आज अमेरिका और कनाडा आदि देशों में मदर्स-डे मनाया जा रहा है. उसके उपलक्ष में प्रसिद्ध कवि ‘डॉ. कुंअर बेचैन’ जी की ‘मां’ पर लिखी एक कविता-
‘मां’
डॉ. कुंअर बेचैन
कभी उफनती हुई नदी हो, कभी नदी का उतार हो मां
रहो किसी भी दिशा-दिशा में, तुम अपने बच्चों का प्यार हो मां
नरम-सी बांहों में खुद झुलाया, सुना के लोरी हमें सुलाया
जो नींद भर कर कभी न सोई, जनम-जनम की जगार हो मां
भले ही दुख को छुपाओ हमसे, मगर हमें तो पता है सब कुछ
कभी थकन हो, कभी दुखन हो, कभी बदन में बुखार हो माँ
जो तुमसे बिछुड़े, मिले हैं कांटे, जो तुम मिलीं तो मिलीं हैं कलियाँ
तुम्हारे बिन हम सभी हैं पतझर, तुम्हीं हमारी बहार हो मां
हरेक मौसम की आफ़तों से, बचा लिया है उढ़ा के आँचल
हो सख्त जाड़े में धूप तुम ही, तपन में ठंडी फुहार हो मां
ये सारी दुनिया है एक मंदिर, इसी ही मंदिर की आरती में
हो धर्मग्रंथों के श्लोक-सी तुम, हृदय का पावन विचार हो मां
न सिर्फ मैं ही वरन् तुम्हारे, ये प्यारे बेटे, ये बेटियां सब
सदा-सदा ही ऋणी रहेंगे, जनम-जनम का उधार हो मां
कि जब से हमने जनम लिया है, तभी से हमको लगा है ऐसा
तुम्हीं हमारे दिलों की धड़कन, तुम्हीं हृदय की पुकार हो मां
तुम्हारे दिल को बहुत दुखाया, खुशी ज़रा दी, बहुत रुलाया
मगर हमेशा हमें क्षमा दी, कठोर को भी उदार हो मां
कहा है जो कुछ यहां बड़ों ने, ‘कुंअर’ उसे कुछ यूं कह रहा है
ये सारी दुनिया है इक कहानी, तुम इस कहानी का सार हो मां
– डॉ. कुंअर बेचैन –
२ एफ – ५१, नेहरू नगर, ग़ाज़ियाबाद, उ.प्र., भारत
MOTHER DAY PAR KAVIVAR KUNWAR BECHAIN KEE KAVITA MAIN
BADE MANOYOG SE PADH GYAA HOON.KITNAA STEEK KAHAA HAI
UNHONNE–
YE SAAREE DUNIYA HAI IK KAHANI
TUM IS KAHANI KAA SAAR HO MAA
DHER SAAREE SHUBH KAMNAAYEN.
सब की कबिताओं का एक ही सार है कि मां के साय में ही शांति है।
बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!मात्री दिवस पर उम्दा प्रस्तुती!
कहा है जो कुछ यहां बड़ों ने, ‘कुंअर’ उसे कुछ यूं कह रहा है
ये सारी दुनिया है इक कहानी, तुम इस कहानी का सार हो मां।
कुँअर बेचैन साहब तो उस समय से छाये हुए हैं जब हम बच्चे हुआ करते थे, इन्हें सुनने का आनंद ही कुछ और होता रहा है। काश इसका ऑडियो सुनने को मिल जाता।
भावपूर्ण रचना…मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
बेचैन जी की कविता बहुत अच्छी लगी.
पूरा अंक ही बहुत बेहतरीन है.
–ख़लिश
माँ की ममता का नहीँ कोई शुमार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
माँ की ममता का नहीँ कोई शुमार
माँ है सन्ना-ए-अज़ल का शाहकार
माँ से है गुलज़ार-ए-हस्ती मेँ बहार
माँ है ऐसा गुल नहीँ है जिसमेँ ख़ार
माँ का कोई भी नहीँ नेअमल बदल
यह हक़ीक़त है सभी पर आशकार
माँ है वह गहवारा-ए-अमनो सुकूँ
जिस से है माहौल घर का साज़गार
माँ का है मरहून-ए-मिन्नत यह वजूद
है मताए ज़िंदगी माँ पर निसार
माँ नहीँ होती अगर होता कहाँ
आज जो हासिल है यह इज़ज़ो वक़ार
माँ की शफक़त हैँ जहाँ मे बेमिसाल
माँ है घर मेँ एक नख़ल-ए-सायादार
हकके मादर हो नहीँ सकता अदा
माँ है बर्क़ी रहमत-ए-परवरदिगार
Dr.BARQI SAHIB KYAA KHOOB KAHAA HAI AAPNE—
MAA NAHIN HOTEE AGAR HOTAA KAHAN
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MAA KEE SHAFQAT HAI JAHAN MEIN BEMISAAL
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MAA HAI GHAR MEIN EK NAKHAL-E – SAAYAADAAR
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MAA HAI ” BARQEE ” RAHMAT -E- PARWARDIGAAR
shubh kamnaayen aapko
shreshtha rachna.
nice
हर मज़हब से ऊंचा ,
हर धर्म से बुलंद है
माँ एक शब्द ऐसा
जो जन्नत भू पर !
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी जी और डा. कुंवर बैचैन जी की
उत्कृष्ट रचनाओं के साथ
आदरणीय महावीर जी व आदरणीय प्राण भाई साहब के सम्पादन में
मंथन पर हम
सब शामिल हैं ………..
यही बार बार कहने के लिए, कि
” माँ देवो भव` ”
सादर,
– लावण्या
डॉ कुँअर बेचैन को हम बचपन से सुनते-पढ़ते आए हैं। उनकी एक-एक पंक्ति पर वाह-वाह कह उठने की आदत-सी बन गई है। वह हमारे गुरु भी हैं और सम्माननीय मित्र होने का गौरव भी उन्होंने हमें दिया है। मातृदिवस पर उनकी कविता का चुनाव प्रशंसनीय है।
Dr Kunvar jee ki kavita ‘MAA’ bahut sundar rachna hai Maa ke bageir iss sansar mei kuchh bhee to nahi hai vo to hamaara swarg hai iss dharaa par uske binaa iss dharaa par sub kuchh soona hai mai iss rachna ko padvane ke liye aapka tatha Bechein jee ka aabhar vayakt karta hoon
‘सदा-सदा ही ऋणी रहेंगे, जनम-जनम का उधार हो मां’
यही सहक है..इस ऋण से कभी इंसान उबर नहीं सकता.
_इस भावपूर्ण कविता के अंत में लिखी पंक्तियाँ मानो सब कुछ कह गयी हैं कि यह दुनिया एक कहानी है और इस कहानी का सार ही माँ है.कुंवर बैचेन जी की आवाज़ में भी इसे सुनना चाहते हैं.उनकी कविता हम तक पहुंचाई , आप का आभार.
What a lovely post! I am so glad you chose to publish it.
न सिर्फ मैं ही वरन् तुम्हारे, ये प्यारे बेटे, ये बेटियां सब
सदा-सदा ही ऋणी रहेंगे, जनम-जनम का उधार हो मां !!!
माँ…. इस एक शब्द के उच्चारण मात्र से ही जब ह्रदय तरल हो जाता है तो इसके आगे कुछ कह पाने योग्य बचता कहाँ है….
बहुत बहुत सुन्दर भावुक और मनमोहक रचना…
dil bhar aayaa…
manbhaban rachna hai ..