दीपक चौरसिया ‘मशाल’
२४ सितम्बर सन् १९८० को उत्तर प्रदेश के उरई जिले में जन्मे दीपक चौरसिया ‘मशाल’ की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के ही कोंच नामक स्थान पर हुई. बाद में आपने जैव-प्रौद्योगिकी में परास्नातक तक शिक्षा अध्ययन किया और वर्तमान में आप उत्तरी आयरलैंड (यू.के.) के क्वींस विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. शोध में संलग्न हैं. १४ वर्ष की आयु से ही आपने साहित्य रचना प्रारंभ कर दी थी. लघुकथा, व्यंग्य तथा निबंधों से प्रारंभ हुई. आपकी साहित्य यात्रा धीरे-धीरे कविता, ग़ज़ल, एकांकी तथा कहानियाँ तक पहुँची. साहित्य के अतिरिक्त चित्रकारी, अभिनय, पाक कला, समीक्षा निर्देशन तथा संगीत में आपकी गहरी रूचि है. तमाम पत्र-पत्रिकाओं में आपकी विविध विधाओं की रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं में जहाँ एक ओर प्रेम की सहज संवेदना अभिव्यक्ति होती है वहीं सामाजिक सरोकार और विडम्बनाओं के प्रति कचोट स्पष्ट भी दिखाई देती है.
इसी वर्ष आपकी कविताओं का संग्रह “अनुभूति” शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है.
पुस्तक के लिए नीचे लिखे पते पर संपर्क कीजिए:
शिवना प्रकाशन
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Opp. New Bus Stand, Sehore, M.P. 466001, India.
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शनि की छाया
दीपक ‘मशाल’
पूजा के लिए सुबह मुँहअँधेरे उठ गया था वो, धरती पर पाँव रखने से पहले दोनों हाथों की हथेलियों के दर्शन कर प्रातःस्मरण मंत्र गाया ‘कराग्रे बसते लक्ष्मी.. कर मध्ये सरस्वती, कर मूले तु…..’. पिछली रात देर से काम से घर लौटे पड़ोसी को बेवजह जगा दिया अनजाने में.
जनेऊ को कान में अटका सपरा-खोरा(नहाया-धोया), बाग़ से कुछ फूल, कुछ कलियाँ तोड़ लाया, अटारी पर से बच्चों से छुपा के रखे पेड़े निकाले और धूप, चन्दन, अगरबत्ती, अक्षत और जल के लोटे से सजी थाली ले मंदिर निकल गया. रस्ते में एक हड्डियों के ढाँचे जैसे खजैले कुत्ते को हाथ में लिए डंडे से मार के भगा दिया.
ख़ुशी-ख़ुशी मंदिर पहुँच विधिवत पूजा अर्चना की और लौटते समय एक भिखारी के बढ़े हाथ को अनदेखा कर प्रसाद बचा कर घर ले आया. मन फिर भी शांत ना था…
शाम को एक ज्योतिषी जी के पास जाकर दुविधा बताई और हाथ की हथेली उसके सामने बिछा दी. ज्योतिषी का कहना था- ”आजकल तुम पर शनि की छाया है इसलिए की गई कोई पूजा नहीं लग रही.. मन अशांत होने का यही कारण है. अगले शनिवार को घर पर एक छोटा सा यज्ञ रख लो मैं पूरा करा दूंगा.”
‘अशांत मन’ की शांति के लिए उसने चुपचाप सहमती में सर हिला दिया.
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‘शक’
दीपक ‘मशाल’
यूनिवर्सिटी ने जब से कई नए कोर्स शुरू किये हैं, तब से नए छात्रों के रहने की उचित व्यवस्था(हॉस्टल) ना होने से यूनिवर्सिटी के पास वाली कालोनी के लोगों को एक नया व्यापार घर बैठे मिल गया. उस नयी बसी कालोनी के लगभग हर घर के कुछ कमरे इस बात को ध्यान में रखकर बनाये जाने लगे कि कम से कम १-२ कमरे किराये पर देना ही देना है और साथ ही पुराने घरों में भी लोगों ने अपनी आवश्यकताओं में से एक-दो कमरों की कटौती कर के उन्हें किराए पर उठा दिया. ये सब कुछ लोगों को फ़ायदा जरूर देता था लेकिन झा साब इस सब से बड़े परेशान थे, उनका खुद का बेटा तो दिल्ली से इंजीनिअरिंग कर रहा था लेकिन फिर भी उन्होंने शोर-शराबे से बचने के लिए कोई कमरा किराए पर नहीं उठाया. हालाँकि काफी बड़ा घर था उनका और वो खुद भी रिटायर होकर अपनी पत्नी के साथ शांति से वहाँ पर रह रहे थे लेकिन कुछ दिनों से उन्हें इन लड़कों से परेशानी होने लगी थी.
असल में यूनिवर्सिटी के आवारा लड़के देर रात तक घर के बाहर गली में चहलकदमी करते रहते और शोर मचाते रहते, लेकिन आज तो हद ही हो गई रात में साढ़े बारह तक जब शोर कम ना हुआ तो गुस्से में उन्होंने दरवाज़ा खोला और बाहर आ गए.
”ऐ लड़के, इधर आओ” गुस्से में झा साब ने उनमे से एक लड़के को बुलाया.
