्देल Says:

    बहुत ही उत्कृष्ट लघुकथाएं हैं. नीरव नवें दशक के उन उल्लेखनीय लघुकथाकारों में हैं, जिन्होंने आधुनिक लघुकथा की दिशा निर्धारित की और उसे नवीन सोपान तक पहुंचाया. नीरव की लघुकथाएं प्रायः समाज के उपेक्षित वर्ग को जीवन्तता से उद्घाटित करती हैं और पाठक को विचार करने के लिए विवश करती हैं.

    आप और नीरव को हार्दिक बधाई.

    चन्देल

  4. donon laghu kathayen yathrthparak aur marmsparshee hain.

  5. dono hi laghu kathaayein bahut hi acchi lagin..
    bahut dhnywaad..

  6. दोनों ही लघुकथायें सीधा वार करती हैं…बहुत बेहतरीन!

  7. 8

    सम्मानीय सुभाष जी ,
    प्रणाम !
    दोनों लघु कथाए एक प्रशन छोडती है , एक विचार के लिए भी की किसी सम्देदन शेल इलाके में अगर भूल वश ही सही आपतिजनक वास्तु को रखदे तो क्या रूप ले लेता है ,
    दूसरी लघु कथा में ये सन्देश लगा की दफ्तर का एक अदना आदमी अगर छोटी से रिश्वत लेता हुआ पकड़ा जाए तो अधिकारी किते रुतबे से पेश आते है जब खुद बड़ी बड़ी रिश्वत ले तो कुछ चर्चा नहीं होती . दोनों ही सुदर कथानक लिए है , है भी दोनों यथार्त का सामना करती ,
    साधुवाद

  8. क्या कहूँ…..
    कहानियां जैसे दिमाग के सभी तंत्रियों में घुल झनझना गयीं… पूरी तरह शब्दहीन हो गयी मैं…

    लाजवाब…..एकदम लाजवाब !!!!

  9. 10
    Mahendra Dawesar 'Deepak' Says:

    सुभाष जी की दोनों लघुकथाएँ अत्यंत सुंदर लगीं।

    सुभाष जी, आपको और महावीर जी को हार्दिक बधाई,

    महेंद्र दवेसर ‘दीपक’

  10. 11

    सुभाष जी की लघुकथाओं के बारे में बस सुनता आया था.. कभी पढ़ने का मौका नहीं मिला.. आज पढ़ा तो स्समझ में आया कि असली लघुकथा क्या होती है.. निश्चित ही बहुत कुछ सीखा, मेरे काम आएगा.. उनका और आपका आभार सर..

  11. 12
    ashok andrey Says:

    Subhash jee ki dono laghu kathaen vayang sheili me likhee gai hai jo poore tantr par gehre chot karti hain aur hame sochne par majboor karti hain aakhir yeh sab hamare samne kaise ghatit ho jaati hai ati sundar, subhash jee ko tatha aapko bhee itni sundar katha padwane ke liye mai apna aabhaar prakat karta hoon.

  12. 13
    Devi Nangrani Says:

    Pur asar Laghukatahyein apni bhasha, vichar aur prastuti mein bemisaal. sashakt!!!!

  13. 14
    sudha arora Says:

    सुभाष नीरव जी की दोनों लघुकथाएं यथार्थ से बड़ी मार्मिकता के साथ मुठभेड़ हैं .
    सांप्रदायिक दंगे इसी तरह किसी भी छोटी सी घटना से भड़क उठते हैं .
    दूसरी कहानी तो हर दफ्तर की सच्चाई है . बड़े चोर सलामत रहते हैं , बेबस गरीब चोर पकड़ा जाता है .
    सुभाष जी को दोनों लघु कथाओं के लिए बधाई .
    महावीर जी को इनकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
    सुधा अरोड़ा .

  14. 15

    साम्प्रदायिकता एवं भ्रष्टाचार पर तीव्र प्रहार है|यथार्थता के धरातल पर खरी उतरती हैं|
    सुधा भार्गव
    sudhashilp.blogspot.com

  15. 16
    subhash chander Says:

    dono laghukathaen prabhavit karti hain.badhai.

  16. आदरणीय महावीर जी और प्राण साहिब का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी लघुकथाओं अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर अपने प्रबुद्ध पाठ्कों के रू-ब-रू करवाया। मैं उन सभी टिप्पणीकारों का भी दिल से धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मेरी इन रचनाओं पर अपनी बहुमूल्य राय व्यक्त की।

  17. 18
    pran sharma Says:

    SUBHASH NEERAV HINDI AUR PANJABI KE PRATISHTHIT
    SAHITYAKAAR HAIN.UNKEE MARMSPARSHEE LAGHU
    KATHAON SE MAHAVIR.WORDPRESS.COM KEE GARIMAA
    BADHEE HAI.UNKAA HAARDIK DHANYAWAD.

  18. सुभाष नीरव की उत्कृष्ट लघुकथाएं पढ़्कर बहुत अच्छा लगा. काश कि वे पढ् पाएं जिन पर ये कटाक्ष किए गए हैं. लाखों करोड़ों की संख्या में है ये सरकारी लोग, जो अपने ही देश के साथ ग़द्दारी कर रहे हैं.

    शुभकामनाओं के साथ एवं सस्नेह,

    दिव्या माथुर
    ळंदन

  19. दिव्या जी, बहुत अच्छा लगा कि आपने मेरी लघुकथाओं को पढ़ा और अपनी राय भी व्यक्त की। आभारी हूँ।

  20. 21

    भाई सुभाष नीरव की दोनों लघु कथाएं सशक्त और सार्थक हैं.कस्वा को मैं कहानी भी कह देता हूँ पर यह छोटी बात है .बड़ी बात है इस रचना का संवेदनशील विषय और उसका इतना सफल निर्वहन’.चोर ‘लघुकथा का ऐसा सटीक शीर्षक है जो सही वक्त और सही निशाने पर सही चोट करता है.नीरव जी को हार्दिक बधाई और महावीर जी को धन्यवाद,


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