प्राण शर्मा जी की एक ग़ज़लः
प्राण शर्मा जी की एक ग़ज़ल
चूल्हा-चौका, कपड़ा-लत्ता ख़ौफ़ है इनके बहने का
सब से प्यारा, सब से न्यारा जीवन मुझ को क्यों न लगे
बेशक सब ही कोशिश कर लें बेहतर रहने की लेकिन
जाने क्या क्या सीखा उससे जिस जिससे अंजान थे हम
इतना भी कमज़ोर बनो क्यों दीमक खाई काठ लगो
बात कोई मन की मन में ही कैसे क्यों कर रह जाए
‘प्राण’ कभी तो अपनी खातिर ध्यान ज़रा दे जीवन पर
18 Comments »
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बहुत ही उम्दा !
बात कोई मन की मन में ही कैसे क्यों कर रह जाए
दिल वालों की महफ़िल में जब वक्त मिले कुछ कहने का
“Pran ji ko pdhna apne aap mey hi ek bhut skhad anubhuti hai, bhut subder gazal, ye sher mujhe bhut pasand aaya…sach hai na ki sub ki mun me hi reh jati hai, kaun sunta hai…. or ager mauka mile kehne ka to kya bat hai..”
Regards
आदरणीय प्राण शर्मा साहब
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई.
सभी शेर उम्दा हैं ख़ास तौर से :
बेशक सब ही कोशिश कर लें बेहतर रहने की लेकिन
आएगा ऐ दोस्त सलीका किसी किसी को रहने का
बात कोई मन की मन में ही कैसे क्यों कर रह जाए
दिल वालों की महफ़िल में जब वक्त मिले कुछ कहने का.
आदरणीय महवीर शर्मा साहब का शुक्रिया इस ग़ज़ल रसास्वादन करवाने के लिए.
मन खिल गया इस गज़ल को पढ़कर…सुंदर-सहज शब्दों में आम बातों को इतने लाजवाब शेरों में बिठाने की इस कला को नमन,प्राण साब !
ये शेर तो खास कर “बेशक सब ही कोशिश कर लें बेहतर रहने की लेकिन / आएगा ऐ दोस्त सलीका किसी किसी को रहने का”
waah bahut khub
बात कोई मन की मन में ही कैसे क्यों कर रह जाए
दिल वालों की महफ़िल में जब वक्त मिले कुछ कहने का……….
…….bahut hi achhi lagi ye baat,likhne me ek gahra ehsaas hai
चूल्हा-चौका, कपड़ा-लत्ता, ख़ौफ़ है इनके बहने का
तूफ़ानों का ख़ौफ़ नहीं है ख़ौफ़ है घर के रहने का
bahut khoob
बहुत बढ़िया, भई
—
चाँद, बादल, और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
गुलाबी कोंपलें
http://www.vinayprajapati.co.cc
आदरणीय प्राण शर्मा जी ,
हर शेर कई बार पढा़ और हर बार और ज्यादा अच्छा लगा ।
पुरी गज़ल की लाजवाब हैं । दाद कबूल करें ।
महावीर सर का शुक्रिया इस गज़ल के लिये ।
सादर
इतना भी कमज़ोर बनो क्यों दीमक खाई काठ लगो
मीत तनिक हो साहस तुम में दुख तकलीफ़ें सहने का
वाह..वा…ऐसी बात गुरुदेव प्राण साहेब ही कह सकते हैं…नमन उनको और उनकी लेखनी को…हम खुशनसीब हैं जो उनको पढने का मौका आप से प्राप्त कर रहे हैं…उन्हें जितना पढें प्यास अधूरी ही रहती है… जिंदगी जीना सिखाती है उनकी हर एक रचना…
नीरज
जनाबे प्राण साहिब
आपके कलाम से “तुलसी” की याद ताज़ा हो गई
और “कबीर” के दर्शन हुए ज़बान की चाशनी लहजे की रवानी
और अल्फाज़ की नशिस्तो बरखास्त गँगा और यमना के चढ़ाव
से मुताब्कत रखती महासागर की मंज़र कशी करती है आपके
इज़हार का तरीका और इस पर आपकी गरिफ़्त आपकी एक
नुमायाँ काबलियत है
वोह चार चाँद लगता जिधर भी जाता था
जिसे समझते थे ग़ालिब वोह मीर निकला था
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
ये शेर ख़ास कर
सब से प्यारा, सब से न्यारा जीवन मुझ को क्यों न लगे
शायद ही कोई सानी है दुनिया में इस गहने का
प्राण जी से फोन पर बात हो रही थी। बातों बातों में ग़ज़ल की बात होने लगी और मैंने
कहा कि काफ़ी दिनों से ‘महावीर’ ब्लॉग आपकी ग़ज़ल से महरूम है। जिन लोगों से
उनकी बात हुई हो तो वे जानते हैं कि उनकी वाणी में इतनी कशिश है कि आप भूल
जाते हैं कि बात फोन पर हो रही है जब कि उनके वक्त का ध्यान भी रखना चाहिए।
ख़ैर, उन्होंने मतला ही सुनाया था कि नीचे किचन में से बुलावा आगया। मतला
सुनते ही मैंने कहा कि आप ग़ज़ल जारी रखें और मैं लिख लेता हूं, खाना तो फिर
हो जाएगा।
मुझे ग़ज़ल इतनी अच्छी लगी कि रात के पौने एक के समय पर ब्लॉग पर लगा
कर ही संतुष्टि हुई।
प्राण जी आपका बड़ा आभार है कि इस प्रकार ब्लॉग का सम्मान बढ़ाया है।
pran ji ,
gazal kya hai , bus zindagi ki koi kitaab hai .. aapne to saare paane khol kar hamne padawa diya ..
इतना भी कमज़ोर बनो क्यों दीमक खाई काठ लगो
मीत तनिक हो साहस तुम में दुख तकलीफ़ें सहने का
ye behatreen pankhtiyan hai … jeevan ka samman karne ke liye aur jeene ke liye …
icha shakti se barpoor , is gazal ke liye main aapka aur mahaveer ji ka shukriya ada karta hoon ….
jab tak aap jaise bande , duniya ko apne geeton ka ujala denge , tak tak yahan andhere ke liye koi jagah nahi….
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बाह प्राण जी क़ी एक और बढ़िया ग़ज़ल। महाबीर जी आपका ब्लॉग अक्सर देखता हूं, एक बेहतर शायर को पढ़ाने के लिए आपका आभार।
प्राण जी,
बहुत खूब–हमेशा की तरह कुछ सीखने को मिला.
आप की ग़ज़लें पापा के साथ बैठ सुने मुशायरों की
याद दिला देतीं हैं–ऐसा लगता है कि शायर ग़ज़ल
पढ़ रहा है–
सब से प्यारा, सब से न्यारा जीवन मुझ को क्यों न लगे
शायद ही कोई सानी है दुनिया में इस गहने का
आप कि ग़ज़लें भी किसी गहने से कम नहीं.
आभारी हूँ आप की और महावीर जी —
सुधा
चूल्हा-चौका, कपड़ा-लत्ता ख़ौफ़ है इनके बहने का
तूफ़ानों का ख़ौफ़ नहीं है ख़ौफ़ है घर के ढहने का
बेशक सब ही कोशिश कर लें बेहतर रहने की लेकिन
आएगा ऐ दोस्त सलीका किसी किसी को रहने का
wah praan ji bahut hi umda sher kahe hai
mera aabhar sweekar kijiye
sach men tabiyat khush ho gayi
punasch dhanybaad
सरल शब्दावली में मन को छूने वाली ग़ज़ल के लिए शुक्रिया ।