प्राण शर्मा
लघुकथा-
शुभचिंतक
प्राण शर्मा
भोलानाथ जी के सुपुत्र प्रभात के विवाह की बात विवेकनाथ जी की सुपुत्री निशा के साथ पक्की हो चुकी थी। दोनों और से विवाह की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से होने लगी थी।सगुन के गीत गाये जाने लगे थे।
एक दिन पहली डाक से विवेकनाथ को एक लिफाफा मिला। लिफाफे पर “अर्जेंट” लिखा था। उनहोंने तुंरत लिफाफा खोला। कागज़ के एक टुकड़े पर अटपटी लिखावट में लिखा था-“जिस लड़के से आपने अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ा है,सच पूछिए तो वो चरित्रहीन है। शहर में कई लड़कियों के साथ उसके नाजायज़ सम्बन्ध हैं। क्या ऐसी चरित्रहीन लड़के को आप अपने दामाद के रूप में स्वीकार करेंगे? बिरादरी और समाज में आपकी नाक न कट जाए इसलिए मैं ये बात आपको लिख रहा हूँ। बदनामी से बचाने के लिए आपको सावदान करना मेरा फ़र्ज़ है, आपका और आपके समूचे परिवार का एक शुभचिंतक।
शुभ चिन्तक मोटे-मोटे शब्दों में लिखा हुआ था। पत्र की इबारत पढ़ते ही विवेक नाथ का शरीर सुन्न हो गया और उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी । बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपने आपको संभाला। सँभलते ही वे सीधे भोला नाथ जी के घर पहुँचे। क्रोध से तमतमाए हुए थे वे।
एक कागज़ का टुकडा भोला नाथ जी के चेहरे पर उछालते हुए दहाड़े – पढो अपने कुपुत्र की करतूतें । लफंगा , दुराचारी । शहर की कई लड़कियों के साथ उसके नाजायज़ सम्बन्ध हैं।”
भोला नाथ जी ने भी कागज़ का एक टुकडा विवेक नाथ जी को थमा दिया। इबारत पढ़ते ही विवेक नाथ को बात समझने में देर नहीं लगी।
देखते-ही-देखते दोनों के चेहरे खिलखिला उठे।
प्राण शर्मा
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हम तो अभी बात समझने की कोशिश करेंगे. समझ आते ही खिलखिलाकर फिर कमेंट करेंगे.
यह तो कहानी नहीं पहेली हो गयी।
antim line ne gazab ka twist diya hai kahani ko,bahut khub.
हा हा हा हा लगता है बेटे के पिता को भी वही लिफाफा लडकी के बारे में मिला होगा हा हा हा….
regards
ये आज कल के लोगों के च्रित्र को उजागर करती है शायद ऐसा ही लिफाफा दोनो परिवारों को मिला हो जिस से पता चलता है कि लोग किसी का काम बनता देख कर इसमे अपनी टाँग जरूर अडाते हैं प्राण जी की रचनायें हमेशा किसी सामाजिक समस्या को ले कर ही होती हैं ।बहुत बडिया लघुकथा है श्रीप्राण जी को बहुत बहुत बधाई आपका आभार्
aapki laghu kathaa ek vyang ke saath hasya kaa putt liye hamaare aas-paas kii charitrik soch kaa bhee achchha nirvaah kartee hei iss achchhi lahgu kathaa ke liye mae aapko badhai deta hoon
बहुत पहले इस प्रकार की कहानियां पढ़ी थीं जिनमें अंत को इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता था कि उसमें एक ग़जब का मोड़ होता था । वो होता था जिसकी ककिसी ने कल्पना भी नहीं की होती थी । आदरणीय प्राण सासहब की ये कहानी वैसी ही है । और अंत में जो कहानी का अंत होता है वो इस प्रकार का है कि बस । एक पुराने गीत की पंक्तियां याद आ रही हैं ‘समझने वाले समझ गये हैं ना समझे………’ । आदरणीय प्राण साहब को देख्कर एक उपमा को साकार होते देख्ता हूं । उपमा है बहुमुखी प्रतिभा । जब बच्चा था तो बड़ा हैरत में पड़ता था कि ये बहुमुखी का मतलब क्या होता है । ऐसा कौन होता है जिसके बहुत मुख हों । लेकिन प्राण साहब को जानने के बाद लगा कि बहुमुखी शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है । मेंरा प्रणाम आदरणीय प्राण साहब और दादा भाई महावीर जी दोनों को । आपको देखकर लगता है कि उम्र का काम करने की इच्छा से कोई लेना देना नहीं है । प्रणाम
“शुभ चिन्तक “- शीर्षक,
व्यंग्य का पर्याय बन गया यहां –
समाज में फ़ैली विद्रूपताओं की खिल्ली बड़ी खूबी से उडाई …
प्राण भाई साहब के क्या कहने – !
सिध्ध हस्त हैं
छोटी सी कथा ने
समाज का सच
सामने रख दिया
सादर, स – स्नेह,
– लावण्या
अच्छी लघु कहानी है ………. प्राण जी की कलम और उनकी शैली लाजवाम ……….
kathanak meM puranepan ko is bAr Ap apnA raMg nahIM de pAye.
प्राण शर्मा जी की लघुकथा का विषय तो नवनीतम ढंग से पिरोया है जिसमें रहस्यमय सचाई अपने आप को बिना शब्द के व्यक्त कर रही है. उनका अंदाजे-बयां कुछ और है..लाजवाब.
देवी नागरानी
sir mere comment nahi aaya
pran ji maine do baar comment diya hai
kuch publish nahi hua .. phir se de raha hoon
sabse pahle deri se aane ke liye maafi chahunga , kuch uljha hua tha zindagi me ..
aapki kahan i apdhi ….aaj ke haalat ki aor ishara karti hui sacchi baat kahi hai aapne ..
samj ab kuch aisa hi ho gaya hai
is sashakt rachana ke liye badhai
pranaam
प्राण शर्मा जी की ‘शुभचिंतक’ लघुकथा एक सार्वकालिक कथा है जिसमें लेखक
ने अंत में बड़ी सुन्दरता और कुशलता से ऐसे दुष्टों की दुर्भावनाओं को उजागर
किया है जिनको भले लोगों के काम बिगाड़ने में आनंद मिलता है.
शर्मा जी का धन्यवाद करते हुए उन लोगों का भी धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने
अपना समय देकर इस पोस्ट को पढ़ा और अपनी प्रतिक्रिया देकर ब्लॉग का
और इस पोस्ट का मान बढ़ाया.
Pran sahib kee kahaniya dekhi
bahut maza aya comment dena zara mushkil sa laga
main ek saans main paran jee kee 2 aur Devinangrani jee kee 1 laghukatha padh gaya hun
Mahavir sahib aapka bahut bahut dhanivad
main dua karta hun kay aap sab kshush rahen
Chaand
sashakt laghu katha
yah kahani rochak he, kautuhal bh peda karti he lekin kewal manoranjak he. Wastutah time paas ke liye thk he.