प्राण शर्मा की लघु-कथा
पिंजरे के पंछी
—प्राण शर्मा
चंद्र प्रकाश के चार साल के बेटे को पंछियों से बेहद प्यार था। वह अपनी जान तक न्योछावर करने को तैयार रहता। ये सभी पंछी उसके घर के आंगन में जब कभी आते तो वह उनसे भरपूर खेलता। उन्हें जी भर कर दाने खिलाता। पेट भर कर जब पंछी उड़ते तो उसे बहुत अच्छा लगता।
एक दिन बेटे ने अपने पिता जी से अपने मन की एक इच्छा प्रकट की। – “पिता जी, क्या चिड़िया, तोता औ कबूतर की तरह मैं नहीं उड़ सकता?”
“नहीं।” पिता जी ने पुत्र को पुचकारते हुए कहा।
“क्यों नहीं?”
“क्योंकि बेटे, आपके पंख नहीं हैं।”
“पिता जी, क्या चिड़िया, तोता और कबूतर मेरे साथ नहीं रह सकते हैं? क्या शाम को मैं उनके साथ खेल नहीं सकता हूं?”
“क्यों नहीं बेटे? हम आज ही आपके लिए चिड़िया, तोता औ कबूतर ले आएँगे।
जब जी चाहे उनसे खेलना। हमारा बेटा हमसे कोई चीज़ माँगे और हम नहीं लाएँ, ऐसा कैसे हो सकता है?”
शाम को जब चन्द्र प्रकाश घर लौटे तो उनके हाथों में तीन पिंजरे थे – चिड़िया, तोता और कबूतर के। तीनों पंछियों को पिंजरों में दुबके पड़े देखकर पुत्र खुश न हो सका।
बोला- “पिता जी, ये इतने उदास क्यों हैं?”
“बेटे, अभी ये नये-नये मेहमान हैं। एक-दो दिन में जब ये आप से घुल मिल जाऐंगे तब देखना इनको उछलते-कूदते और हंसते हुए?” चन्द्र प्रकाश ने बेटे को तसल्ली देते हुए कहा।
दूसरे दिन जब चन्द्र प्रकाश काम से लौटे तो पिंजरों को खाली देखकर बड़ा हैरान हुए। पिंजरों में न तो चिड़िया थी और न ही तोता और कबूतर। उन्होंने पत्नी से पूछा-“ये चिड़िया, तोता और कबूतर कहाँ गायब हो गये हैं?”
“अपने लाडले बेटे से पूछिए।” पत्नी ने उत्तर दिया।
चन्द्र प्रकाश ने पुत्र से पूछा-“बेटे, ये चिड़िया, तोता औ कबूतर कहाँ हैं?”
“पिता जी, पिंजरों में बंद मैं उन्हें देख नहीं सका। मैंने उन्हें उड़ा दिया है।” अपनी भोली ज़बान में जवाब देकर बेटा बाहर आंगन में आकर आकाश में लौटते हुए पंछियों को देखने लगा।
—प्राण शर्मा
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मेरी तुकबंदियां
तेजेंद्र शर्मा
मैं
और मेरी तुकबंदियां
हर शाम, एक दूसरे से
बातें करते हैं
मैं जानता हूं
ज़माने को कुछ नहीं
लेना देना
मेरी तुकबंदियों से।
वे मुझे लुभाती हैं
मेरा बिस्तर, मेरा तकिया
बन कर पहुंचाती हैं आराम
देती हैं रज़ाई की गर्माहट।
जेठ की तपती लू जैसे उलाहने
दुनिया भर की शिक़ायतें
नाराज़गियां, दबाव
ठण्डी बयार हैं तुकबंदियां।
उन्हें नहीं पसन्द
तो क्या हुआ..
ये मेरी अपनी हैं।
बनाती हैं मुझसे एक अबूझ रिश्ता
रात को तारों की तरह टिमटिमाती।
भोर के सूरज के साथ
जगाती हैं. चाय की प्याली बन जाती हैं।
नहीं रचतीं ढोंग महानता का
रहती हैं ख़ुश अपने आप में।
मेरी तुकबंदियां।
-तेजेंद्र शर्मा
‘Pinjare ke panchi’ (Lekhak Pran Sharma) ek Ullekhaniya Laghu Katha hai. Laghu Katha lekhan aur Gazalon mein Pran ji ka koi javab nahi.
Tejendra Sharma ji ki Tukabandhiya padhakar achha laga.
Dono rachanakaron ko meri badhai.
Chandel
this short story conveys a message…child is wiser than a man. thanks to pran ji for this nice short story.
सहज अभिव्यक्ति.
Azadi ki parikalpna ko sarthak karti rachna
एक साथ अपनी अपनी विधा के दो दिग्गजों को एक स्थान पर प्रस्तुत कर महावीर जी आपने बहुत बड़ा उपकार किया है हम पाठकों पर. प्राण साहेब की लघु कथा कितने कम शब्दों में और किस सरलता से हमें कितना कुछ सिखा जाती है. ये उनके लेखन का कमाल है की हर शब्द दिल में उतर जाता है और कथा के आखिर में एक सिहरन छोड़ जाता है.
