भोपाल में तेजेन्द्र शर्मा का रचना पाठ एवं पुस्तक लोकार्पण
: उर्मिला शिरीष
(भोपाल) – संस्कृति, साहित्य तथा ललित कलाओं के लिए समर्पित संस्था स्पंदन भोपाल द्वारा दिनांक २६ नवंबर ०९ को स्वराज भवन, भोपाल में लंदन के प्रतिष्ठित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा की अब तक प्रकाशित संपूर्ण कहानियों के प्रथम खण्ड सीधी रेखा की परतें का लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया।
(बाएं से प्रो. रमेश दवे, तेजेन्द्र शर्मा, ज्ञान चतुर्वेदी, मनोज श्रीवास्तव)
इस अवसर पर तेजेन्द्र शर्मा ने इस संग्रह से अपनी बहुचर्चित कहानी कैंसर का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक तथा शिक्षाविद् प्रो. रमेश दवे ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात व्यंग्यकार डा. ज्ञान चतुर्वेदी उपस्थित थे। विशिष्ट अतिथि थे श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव, आयुक्त जनसंपर्क म.प्र. शासन।
इससे पूर्व संस्था के अध्यक्ष डा. शिरीष शर्मा तथा सचिव गायत्री गौड़ ने अतिथियों का स्वागत किया।
श्री मनोज श्रीवास्तव ने अपने लिखित आलेख का पाठ करते हुए तेजन्द्र शर्मा की कहानियों को ख़ालिस हिन्दुस्तानी कहानियां बताया। उनका मानना था कि तेजेन्द्र की कहानियां करुण हैं। उनके पात्र स्मृतियों में रहते हैं। मृत्यु की अनेक अंतरछवियां इन कहानियों में देखने को मिलती हैं।
डा. आनंद सिंह ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा सामान्य कहानीकार नहीं हैं। वे इंटेलिजेण्ट और नॉलेजेबल कहानीकार हैं। वे घटनाओं का तार्किक चित्रण करते हैं। वे ऐसी पृष्ठभूमि तथा परिवेश के रचनाकार हैं जिसकी तुलना अन्य किसी रचनाकार से नहीं की जा सकती। वे अपनी कहानियों में महीन आध्यात्मिकता का सृजन करते हैं। उनकी कहानियों में मानवता का समग्र वेदना तरल रूप में काम करती है। तेजेन्द्र शर्मा के कहानी पाठ करने के नाटकीय ढंग की भी उन्होंने तारीफ़ की।
मुख्य अतिथि डा. ज्ञान चतुर्वेदी ने कहानी की परम्परा को विस्तार से रखा। प्रेमचन्द से लेकर नये कहानीकारों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने प्रत्येक धारा की विशिष्टताओं को रेखांकित किया। डा. ज्ञान चतुर्वेदी के अनुसार कहानी में किस्सागोई तथा भाषा की कलात्मकता तथा सौन्दर्य बोध होना चाहिये। तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में ये तत्व हैं। उन्होंने आगे कहा कि कैंसर एक बड़ी कहानी बनते बनते रह गयी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. रमेश दवे ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां लोग और रोग के बीच कंट्राडिक्शन को सामने लाती हैं। उनकी कहानियां मृत्यु का बोध करवाती हैं। कैंसर कहानी हो या अन्य इनमें वैकल्पिक जीवन उभर कर आता है। कहानियां जो व्यक्ति और परिवार की संवेदना को लोक संवेदना में बदल देती हैं। कैंसर जैसी कहानियों में आई करुणा को ट्रांसफ़ॉर्म कर देना रचनात्मक लेखक का फ़र्ज़ बनता है। तेजेन्द्र अपनी कहानियों में मानसिक द्वन्द्वों को बख़ूबी निभाते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत है भाषा का प्रयोग।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए उर्मिला शिरीष ने तेजेन्द्र शर्मा के व्यापक अनुभव जगत की बात कही।
कार्यक्रम में अन्य गणमान्य अतिथियों के अतिरिक्त राजेश जोशी, हरि भटनागर, वीरेन्द्र जैन, राजेन्द्र जोशी, मुकेश वर्मा, स्वाति तिवारी, आशा सिंह तथा अल्पना नारायण भी उपस्थित थे।
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सीख
आचार्य संजीव ‘सलिल’
भारत माता ने अपने घर में जन-कल्याण का जानदार आँगन बनाया. उसमें सिक्षा की शीतल हवा, स्वास्थ्य का निर्मल नीर, निर्भरता की उर्वर मिट्टी, उन्नति का आकाश, दृढ़ता के पर्वत, आस्था की सलिला, उदारता का समुद्र तथा आत्मीयता की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन के पौधे में प्रेम के पुष्प महक रहे थे.
