प्रो. श्याम मनोहर पांडेय के सम्मान में इटालियन विद्वानों की संगोष्ठी
30 अक्तूबर 2008 को नेपल्स विश्वविद्यालय के सभागार में भारतीय मूल के विश्वप्रसिद्ध, मध्ययुगीन सूफ़ी साहित्य के अध्येता एवं विशेषज्ञ डॉ. शयाम मनोहर पांडेय के अवकाश प्राप्त करने के अवसर पर उनको विदाई देने के लिए, उनके सम्मान में एक समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में इटली के विभिन्न विश्वविद्यालयों के हिंदी-संस्कृत, एवं उर्दू के श्रेष्ठ विद्वान निमंत्रित थें। डॉ, पांडेय पिछले तीस वर्षो से नेपुल्स विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य रहे। इस बीच उनके ‘लोरिकी और चनैनी’ जैसे लोक महाकाव्य, पाँच जिल्द हिंदी और अँग्रेज़ी में प्रकाशित हुएँ। अभी हाल ही में उनकी एक अन्य कृति ‘ चँदायन के रचयिता मौलाना दाउद’ प्रकाशित हुई है।कार्यक्रम दिन को 9.30 बजे आरंभ हुआ और सांयकाल 7 बजे प्रो, रोसा के धन्यवादज्ञापन के साथ समाप्त हुआ।
कार्यक्रम के आरंभ में विश्वविद्यालय की उपकुलपति प्रो. डॉ. श्रीमती लीडा बिगानोनी ने डॉ,श्याम मनोहर पांडेय, तथा अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा, ‘नेपुल्स ओरियँटल विश्वविद्यालय डॉ पांडेय का सदा ऋणी रहेगा।‘ उन्होंने डॉ. पांडेय द्वारा लिखी गई लोरिक-चँदा संबंधी महाकाव्यों की चर्चा करते हुए, उनके द्वारा संपादित हिंदी-इटालियन शब्द कोश का विशेष उल्लेख किया।
डीन ऑफ़ द फैकलिटी डा. श्रीमती रोजैली ने कहा, ‘डॉ. पांडेय विद्वान होने के साथ-साथ हमारे विश्वविद्यालय के एक श्रेष्ठ शिक्षक और अभिन्न मित्र भी रहे हैं उनकी कमी हमें सदा महसूस होती रहेगी।‘ एशियन अध्ययन विभाग के निदेशक प्रो. स्फेर्रा, ने डॉ. पांडेय के सम्मान में आयोजित इस कार्क्रम की प्रसंशा करते हुए कहा, ‘इतने बड़े विद्वान को ऐसी ही उत्कृष्ट बिदाई मिलनी चाहिए।’
दिन के 9.30 बजे आरंभ हुए इस कार्यक्रम की आध्यक्षा प्रो, श्रीमती ओरोफीनो- (तिब्बतानों की प्राध्यापिका), ड़ा, पांडेय की भूतपूर्व छात्रा ने उनके शिक्षण प्रणाली की प्रसंशा करते हुए कहा कि वह डा. पांडेय को वर्षों से जानती है और वह उनकी विद्वता से सदा ही प्रभावित रहीं।
डॉ. श्रीमती कोंसोलोरो एवं डॉ. श्रीमती कराकी- तोरीनो विश्वविद्यालय, तोरीन (टूरिन), ने क्रमशः ‘उत्तरी इटली में शहरी जीवन चरित्र’ एवं ‘रामकथा- उपन्यासकार प्रेमचँद के परिपेक्ष्य में’ पर आलेख पढ़ते हुए कहा, डॉ पांडेय जैसे विद्वान आदर के पात्र है साथ ही मिलान से आई डॉ, श्रीमती दोलचीनी, प्राचार्या हिंदी विभाग, मिलान विश्वविद्यालय ने, ‘प्रेम सागर और लल्लू लाल’ पर पर्चा पढ़ते हुए कहा, वे 30 वर्षों बाद ड़ा. पांडेय से मिल रही हैं, और उनकी हार्दिक इच्छा है कि डा. पांडेय भविष्य में ‘फेलो मेम्बर अकादेमिया आन्द्राज़ियाना’ स्वीकार करे तो वह गौरवान्वित महसूस करेंगी।
