प्रेमिका
-प्राण शर्मा
अनुरागी और मधुरिमा के बीच इन्टरनेट पर रोज़ ही प्रेम-वार्तालाप होना शुरू हो गया. प्रेम-वार्तालाप में वे दोनो इतना खो जाते कि उन्हें खाने-पीने की कोई सुध नहीं रहती. मधुरिमा प्यारी-प्यारी और मधुए-मधुर बातें करती. इश्क के रटे हुए शेर सुनाती. अनुरागी भी कुछ कम नहीं थे. प्रेम करने के वे सब गुर जानते थे. कोलेज के दिनों में वे एक-एक करके तीन लड़कियों से प्रेम की पींग चढ़ा चुके थे. साथियों में रांझा के नाम से विख्यात थे वे. मधुरिमा को देखा तो कभी था नहीं उन्होंने लेकिन जब वे उसकी सुन्दरता की भूरी-भूरी प्रशंसा करते -” मधुरिमा, बातें करने में आप कितनी मधुर हैं , देखने में कितनी सुन्दर हैं शायद ही आप जैसा कोई संसार में हैं ” तो मधुरिमा खिल-खिल जाती.
एक दिन मधुर-मधुर बातों के बीच मधुरिमा ने अपने मन की बात कह सुनायी- ” मेरे मन के राजा अनुरागी जी ,आपसे मैं ब्याह रचाना चाहती हूँ . “जवाब में अनुरागी ने कहा – “ये तो नामुमकिन है. आपकी और मेरी उम्र में बहुत फर्क है. मैं ठहरा बाल-बच्चों वाला और आप ——- “. मधुरिमा ने अनुरागी की बात को काट कर तुंरत कहा – “तो क्या हुआ, मैं कौन सी कुंवारी हूँ. मैं भी बाल – बच्चों वाली हूँ.”
अनुरागी ने मधुरिमा को बहुत समझाया लेकिन वह कब मानने वाली थी और अनुरागी से ब्याह रचाने की जिद पर अड़ी रही.
अनुरागी चिंता के सागर में गोते लगाने लगे – ऐ भगवान, मुझे बचा. मेरी तौबा अब प्रेम-वेम से. कैसी मुसीबत मोल ले ली है मैंने!
एक दिन मधुरिमा ने कह दिया- ” मुझको यू.के का वीजा मिल गया है. मैं सबकुछ छोड़- छाड़ कर आपके पास आ रही हूँ “.
सुनकर अनुरागी के पसीने छूट गये. रात की नींद उड़ गयी उनकी. सारी रात करवटें लेते हुए बीती उनकी.
सुबह अनुरागी ने डरते -डरते अपनी पत्नी साहिबा को सारा वृत्तांत सुनाया .
” वो आपसे शादी रचाने आ रही है तो क्या हुआ? सौतन का स्वागत है.”
” पत्नी हो तो ऐसी !” अनुराग पत्नी की प्रशंसा अपने मन में करने ही लगा था कि उसके कानों में पत्नी के ये शब्द पड़े-
“मधुरिमा कोई और नहीं, मैं ही थी. अपने दफ्तर से मैं ही आपसे चैट करती थी.”
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जूता बनाम जूती
-प्राण शर्मा
श्रीमान लाल और श्रीमती लाल का कवि-सम्मेलनों में आना-जाना लगा रहता है. उनकी कवितायें कैसी भी हों लेकिन गवैयों जैसा स्वर पाया है दोनों ने. दोनो की खूब मांग है. न कभी टैक्स का भुगतान और न ही घर में दाल-भात बनाने की चिंता. दोनो की पाँचों उँगलियाँ घी में.
आज सुबह ही श्रीमान लाल और श्रीमती लाल अलग-अलग कवि-सम्मलेन से घर लौटे थे. दोनो को लम्बे सफ़र की थकान थी. श्रीमान लाल हाथ-मुँह धोकर गुसलखाने से बाहर निकले तो अपने जूतों को देख कर घरवाली से बोले – “लो, जूते पर जूता फिर चढ़ा हुआ है.”
पत्नी अपने जूतों को भी देखकर बोल उठी- “पतिदेव जी, अकेला आपका जूता ही नहीं, देखिये मेरी जूती भी जूती पर चढ़ी हुई है..”
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जूते पर जूता चढ़ने का यह अर्थ है कि व्यक्ति फिर यात्रा की तैयारी में है.
एक उर्दू की शायरा शबाना यूसफ ने लिखा है:
अभी तो पहले सफ़र की थकान है पावों में
कि फिर से जूती पे जूती मेरी चढ़ी हुई है.
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अगला अंक: २८ अक्टूबर २००९
प्राण शर्मा की दो लघुकथाएं
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लाजबाब !!
ha ha dono katha ek muskaan chod gayi waah.
जबरदस्त प्राण जी जबरदस्त…वाकई..
sundar laghu kathaayen hain.
– vijay
पहली कtथा पडः कर तो मज़ा आ गया ये अन्तर्ज़ाल भी क्या शै है । कितने भेद खोल दिये पति के बहुत सुन्दर कथा हैदूसरी भी अच्छी है घर मे खाना बनाना ही ल्यों कवि सम्मेलन इसी लिये तो होते हैं श्रोता कौन सा कविता सुनने जाते हैं। मगर आज तो फंस गये जूते पे जूता चढा होने के अर्थ है कि उनके घर महमान आ रहे हैं । अब पता चलेगा अच्छी कहानियों खै लिये आदर्णीय प्रान जी को बधाई और आपका धन्यवाद्
आदरणीय प्राण जी
दोनों लघुकथाएं पढ़ गया. ’प्रेमिका’ ने चौंकाया . हालांकि इंटरनेट ने ऎसे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं की पोलें खोली हैं लेकिन वे समाचार ही बन पाए — आपने जिस सहत भाषा में कहानी कही वह श्लाघनीय है.