सिर पर सफ़ेद टोपी लगाये एक बच्चा आया, रंग-बिरंगे पुष्प देखकर ललचाया. पुष्प पर सत्ता की तितली बैठी देखकर उसका मन ललचाया, तितली को पकड़ने के लिए हाथ बढाया, तितली उड़ गयी. बच्चा तितली के पीछे दौड़ा, गिरा, रोते हुए रह गया खडा.
कुछ देर बाद भगवा वस्त्रधारी दूसरा बच्चा खाकी पैंटवाले मित्र के साथ आया. सरोवर में खिला कमल का पुष्प उसके मन को भाया, मन ललचाया, बिना सोचे कदम बढाया, किनारे लगी काई पर पैर फिसला, गिरा, भीगा और सिर झुकाए वापिस लौट गया.
तभी चक्र घुमाता तीसरा बच्चा अनुशासन को तोड़ता, शोर मचाता घर में घुसा और हाथ में हँसिया-हथौडा थामे चौथा बच्चा उससे जा भिड़ा. दोनों टकराए, गिरे, कांटें चुभे और वे चोटें सहलाते सिसकने लगे.
हाथी की तरह मोटे, अक्ल के छोटे, कुछ बच्चे एक साथ धमाल मचाते आए, औरों की अनदेखी कर जहाँ मन हुआ वहीं जगह घेरकर हाथ-पैर फैलाये. धक्का-मुक्की में फूल ही नहीं पौधे भी उखाड़ लाये.
कुछ देर बाद भारत माता घर में आयीं, कमरे की दुर्दशा देखकर चुप नहीं रह पायीं, दुःख के साथ बोलीं- ‘ मत दो झूटी सफाई, मत कहो कि घर की यह दुर्दशा तुमने नहीं तितली ने बनाई. काश तुम तितली को भुला पाते, काँटों ओ समय रहते देख पाते, मिल-जुल कर रह पाते, ख़ुद अपने लिये लड़ने की जगह औरों के लिए कुछ कर पाते तो आदमी बन जाते.
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तेजेन्द्र जी को वैब पर पढ़ऩे का अवसर तो मिलता ही रहता है, अब शायद भोपाल में भी मुद्रित पुस्तक मिल जाये।
बधाई
आचार्य जी आपने तो कोई पर्दा ही नहीं रखा, आप कहेंगे कि अपनों से पर्दा कैसा; यथास्थिति प्रस्तुत करने में संकोच कैसा। सारा घर ही जब तितली के पीछे पड़ा हो तो अब दुराव छुपाव क्यूँकर। सीधी बात सीधे शब्दों में व्यक्त करना वह भी संक्षिप्त में, कोई लंबा ताना बाना नहीं कहानी का, साफगोई का यह साहस प्रशंसनीय है।
बधाई।
तिलक राज कपूर
तेजेन्दर जी को ब्लाग्ज़ पर और पत्रिकाओं मे पढ्ने का अवसर मिलता रहता है बहुत प्रभावित हूँ इनकी गज़ल से और कहानियों से इन्हें बहुत बहुत बधाई। और आचार्य वर्मा जी की लघु कथा भी कवितातमक लहज़े मे ही लगी इतनी सुन्दरता से आज भारत माँ के जो दुर्दशा है उसे तुतली और बच्छे के माधयम से दर्शाया है उनकी कलम को तो रोज़ सलाम करती हूँ। मा शार्दे उनकी कलम मे और मन मे निवास करती हैं। धन्यवाद और बधाई
Bhopal mein Spandan sanstha dwara aayojit Tejendra Sharma kee sampoorn kahaniyon ke pratham
khand ” Seddhee rekha kee parten” kaa lokarpan samaroh kee jankaariyan bahut achchhee lagee
hain.Jaankaariyan dene ke liye kahanikar Urmila shreesh ko dhanyawad.
Aacharya Sanjeev Salil kee laghukatha ” Seekh” ne kaafee prabhavit kiya hai.Achchhee laghu
katha ke liye unhen badhaaee.
Salil ji aapki Laghukathayein aajke wakt ki chunaution se roo baroo karati hui hamare antarman mein aur soch karwatein la deti hai. bahut hi achi laghukathayein!!!
Tejendra ji aapko bahut bahut badhayi is safal Lokarpan ke liye