लेकिन सब उनपर हंसने लगे और कोई भी पास नहीं आया, ये देख झा साब का गुस्सा और बढ़ गया.. वहीँ से चिल्ला कर बोले- ”तुम लोग चुपचाप पढ़ाई नहीं कर सकते या फिर कोई काम नहीं है तो सो क्यों नहीं जाते? ढीठ कहीं के”
एक लड़का हाथ में शराब की बोतल लिए उनके पास लडखडाता हुआ आया और बोला- ” ऐ अंकल क्यों टेंशन लेते हैं, अभी चले जायेंगे ना थोड़ी देर में. अरे यही तो हमारे खेलने-खाने के दिन हैं..”
शराब की बदबू से झा साब और भी भड़क गए- ” बिलकुल शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह शराब पीकर आवारागर्दी कर रहे हो.. अरे मेरा भी एक बेटा है तुम्हारी उम्र का लेकिन मज्जाल कि कभी सिगरेट-शराब को हाथ भी लगाया हो उसने, क्यों अपने माँ-बाप का नाम ख़राब रहे हो जाहिलों..”
उनका बोलना अभी रुका भी नहीं था कि एक दूसरा शराबी लड़का उनींदा सा चलता हुआ उनके पास आते हुए बोला- ”अरे अंकल, आप निष्फिकर रहिये आपके जैसा ही कुछ हमारे माँ-बाप भी हमारे बारे में समझते हैं इसलिए आप जा के सो जाइये.. खामख्वाह में हमारा मज़ा मती ख़राब करिए.”
और वो सब एक दूसरे के हाथ पे ताली देते हुए ठहाका मार के हंस दिए.
अब झा साब को कोई जवाब ना सूझा और उन्हें अन्दर जाना ही ठीक लगा.. उनका मकसद तो पूरा ना हुआ लेकिन उस लड़के की बात ने एक शक जरूर पैदा कर दिया.
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दोनों लघु कथाएँ पसंद आई. गहराई है और सोचने को विवश करती हैं. दीपक को बधाई.
चलिए लघु कथा भी पढ़ लिया !
अच्छा है , विधा के तौर पर चाहे जिसका सहारा लें पर ‘मशाल’ उंचाई पर ही जलाते रहें !
दोनों ही लघु कहानियाँ प्रभावित करती हैं…
regards
दोनों लघु कथाएँ पसंद आई. गहराई है और सोचने को विवश करती हैं. दीपक को बधाई
शनि की छाया और शक….दोनों ही लघुकथाएं अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ी हैं…संक्षिप्त कलेवर में गहन प्रभाव छोड़ने वाली ये कथाएं मशाल जी की लेखनी पर पकड़ को प्रदर्शित करती हैं…
सतत सुन्दर लेखन हेतु इन्हें शुभकामनाएं…
Dono laghu kathaayen saty ye parichay karaati hain … jeevan ka katu saty …
दीपक जी .सब से पहले ये ही कहुगा की आप ने अपनी लघु कथाओं में यथार्थ दिखाया है .पहली लघु कथा में तो लगा ‘मुह में राम बगल में छुरी ;; समान लगी की धार्मिक आदमी रस्ते में एक हड्डियों के ढाँचे जैसे खजैले कुत्ते को हाथ में लिए डंडे से मार के भगा दिय ., पूजा के बाद प्रसाद पुजारी को नहीं दिया मगर पंडित जी ने उनकी गृह दशा सुधरने के लिए यग्य कवने मौन सहमती देता है तो ऐसा लगा की जो दया भाव नहीं रखता , प्रसाद देने से कतराता है , वो पूजा नहीं आडम्बर कर रहा है , कसावट है , लेखनी में .
दूसरी भी थोडासा इसी के समक्ष है की दूसरो को टूक ने पहले खुद को टटोलना चाहिए , वहम आदमी को क्या से क्या बना देता है लडको की छोटी सी बात ने झा साब को शक्की बना दिया, अच्चा कथानक है , बधाई
आदर जोग महावीर साब को भी सादर प्रणाम ,
सादर
प्रभावित करती लघु कथाएं….
दीपक जी ने चलते चलते ‘शक’ को जिस प्रकार प्रस्तुत किया, दाद के काबिल.
आदरणीय दीपक साहब की दोनों ही लघुकथाओं ने प्रभावित किया और अच्छी इसलिए लगी क्योंकि आपकी दोनों ही कथाओं का कथानक मौलिकता के साथ-साथ सन्देश देते हुवे नए विषय के साथ चुना गया हैं, साथ ही भाषा, भाव और कलापक्ष के नजरिये से भी बहुत उम्दा हैं.. पहली लघुकथा समाज में व्याप्त खोखले आडम्बर को परिलक्षित करती हुई इंसान के स्वार्थपरक व्यवहार को दर्शाती है तो दूसरी लघुकथा वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव से लुप्त होते संस्कारों को. उम्मीद है भविष्य में भी आपकी ऐसी ही उम्दा कथाएं नवीन विषय के साथ पढने कोमिलेंगी..
प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए बधाई और आपका आभार !
इस सम्मानित ब्लॉग पर पनाह देने के लिए आदरणीय महावीर सर का आभारी हूँ और इतना डूबकर पढ़ने के लिए आप सबका शुक्रगुज़ार..
DEEPAK JEE KO DONO SASHAKT LAGH KATHAAYEN KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA.
Deepak jee ki ye dono kathaon ne achchha prabhav chhoda hai bahut sahaj hee se apne aas-paas phele aadambaron ko vayakt kar jaati hai ye laghu kathaen, sundar, badhai