तेजेंद्र जी की तुकबन्दियाँ उनके जैसी ही अद्भुत हैं.
नीरज
सरल मासूम बच्चे और पंछियों सी सरल पवित्र कहानी………
जितना बड़ा और संवेदनशील बालमन होता है उतना पढ़े लिखे समझदार तथाकथित बड़ों का नहीं…यही यह कहानी बताती है…..
हम क्यों बड़े होकर इतने छोटे हो जाते हैं……इसे किसका कुसूर कहें?????
बेहद सुन्दर इस लघुकथा के लिए आपका साधुवाद.
तेजेंद्र जी की कविता रचना के स्वान्तः सुखाय पक्ष को उजागर करती है….सुन्दर कविता के लिए बधाई…
प्राण शर्मा की लघु कथा हमें स्वतन्त्रता का महत्व बता ता है।
प्राण शर्मा की लघु कथा हमें स्वतन्त्रता का महत्व बताती है।
प्राण शर्माजी के गज़ल के जल्वों से तो वाकिफ थे मगर अब आपके माध्यम से कहानियों से भी रुब्रु होने लगे हैं उनकी कलम को सलाम बहुत बडिया कहानी है और तेजिन्द्र जी की कविता एक लेखक की भावनाओं की सही तस्वीर है बधाई और धन्यवाद्
जो बात ऊपर कही गयी वही सच है कि बच्चा उस बात को तुरन्त समझ गया जो पिता ने समझ्ना ही नही चहा. सरल शब्दो़ मे़ प्रभावी लघुकथा. लिखी है श्रध्येय प्राण शर्मा जी ने.
तेजेन्दर जी ने मै़ और मेरी तन्हाई कविता को नया रूप और शब्द दिये है़. बधाई
Aadarniy mahaveer bhai ji,
Sadar Pranam
PRAN bhai sahab ki kahanee kitni masoom hai aur
TEJENDRA bhai ki Tukbandiyaan bhee lajawab lageen
Bahut shukriya – – Sunder Prastuti ka !
Vineet,
– Lavanya
DO BIDWAAN EK HI MANCH PAR YE TO SAUBHAGYA HI HAI ….. WESE GAZAL PITAAMAH KI DO LAGHU KATHAYEN MAINE PADHI HAI DONO KATHAWON ME EK SIKH MILTI HAI ZINDAGEE KI SIKH ISME TAZARBE KI BAAT HOTI HAI AUR WO JARURI BHI HAI … SALAAM KARTA HUN AUR NATMASTAK HUN INKE LEKHANI KE AAGE….
MERI TUKBANDIYAAN… KITANI UMDAA NAZM LIKHI GAYEE HAI … HAR SHABD KHUD BA KHUD BOL RAHE HAI BAATEN KAR RAHE HAI AUR TAALIM KI BAATEN HO IS SAHAJ BHAAV SE TO WAKAI BEMISHAAL HO JAATI HAI BAHOT BAHOT BADHAAYEE AUR SHUBHKAAMANAAYEN….
ARSH
bhola bachpan samjh gaya ki aazadi ki keemat kya hai
hum badhe nahi samjh paate jaane anjaane kab kabhi zayada pyaar dekar kabhi gusse mein dusre ki aazaadi swantrta khatam kar dete hain
bahut achhi kahani
Reply
priya bhai pran jee aapki laghu katha padi aapne ek bachche ke madhyam se jis aajadi ko sakar kiya hai tatha iss ke dawara jis sandesh ko preshit kiya hai veh avismarniya hai iske liye mai aapko badhai deta hoon
vakei ham sabhi ko har jeev jantu ki aajadi ko sarthak gatii deni chahiye tabhi ham nature se jud payegen
bahut sundar
bhai tejendra sharma jee ki kavita ne bhii man ko chhua hai nijii tanhaiyan kaii bar bahut naya rachne ko prerit kar jaatin hain badhai
ashok andrey
अच्छी प्रभावशाली लघुकथा.
आजादी की परिकल्पना केवल मानवो तक सीमित ना होकर समस्त प्राणियो तक विस्तार की आवश्यकता को प्रतिबिम्बित करती सुन्दर कथा.
एक बालमन की सवेदना स्वतन्त्रता का मतलब कही ज्यादा समझती है, आज आवश्यकता इस बात की है कि हम युवावस्था के आते-आते तक भी इन सवेदनाओ को सहेज कर रखे और विश्व के समस्त प्राणियो के कल्याण की भारत की पुरातन सोच को दुनिया के सामने साकार स्वरूप मे प्रस्तुत करे.
तेजेन्द्र शर्मा की “मेरी तुकबन्दिया” भी बहुत अच्छी थी, मन को लुभा गया.
सादर
राकेश
अच्छी प्रभावशाली लघुकथा.
bahut aachi laghu katha hai (Y)
bahut sunder sabhi rachanayen lagi , prabhavshali rachana hai