आओ पीछे लौट चलें……
स्वर्गीय महाकवि सुमित्रा नंदन पंत की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की सुपुत्री रश्मि प्रभा को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है फिर भी उन्हीं के शब्दों में उनका परिचय पढ़िएः
मैं रश्मि प्रभा…सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद
की बेटी हूँ और मेरा
नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की…”सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन” , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते…मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं…”
आओ पीछे लौट चलें……
बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
हम घर से दूर हो गए !
जाने कितनी प्रतीक्षित आँखें
दीवारों से टिकी खड़ी हैं –
चलो उनकी मुरझाई आंखों की चमक लौटा दें !
सूने आँगन में धमाचौकड़ी मचा दें
– आओ पीछे लौट चलें………..
आगे बढ़ने की चाह में
हम रोबोट हो गए
दर्द समझना,स्पर्श देना भूल गए !
दर्द तुम्हे भी होता है,
दर्द हमें भी होता है,
दर्द उन्हें भी होता है
– बहुत लिया दर्द, अब पीछे लौट चलें……….
पहले की तरह,
रोटी मिल-बांटकर खाएँगे,
एक कमरे में गद्दे बिछा
इकठ्ठे सो जायेंगे …
कुछ मोहक सपने तुम देखना,
कुछ हम देखेंगे –
आओ पीछे लौट चलें…………………
रश्मि प्रभा
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Posted by महावीर on दिसम्बर 18, 2008 at 1:15 पूर्वाह्न
Filed under कविता, रश्मि प्रभा  |
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एक सुंदर गृह विरही कविता ! क्या प्रतीक्षित आखों की जगह प्रतीक्षारत आँखें अधिक उपयुक्त नही होगा ?
चलो उनकी मुरझाई आंखों की चमक लौटा दें !
रश्मि जी को बहुत बहुत शुभकामनायें , एक सकारत्मक और जिंदादिल अभिव्यक्ति ”
regards
सुंदर मन को छू लेने वाली रचना लगी यह
श्री महावीर शर्मा जी ने मुझे जो मान दिया है अपने ब्लॉग पर लाकर,
मैं उनकी विनम्र, सहज भावना के आगे नतमस्तक हूँ…..
पहले की तरह,
रोटी मिल-बांटकर खाएँगे,
एक कमरे में गद्दे बिछा
इकठ्ठे सो जायेंगे …
कुछ मोहक सपने तुम देखना,
कुछ हम देखेंगे –
आओ पीछे लौट चलें…………………
इन प्रेरित करते शब्दों से हम सीख ले सकें
तो आपका ये कहना सार्थक हो जाये गा
एक सुन्दर स्वप्न , एक सराहनीय आशा …………….
बहुत अच्छी रचना
bahut chhota font dikha raha hai…padhane me bhi nahi aa raha…. comment bhi andajiya kar rahi hu.n
bahut achi kavita ,
saadar
बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना. रश्मि जी को बहुत बधाई इस कृति के लिए और महावीर जी का आभार हमेशा की तरह.
सच है….अब लौट चलना ही ठीक है….आगे जाने से प्रगति तो हो रही है लेकिन सुख कहीं खोता जा रहा है…!
SHUKRIYA.. AAPNE RASHMI DI KI KAVITA KO YAHA PUBLISH KAR KE UNKA SAHI SAMMAAN KIYA HAI.. DI KI KAVITA KA MAI BHI FAN HU.. UMMID KARTA HU KI DI SAFALTA KE AUR UCHAAIYO KO CHHUYEin..
