ग़ज़ल
चाँद शुक्ला हदियाबादी
Director
“Radio Sabrang”
Poet and Broadcaster.
Voelundsgade 11 1 TV
2200 N Denmark.
Tel: 0045-35833254
मैं वोह शीशा हूँ के पत्थर से भी टकरा जाऊँगा
संग दिल के शहर में अपने को मनवा जाऊँगा
पांव रखे जब अमीरे शहर मेरे गाँव में
उसका हर चेहरा ज़माने को मैं दिखला जाऊँगा
मोम की मानिंद बरफीला ज़माना हो भले
शिद्दते एहसास की गर्मी से पिघला जाऊँगा
जानिबे मंजिल हूँ मैं रोको न मेरा रास्ता
जो भी पत्थर आयेगा रस्ते में ठुकरा जाऊँगा
अपने अश्कों से मैं सींचूँगा तेरे गुलशन के फूल
चार सू बूए मोहब्बत को मैं फैला जाऊँगा
कश्तिये दिल को समुन्दर में डुबो कर “चाँद” मैं
साहिलों के हर तमाशाई को तडपा जाऊँगा
चाँद शुक्ला हदियाबादी
‘मोम की मानिंद बरफ़ीला ज़माना जान ले,
शिद्दते एहसास की गरमी से पिघला जाऊँगा’
बहुत ख़ूब। बहुत ही ख़ूब।
मोम की मानिंद बरफीला ज़माना जान ले
शिद्दते एहसास की गर्मी से पिघला जाऊँगा
बेहतरीन शेर लग यह ..बहुत ख़ूब..
जानिबे मंजिल हूँ मैं रोको न मेरा रास्ता
जो भी पत्थर आयेगा रस्ते में ठुकरा जाऊँगा
चाँद साहेब की क्या बात है…कम लिखते हैं लेकिन जब लिखते हैं कमाल लिखते हैं…ऐसे नायाब शायर से और और सुनने की तमन्ना रहती है…वाह…
नीरज
बढ़िया …
ये पंक्तियाँ तो विशेष रूप से मस्त कर गयीं
मोम की मानिंद बरफीला ज़माना हो भले
शिद्दते एहसास की गर्मी से पिघला जाऊंगा
मजा आया पढ़कर
janaab Chaand Shukla Hadiabaadi kee gazal
bahut achchhee lagee.Unhen dheron badaaeean.
जानिबे मंजिल हूँ मैं रोको न मेरा रास्ता
जो भी पत्थर आयेगा रस्ते में ठुकरा जाऊँगा
बहुत सुंदर ..अच्छा लगा …बधाई
चाँद शुक्ला हदियाबादी साहिब की ग़ज़लें पढ़ने की हमेशा उत्सुक्ता बनी रहती है।
मैं खुशनसीब हूं कि इतने व्यस्त जीवन में भी उन्होंने कुछ समय निकाल कर यह
ख़ूबसूरत ग़ज़ल भेज कर इस ब्लॉग की रौनक बढ़ाई है। शुक्ला जी का मैं आभारी हूं।
महावीर शर्मा
मोम की मानिंद बरफीला ज़माना हो भले
शिद्दते एहसास की गर्मी से पिघला जाऊँगा
waah bahut gazab ka jadu hai,sundar