नेपल्स विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के इतिहास के प्राचार्य प्रो. आमेदेओ माईयेलो ने ‘उर्दू इन द्रविणियन इंडिया’ पर व्याख्यान देते हुए अपनी और डा. पांडेय के मित्रता की चर्चा करते हुए कहा कि नेपल्स विश्वविद्यालय में उन्हें डॉ. पांडेय के साथ कार्य करने का विशेष अवसर मिला भविष्य में वे उनकी अनुरस्थिति शिद्दत से महसूस करेंगे।
दूसरे सत्र में रोम विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. मिलानेसी, ने डॉ. पांडेय के सम्मान में एक कविता पढ़ते हुए कहा इटली के सभी विद्वान उन्हें मध्यकालीन साहित्य विषय पर अपना गुरू मानते है। प्रोफेसर डॉ. मिलानेसी ने ‘हिंदी के सूफी साहित्य पर एक निबंध पढ़ा’।
डॉ. श्रीमती दानियोला ब्रेदी, उर्दू विभाग की अध्यक्षा- रोम विश्वविद्यालय, डॉ. स्टेफनो पियानो- पूर्व अध्यक्ष संस्कृत-इंडियालोजी विभाग, तोरीनो विश्व विद्यालय- तोरीनो, आदि ने विभिन्न विषयों पर विद्वता पूर्ण आलेख पढ़े।
इस अवसर पर विश्व विद्यालय में आए सभी विद्वानों ने एक स्वर में कहा, आज के समय में डॉ. पांडेय जैसे प्रतिबद्ध विद्वान बहुत कम हैं। डॉ. पांडे के कारण इतनी बड़ी संख्या में इटली के सम्मानित विद्वान एक मंच पर मिल कर इंडियोलोजी पर विचारों का आदान-प्रदान कर सके। अतः यह आयोजन बहुत सफल रहा।
डॉ. पांडेय के सम्मान में दिए गए इस बिदाई समारोह में भारतीय परंपरा के अनुसार शाकाहारी भोजन का प्रबंध था। आयोजन डॉ. श्याम मनोहर पांडेय की छात्राओं, स्टाफेनिया केवालियेरे, दानियेला दे सीमोना, फियोरेनूसो यूलियानो ने भव्य स्तर पर आयोजित किया था। नेपल्स विश्वविद्यालय में इस प्रकार का बिदाई समारोह संभवतः पहली बार आयोजित हुआ जिसमें इतने अधिक संख्या में इटालियन मूल के विशेषज्ञ विद्वान एक मंच पर एकत्रित हुए।
उषा राजे सक्सेना
सह संपादिका
“पुरवाई”
(यू.के. हिन्दी समिति द्वारा प्रकाशित)
बहुत जानकारी पूर्ण रिपोर्ट…पाण्डेय जी को शुभकामनाएं….
नीरज
“पाण्डेय जी को शुभकामनाएं….और आयोजन का वर्णन बहुत रोचक रहा , शुभकामनाएं .
Regards
अच्छा लगा पढ़कर इस आयोजन के बारे…विदेशों में भी फहराता हिंदी का परचम
विदेश में रह कर हिंदी में काम करने वाले ये विद्वान सचमुच आदर के पात्र हैं।ये कभी-अवकाश प्राप्त नहीं होते।
उक्त संगोष्ठी में पढ़े गए पत्र भी यदि कही पढ़ने को मिल जाते तो मजा आ जाता.
कितना खुशगवार लगा कि विदेश में भी हिन्दी बोली जाती है, काश हिन्दोस्तान में भी सब हिन्दी ही बोलें।