“शिष्टता” और “जंगल में जनतंत्र” – प्राण शर्मा और आचार्य संजीव ‘सलिल’ की लघुकथाएँ

लघुकथा

शिष्टता

प्राण शर्मा

किसी जगह एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी. किसी फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो वहां दर्शकों की भीड़ नहीं उमड़े, ये मुमकिन ही नहीं है. छोटा-बड़ा हर कोई दौड़ पड़ता है उस स्थल को जहाँ फिल्म की आउटडोर शूटिंग हो रही होती है. इस फिल्म की आउटडोर शूटिंग के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ. दर्शक भारी संख्या में जुटे. उनमें एक अंग्रेज भी थे. किसी भारतीय फिल्म की शूटिंग देखने का उनका पहला अवसर था.

पांच मिनटों के एक दृश्य को बार-बार फिल्माया जा रहा था. अंग्रेज महोदय उकताने लगे. वे लौट जाना चाहते थे लेकिन फिल्म के हीरो के कमाल का अभिनय उनके पैरों में ज़ंजीर बन गया था.

आखिर फिल्म की शूटिंग पैक अप हुई. अँगरेज़ महोदय हीरो की ओर लपके. मिलते ही उन्होंने कहा-” वाह भाई, आपके उत्कृष्ट अभिनय की बधाई आपको देना चाहता हूँ.”

एक अँगरेज़ के मुंह से इतनी सुन्दर हिंदी सुनकर हीरो हैरान हुए बिना नहीं रह सका.

उसके मुंह से निकला-“Thank you very much.”

” क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आप भारत के किस प्रदेश से हैं?

” I am from Madya Pradesh.” हीरो ने सहर्ष  उत्तर  दिया.

” यदि मैं मुम्बई आया तो क्या मैं आपसे मिल सकता हूँ?

” Of course”.

” इस के पहले कि विदा लूं आपसे मैं एक बात पूछना चाहता हूँ. आपसे मैंने आपकी भाषा में प्रश्न किये किन्तु आपने उनके उत्तर अंगरेजी में दिए. बहुत अजीब सा लगा मुझको.”

” देखिये, आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं  आपकी भाषा का मान बढ़ाता?”

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लघुकथा

जंगल में जनतंत्र

आचार्य संजीव सलिल

जंगल में चुनाव होनेवाले थे. मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे.- ‘ जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये. सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये.’

‘ मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद. आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ. ‘ भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया. मंत्री जी खुश हुए.


तभी उल्लू ने आकर कहा- ‘अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं. हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी’ और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया.

विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी.

समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे – ‘जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद. ‘

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महावीर शर्मा की
ग़ज़ल और कविता:
नीचे लिंक पर क्लिक कीजिए :
‘महावीर’

13 Comments »

  1. 1
    Lavanya Says:

    लघुकथाएं अपनी गहरी विचारधारा की वजह से असरदार रहतीं हैं
    आचार्य जी एवं प्राण भाई साहब सिध्धहस्त हैं इसी खूबी के लिए
    आभार …पढ़कर आनंद के साथ सीखने को भी मिला
    – लावण्या

  2. 2

    आदरणीय आचार्य जी एवं प्राण जी की कथाये अपने आप एक अनोखा संदेश देती हैं…दोनों ही मन को भा गयी…. और ये पंक्तियाँ कहानी के अंत को सार्थक कर गयी…लाजवाब..”
    देखिये, आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं आपकी भाषा का मान बढ़ाता?”

    regards

  3. 3

    आद्रणीय प्राण जी और आचार्य जी को पढ कर एक सुखानुभूति होती है कुछ शब्दों मे पूरी जिन्दगी का सार मिलता है इनकी रचनाओं मे प्राण जी की कथा एक दूसरे की भावनाओं को समझने और उनका आदर करने की प्रेरणा देती है
    आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं आपकी भाषा का मान बढ़ाता?
    बहुत सुन्दर बधाई
    और आचार्यजी जी ने तो आज के सच की सटीक तस्वीर सामने रख दी । बहुत बहुत बधाई और आभार्

  4. 4

    आदरणीय प्राण साहेब की लघुकथा दिल को छू गयी…लघु कथाओं में जो विशिष्टता चाहिए वो प्राण साहेब बखूबी ला देते हैं…कम शब्दों में गहरी बात कहना आसान नहीं होता , गुरुदेव तो इस कला में महारथी हैं…वाह..हमें सभी भाषाओँ का सम्मान करना चाहिए ,इस बात को बहुत खूबसूरती से बयां किया है उन्होंने…
    नीरज

  5. 5

    कम शब्दों में बहुत सुन्दर सटीक लघु कथा आभार प्रस्तुति के लिए .

  6. 6
    लाल और बवाल Says:

    बहुत ही उम्दा लघुकथाएँ रहीं सर । आभार।

  7. 7

    Pran ji ki laghukatha ke ant mein jo bhavon ko prakat karne ki kshamta dekha to juban bezubaan ho gayi.

    ” देखिये, आपने हिंदी में बोलकर मेरी भाषा का मान बढ़ाया, क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं था कि अंग्रेजी में बोलकर मैं आपकी भाषा का मान बढ़ाता?”

    Abhinandan ke saath
    Devi nangrani

  8. 8

    आचार्य संजीव ‘सलिल’ की लघुकथा जंगल में मंगल आज के समम्ज की एक तस्वीर रही. ऐसे प्रहार शब्दों से कर पाना अपने आप में सचाई को आइना दिखने वाली बात है.
    देवी नांगरानी

  9. दोनों ही लघुकथाएँ अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल रही हैं…कथ्य शिल्प भी अनुपम हैं…..

    दोनों ही विद्वजन तो शब्दों के जादूगर हैं….इनके लिखे को पढ़ हम प्रेरणा भी लेते हैं और लेखन कला सीखते भी हैं….

  10. 10
    Dr. Ghulam Murtaza Shareef Says:

    आदरणीय आचार्यजी और शर्माजी प्रणाम,

    बड़ी गहरी सोच है आपकी लघु कथाओं में . बधाई स्वीकार हो .

    आपका भाई

    डॉ. शरीफ
    कराची

  11. आचार्य ‘संजीव’ जी और श्प्राण शर्मा जी की सुन्दर लघुकथाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद.
    शर्मा जी ने अंतिम पंक्तियों में भारतीय सभ्यता के गौरव का सटीक चित्र दिया है.
    आचार्य जी ने जिस प्रकार एक बड़े सत्य को इस रोचक लघु कथा में उजागर किया है, सहरानीय है.

  12. महावीर शर्मा जी
    आदाब
    आपका आनंदवादी शीर्शक है लाजवाब
    है किताब-ए-ज़िंदगी का ख़ूबसूरत एक बाब

    ज़िंदगी हर हाल मेँ क़ुदरत का एक इनआम है
    है कोई प्रसन्न कोई खा रहा है पेचो ताब

    अहमद अली बर्क़ी आज़मी

  13. 13
    Harish Shewkani Says:

    लघुकथाओं के माध्यम से आपने बहुत ही पते की बात कही है


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