गणतंत्र दिवस पर शाहिद मिर्ज़ा ‘शाहिद’ की ग़ज़ल

गणतंत्र दिवस पर “महावीर” और “मंथन” की ओर से
शुभ कामनाएं

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भारत से पत्रकार

शाहिद मिर्ज़ा ‘शाहिद’ की ग़ज़ल

जश्ने-जम्हूरी हमें यूं भी मनाना चाहिये
क़ौमी यकजहती का इक सूरज उगाना चाहिये

दर्द तेरे ज़ख्म का उभरे मेरे दिल में अगर
आंख में तेरी, मेरा आंसू भी आना चाहिये

वो जो कल बिस्मिल भगत अशफाक़ के सीनों में था
नौजवानों में वही जज़्बा पुराना चाहिये

फिर यहां टैगोर का गूंजे फिज़ां में राष्ट्रगान
फिर यहां इक़बाल का क़ौमी तराना चाहिये

साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

16 Comments »

  1. गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    फिर यहां टैगोर का गूंजे फिज़ां में राष्ट्रगान
    फिर यहां इक़बाल का क़ौमी तराना चाहिये

    बहुत उम्दा शाहिद भाई..आनन्द आ गया!

  2. 2

    वो जो कल बिस्मिल भगत अशफाक़ के सीनों में था
    नौजवानों में वही जज़्बा पुराना चाहिये

    फिर यहां टैगोर का गूंजे फिज़ां में राष्ट्रगान
    फिर यहां इक़बाल का क़ौमी तराना चाहिये
    शाहिद मिर्ज़ा जी की कलम को सलाम । आपका धन्यवाद । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

  3. श्रद्देय महावीर जी. सादर प्रणाम
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    इस पावन बेला पर आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ
    जज्बात पर भी है जश्न का माहौल
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
    http://shahidmirza.blogspot.com/2010/01/blog-post_26.html

  4. 4
    digamber Says:

    साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
    और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये

    वाह …….. सलाम है मेरा शाहिद साहब के जज़्बे को ………. हर शेर में मातृ भू की सुगंध बसी है ……. देश भक्ति का जोश लहलहा रहा है ……….

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

  5. 5
    ashok andrey Says:

    phir yahaan Taigor ka goonje phinjaan mei rastrgaan
    phir yahaan Iqbaal ka koumii taraana chaheeye-
    bahut sundar rachnaa jisme ek jajbaa hei desh ke liye jo har yuvak ko prerit kartaa hei desh ke liye marne/jeene ke liye.
    iss sundar rachna ke liye mai Shahid Mirja jee ko mubaarakbad deta hoon

  6. 6
    pran sharma Says:

    DARD TERE ZAKHM KAA UBHRE MERE DIL MEIN MAGAR
    AANKH MEI TEREE ,MERAA AANSOO BHEE AANAA CHAAHIYE
    BAHUT KHOOBSOORAT SHER KAHAA HAI AAPNE.UMDA
    GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE.

  7. 7
    ismat zaidi Says:

    shahid sahab,bahut khoob
    dard tere zakhm ka…………………………
    ye sher bhaichare ki saari sifat samet kar sab se aage nikal gaya ,
    halanki koi bhi sher kam anke jane ke layaq nahin
    hubbulwatani se labrez is kalam aur jazbe ke liye mubarakbad qubool farmayen.

  8. शाहिद जी
    गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनाएं.
    एक निहायत ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए धन्यवाद और बधाई.
    पूरी ग़ज़ल में जज़्बात और अलफ़ाज़ का जादू तारी है.
    दर्द तेरे ज़ख्म का उभरे मेरे दिल में अगर
    आंख में तेरी, मेरा आंसू भी आना चाहिये
    इस शेर में तो आपकी क़लम को नमन करता हूँ.

  9. 9

    शाहिद जी की इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है.

    साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
    और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये

    दर्द तेरे ज़ख्म का उभरे मेरे दिल में अगर
    आंख में तेरी, मेरा आंसू भी आना चाहिये

    बहुत सुन्दर. राष्ट्रीयता से लबरेज.

    – सुलभ

  10. श्रद्देय महावीर जी, सादर प्रणाम
    ‘क़लम को नमन’ ???
    ये तीन शब्द मेरी आंखें नम कर गये..
    मुझे या मेरे क़लम को सिर्फ़ और सिर्फ
    आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है. हमेशा…

    आपकी मुहब्बत और इनायत के लिये
    बहुत अहतराम के साथ
    ‘हम दोनों’ का सलाम कबूल फ़रमायें.

    देश भक्ति की भावना से ओत-प्रोत
    इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिये
    सभी वरिष्ठजनों और साथियों का
    तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

  11. 11

    आभार इस सुन्दर प्रस्तुती पर

    regards

  12. 12
    तिलक राज कपूर Says:

    गणतंत्र दिवस की सभी को हार्दिक बधाई।

    शाहिद भाई,
    ‘मुशायरा लूट लिया’ तो पुरानी बात हो गयी। आपकी ग़ज़ल तो लाल बत्‍ती हो गयी। और अगर लाल बत्‍ती वाली बात सही समझ ली गयी तो शायद एक नया मुहावरा जन्‍म ले चुका है शायरी की दुनिया में। स्‍पष्‍ट कर ही दूँ। कभी-कभी हवाओं में कुछ ऐसा गूँज रहा होता है कि सारा आलम पल भर को ठहर जाता है, बस ये ग़़ज़ल कुछ ऐसी ही है। मुझे नहीं मालूम कि आपने किसी मुशायरे में इसे पढ़ा है या नहीं, लेकिन दावे के साथ कह सकता हूँ कि मुकर्रर-इरशाद की आवाजें मुशायरे को इस ग़ज़ल से आगे बढ़ने ही नहीं देंगी।
    बहुत-बहुत बधाई।

  13. साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
    और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये
    क्या बात है शाहिद साहब. बहुत शानदार गज़ल है. आभार.

  14. 14
    padmsingh Says:

    साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
    और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये
    ……बेहद खूबसूरत और मर्मस्पर्शी गज़ल .बहुत बहुत बधाई

  15. 15
    padmsingh Says:

    दर्द तेरे ज़ख्म का उभरे मेरे दिल में अगर
    आंख में तेरी, मेरा आंसू भी आना चाहिये
    …..मिर्ज़ा साहब … पिछली बार इस ब्लॉग पर आपकी ये गज़ल पढ़ी …जल्दी में देख गया था …. पर उसके लफ्ज़ जेहन में गूँज रहे थे … आज फिर इसे पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पाया … आप ने जादू बिखेर दिया है ….. तारीफ करना सूरज को आईना दिखाना है … ऊपर लिखा एक शेर ही अपने आप में इंसानियत के लिए सबक है …….
    किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूँ ….. कुल मिला कर फ़िदा हो गया

  16. 16
    padmsingh Says:

    साज़िशों से जो झुकाना चाहते हैं, अब उन्हें
    और ऊंचा ये तिरंगा कर दिखाना चाहिये
    ……. जज्बे को सलाम !


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