रश्मि जी का ‘महावीर’ ब्लॉग पर हार्दिक अभिनंदन।
कंचन जी ने बताया कि फ़ॉन्ट बहुत छोटा होने के कारण पढ़ने में कठिनाई हो रही
थी। इसलिए पोस्ट के फ़ॉन्ट को बड़ा करके अपडेट कर दिया है।
टिप्पणियों के लिए आप सभी का धन्यवाद।
महावीर शर्मा
congratulations maa,i am very happy to see your poem here…………go ahead
EK ACHCHHE KAVITA KE LIYE SUSHRI RASHMI PRABHA KO BAHUT-BAHUT
BADHAAEEAN.YAH JAANKAR ATI PRASAATA HUEE HAI KI RASHMI JEE
MAHAKAVI SUMITRANANDAN PANT KEE MANAS PUTREE HAI.ASHA KARTA HOON
KI KAVIVAR MAHAVIR JEE BHAVISHYA MEIN BHEE UNKEE KAVITAYEN APNE
BLOG PAR UPLABDH KARVAYENGE.
पँतजी दादाजी मेरे पापा जी के घनिष्टतम गुरु -मित्र रुपी महाकवि हैँ -रश्मि प्रभाजी इस रीश्ते से आप मेरी बहन हुईँ 🙂
कविता बहोत अच्छी लगी – भविष्य मेँ आपकी माता जी के पँतजी के सँग बिताये क्षणोँ से भी हमेँ अवगत करवायेँ –
प्रतीक्षा रहेगी -स स्नेह,
– लावण्या
बहुत अच्छी काविताएँ लिखती रही हैं रश्मि जी!
अनूठी रचना…और क्यों न हो,जब विरासत में मिली हो
और महावीर जी को चरण-स्पर्श!
दर्द तुम्हे भी होता है,
दर्द हमें भी होता है,
दर्द उन्हें भी होता है
– बहुत लिया दर्द, अब पीछे लौट चलें……….
बहुत खूब, रश्मि दीदी ! इतनी सुन्दर भावाभ्यक्ति के लिए आप बधाई की पात्र हैं !
बिता हुआ पल कभी गुजरता नहीं ,गुजर तो हम जाते हैं किसी मुसाफिर की तरह ,वो बिता हुआ पल डरा सा ,सहमा सा ,गली के किसी मोड़ पर हमारी अपलक राह देखता रहता है |काश सच में उन बीते हुए पलों की राख से आने वाले कल की आग जला पाते हम रश्मि दीदी |
ये सिर्फ कविता नहीं है ,इसे हम जिजीविषा की संतृप्ति का कारगर नुस्खा कह सकते है,रश्मि दीदी की ये कविता पढ़कर मैं भी बचपन की और फिलहाल लौट रहा हूँ ,चाहे कुछ ही पल के लिए सही,मेरी अंगुलियाँ रश्मि दीदी के हंथेलियों में पिस रही हैं , घर की देहरी पर खड़ी माँ कभी डूबते हुए सूरज की और तो कभी पगडंडियों की और देख रही है,हाँ हम लौट रहे हैं |
डा.रमा द्विवेदीsaid…
रश्मि जी की कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप सबको नववर्ष की अनन्त शुभकामनाएंँ। आदरणीय शर्मा जी को हमारा हार्दिक नमन और उनके नये ब्लाग का स्वागत है….
सबने इतना कुछ लिख दिया है, हम क्या लिखे … हम तो आपकी हर रचना पढ़ कर नी:शब्द हो जाते है ..जानते है आप् यह मौन पढ़ सकती है ..देर से ही सही बधाई संग प्रणाम स्वीकारे ..! Ilu.
जो छोड कर गये थे अब कितना मूल्यवान लगता है
लेकिन जो पाया है उसे छोड भी नहीं सकते
यही जीवन की विडम्बना है। रश्मि प्रभा को इस रचना के लिये बधाई
gyansindhu.blogspot.com
ati sunder rachnaye.
patrik virasat ko sahejne tatha vistar dene me saksham.
yadi mere blog per aap ek drishti dal paye to khud ko sobhagyashali samjhoonga
blog – bhorkitalashme.blogspot.com
jo samay nikal raha h……. use hum bad men wapis bulate h……. jo beet chuka h uska mhatwa aaj pata chal raha h. jo samay se purw iska mahatw jan lete h, wo mahan aatmaen hoti h….aap ki kavita har kisi men kranti la sakati h.