जूता बनाम जूती पढ़कर लगा कि कुछ रह गया है. इस टोटके के बारे में सोचा तो रहस्य उद्घाटित हो गया. शेष निर्मला.कपिला जी ने खोल दिया.
बधाई
चन्देल
प्राण साहब की जबरदस्त लघु कथाओं को पढ़ कर आनंद आ गया. उनकी मधुरिमा -अनुराग वाली कहानी पढ़ कर प्रसिद्द फिल्म :”मित्र -माई फ्रेंड ” की याद आ गयी जिसमें अभिनेत्री शोभना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला था. दोनों कहानियां नपी तुली अपने कथ्य में श्रेष्ठ…वाह…
नीरज
बेहद रोचक कथाएं..
हम जैसे नेट-सेवी लोगों की जिंदगी में पहली वाली कहानी तो कभी भी घट सकती है..
priy bhai pran jee aapkee dono laghukathaen padeen vaakeii nehle ko dehlaa waalee baat chritaarth ho gaii hai aise logon ko theek isee tarah sabak milnaa hee chaahiye udhar dusree kathaa ne bhee prabhaavit kiya hai aur aaj kee samaajik soch par bhee vyang ke saath sateek prabhaav chhodne mai saphal huii hain
ashok andrey
पहली लघुकथा वर्तमान में एक गम्भीर संकट की ओर इंगित करती है। उसका हासपरक अंत नहीं होना चाहिए था। दूसरी रचना मुझे लगता है कि जूते पर जूता चढ़ने की कहावत को खोलने की दृष्टि से ही लिखी गई है। यों असलियत तो यही है कि आज के भौतिकवादी युग में घर चलाने के लिए पैसा कमाने की भाग-दौड़ इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि घर के हर सदस्य का जूता जूते पर चढ़ा हुआ है। इस रचना को और संवेदनशील बनाया जा सकता है।
आदरणीय प्राण शर्मा जी की दोनों ही लघु कथाएं अपने आप में मुकम्मल हैं… पढ़ कर मजा आगया और इससे जीवन की वो छोटी छोटी बातों गौर करने को तवज्जो मिलती है जो सही है ….पहला जहां जीवन की वास्तविकता को दर्शाता है वहीँ दूसरा मुहावरे को पूरा कर रहा है … वाह बहुत बढ़िया .. सादर प्रणाम
अर्श
जिंदगानी के तजुर्बे और उन पर लघु कथा में मंजे हुए आदरणीय प्राण भाई साहब का लेखन हो तब ,
ऐसी ही सशक्त कथाएँ बनतीं हैं जो मज़े के साथ , आपको सोचता हुआ , कुछ पल के लिए थम जाने पर
मजबूर करे — यही तो गुण है सफल कथा लेख़क का — जो यहां मौजूद है – बधाई —
सादर,
– लावण्या
प्राण साहिब
आदाब
आप जब गुनगुनाते हैं तो ग़ज़ल अपनी सूरत अख़तिआर कर लेती है
जब आप सोचतें हैं तो शब्द कागज़ पर उतर आतें हैं और कथा का रूप ले लेते हैं
भगवान ने आपको यह फन दिया है ग़मे जात पर भी लिख डालते हो ग़मे कायेनात
पर भी दोनों लघु कथाएँ पढीं डिक्शन अनूठा लगा
भगवान आपको खुश रखे महावीर साहिब आप भी ख़ुश तर रहें
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
nice……………………………..nice…………………………………nice……………………….
रोचक लघु कथा …खूब चढी जूते पर जूती …!!
दोनों लघुकथाएँ मन भाईं.
दोनों ही कहानियाँ बेहद अच्छी है,परन्तु पहली कहानी बहुत कुछ सीखा जाती है……
वाह इस लाजवाब, शानदार और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाइयाँ!
Aadarneey Pran Sharmaji ko gazal kaar ke roop mein padte padte kai baar bahut kuch seekhti rahi par tab ye n jaanti thi ki kam shabdon mein ek swaroop ko aakaar diya ja sakta hai jo ek kahani ki buniyaad laghutam roop mein rakh sake.
Bahutt hi sunder aur marmic kathayein hai
sadar
Devi nangrani
प्राण शर्मा जी की दोनों ही लघुकथाएं बड़ी सुन्दर लगी. दोनों ही सच्चाई को सामने उजागर करती हैं. प्राण शर्मा जी और सभी पाठकों और टिप्पणीकारों को हार्दिक धन्यवाद.
आपकी अगली लघुकथाओं की प्रतीक्षा है.
hahaha ise kahte hain range haathon pakde jana
Patni ne khoob sabak diya
dusri laghukatha bhi pasand aayi
Shukriya Mahavir ji pran ji ki laghu kathayen padhwane ke liye
हा..हा.. ग़ज़ब अनुरागी जी को वास्तव में चैन तो बीबी ने ही दिया आखिर !! लालजी की पंचों उंगलियाँ घेई में और सर कडाई में !!! मजा आ गया सर !!!
सीधी सरल भाषा में दिल पर सीधा असर करती लघु कथाएं जिन्हें लिखना प्राण साहब के बस की ही बात है. आज के हालात और इंसानी फितरत की अनूठी पेशकश…वाह…
बहुत बहुत शुक्रिया महावीर जी आपका जो आपने इन कथाओं को पढने का मौका दिया.
नीरज