यू.के. से नीरा त्यागी की लघुकथा

“वो ऐसा नहीं है…….”

नीरा त्यागी, यू.के.

वो करीब दो महीने से नहीं मिले थे। वह रोज उसको फ़ोन करता, एस एम् एस करता, वोयेस मेल पर मेसिज छोड़ता और बाद में मन-मार कर अकेले पीने लगता। दो महीनो से यही सिलसिला जारी था। वह उससे शोपिंग माल में टकराती है उसके कुछ बोलने से पहले ही कहती है “हमें बात करनी चाहिए, लेकिन यहाँ नही, मैं आज शाम तुम्हें फ़ोन करूंगी…”
वह शाम ढलने से पहले ही उसके फोन का इंतज़ार करने लगा है और हर रिंग को उसका फोन समझ उतावला हो उठाता है और इसी गलती में एक दोस्त का फ़ोन उठा लिया, आजकल उसे एकांत पसंद है इसलिए वो सबसे दूरियां रखता है….. पर मना करने भी वो पीजा बॉक्स के साथ उसके पास आ धमका…अपने दोस्त से नजरें चुरा वो बार-बार सेल फ़ोन की और देखता है, रात के साढ़े ग्यारह बजे उसकी बैचनी और पीने की रफ़्तार दोनों काफ़ी तेज़ हो गए हैं…

” साले तू पागल हो गया है उस गोरी के पीछे….. क्यों पी- पी कर अपने को मिटा रहा है तेरे से पहले कितने होंगे उसके और अब पता नहीं किसके पास सो रही होगी, शादी के बाद डाइवोर्स लेती… तुझे घर से बाहर करती…. अच्छा हुआ अभी पीछा छूटा” उसका दोस्त कहता है।

“देख तू उसके बारे में कुछ मत बोल, वो ऐसी नहीं है चार साल से उसे जानता हूँ क्या नहीं किया उसने मेरे लिए, जब भी यहाँ आती, फ्लैट साफ़ करती, किचन बाथरूम चमकाती, फ्रिज खाली देख सुपर मार्किट को दौड़ जाती। मेरे ऍम बी ए के एग्जाम की तैयारी उसी ने कराई, रात के तीन बजे तक बैठ कर मेरे नोट्स बनाए, मेरी सारी असाइंमेंट टाईप की, मेरी हर परेशानी और जिम्मेदारी उसने अपनी बना ली। मैं उसके परिवार का सदस्य बन गया था, उसका डेड मुझे सन- सन करके बुलाता था, उसकी माँ मेरे लिए केरेट केक बेक करती। वो मुझसे अक्सर पूछती अपने दोस्तों और परिवार से कब मिलवाओगे। गलती सारी मेरी है वो स्कुरीटी और स्टेबिलिटी चाहती थी और मैं उसे बिना अपनाए उसका सब कुछ,  मुझे यकीन है अपनी गलती सुधारने का एक मौका जरूर देगी. तुम्हे नहीं मालूम उसने…

तभी एस ऍम एस आता है वो झपट कर टेबल से फ़ोन उठाता है और बिना आँख झपके उसे पढ़ता है “देखो मेरे साथ कोई और मूव हो गया है मैंने अपने फ्लैट का ताला आज बदल लिया है यदि तुम चाबी ना भी लौटाना चाहो तो कोई बात नही”

वो बाथरूम जाने का बहाना बना, वाश बेसिन का टैप खोल, शीशे के सामने अपनी नम आखों को पोंछ, मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ बाहर आता है मोबाइल फ़ोन पर उसे उतार उसके लंबे बाल, नीली आखों और पतले होठों की तारीफ़ करते हुए उसे अपने दोस्त से मिलवाता है और ग्लास को एक ही साँस में खाली करके, … गंभीर होकर कहता है…

” यार वो ऐसी बिल्कुल नहीं है जैसा तू सोचता है…. “

नीरा त्यागी, यू.के.पेंटिंग – मेग्गी जा

14 Comments »

  1. 1

    देखो मेरे साथ कोई और मूव हो गया है मैंने अपने फ्लैट का ताला आज बदल लिया है यदि तुम चाबी ना भी लौटाना चाहो तो कोई बात नही
    मन भर आया …..क्या रिश्ते ऐसे ही होते हैं….. सोचने पर मजबूर करती…..
    regards

  2. 2
    Sulabh Says:

    सिक्क्योर होम बट अन-सिक्क्योर रिलेशन

  3. 4

    तथाकथित उन्नत जीवन का यथार्थ उद्घाटित करती मर्मस्पर्शी लघुकथा.

  4. 5

    कथ्य का अच्छा निर्वाह, बधाई।

  5. 6
    Roop Singh Chandel Says:

    Laghukatha achhi hai lekin katha nirvah mein kuchh khatakata raha.

    Chandel

  6. एक दुनिया ऐसी भी…अच्छा है कभी साबका नहीं हुआ सीधे…

    एक छाप छोड़ गई यह कहानी भी.

  7. एक अच्छी और सधी हुई लघुकथा। नीरा जी को बधाई !

  8. 9
    Tilak Raj Says:

    पता नहीं किसने कहा था यह शेर कि:
    कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
    मगर धरती की बेचैनी, कोई बादल समझता है।
    अब कोई बादल बनकर कहानी में छाई बेताबी, छटपछाहट और बेचैनी देखे, देखते ही बनती है।
    तिलक राज कपूर

  9. 10
    pran sharma Says:

    ACHCHHEE LAGHUKATHA KE LIYE NEERA JEE KO BADHAAEE.

  10. 11

    adbhut………magar vishvasneeya……..

    aapki prastuti ko naman….
    Neera g ko badhai….

  11. 12
    digamber Says:

    भावनाएँ हर किसी में होती हैं ……. दिल हर किसी का धड़कता है ……. बहुत ही भावुक कहानी ……

  12. 13
    Ranjana Says:

    तथाकथित आधुनिक जीवन शैली और उसमे संबंधों की स्थिति को अपनी इस लघुकथा में बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से आपने उकेरा है…
    भावपूर्ण तथा प्रभावपूर्ण सुन्दर लघुकथा….

  13. 14
    ashk andrey Says:

    ek achchhi laghu kathaa ke liye mai neera jee ko badhaai deta hoon apne tareeke se prabhaav chhodne men sakskam hai


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