प्राण शर्मा जी की दो रचनाएं

प्राण शर्मा जी की दो रचनाएं :


प्राण शर्मा जी की रचनाएं पढ़ते हुए ऐसा लगने लगता है जैसे रचनाएं बोल रही हों।
प्राण जी एक दार्शनिक हैं और दर्शन जैसी गूढ़ रहस्यपूर्ण बातों को सरस और सरल
भाषा में लिखतें है जिससे पढ़ने वालों को समझने में परेशानी नहीं होती।
उनकी दो रचनाएं दे रहा हूं जिनमें दर्शन का व्यावहारिक पक्ष भी देखा जा सकता है
और उनका जीवन-दर्शन भी अन्तर्निहित हैः

पंछी

इस तरफ़ और उस तरफ़ उड़ता हुआ पंछी
जाने क्या क्या ढूंढता है मनचला पंछी।

छूता है आकाश की ऊंचाईयां दिन भर
सोच में डूबा हुआ इक आस का पंछी।

ढूंढता है हर घड़ी छाया घने तरू की
गर्मियों की धूप में जलता हुआ पंछी।

आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
एक दाने के लिए भटका हुआ पंछी।

बिजलियों का शोर था यूं तो घड़ी भर का
घोंसले में देर तक सहमा रहा पंछी।

था कभी आज़ाद औरों की तरह लेकिन
बिन किसी अपराध के बन्दी बना पंछी।

हाय री! मजबूरियां लाचारियां उसकी
उड़ न पाया आसमां में परकटा पंछी।

भूला अपनी सब उड़ानें, पिंजरे में फिर भी
एक नर्तक की तरह नाचा सदा पंछी।

बन नहीं पाया कभी इन्सान भी वैसा
जैसा बर्खुरदार सा बन कर रहा पंछी।

छोड़ कर तो देखिए इक बार आप इसको
फड़ फड़ा कर वेग से उड़ जाएगा पंछी।

देखते ही रह गई आंखें ज़माने की
राम जाने किस दिशा में उड़ गया पंछी।

-प्राण शर्मा

ग़ज़लः

ज़िन्दगी को ढूंढने निकला हूं मैं
ज़िन्दगी से बेख़बर कितना हूं मैं

चैन है आराम है हर चीज़ का
अपने घर में दोस्तों अच्छा हूं मैं

मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
हर किसी जैसा तेरा बंदा हूं मैं

मानता हूं आप सब के सामने
तजुरबों में दोस्तों बच्चा हूं मैं

क्यों भला अभिमान हो मुझ को कभी
दीये सा जलता कभी बुझता हूं मैं

-प्राण शर्मा

15 Comments »

  1. बिजलियों का शोर था यूं तो घड़ी भर का
    घोंसले में देर तक सहमा रहा पंछी।

    –हर धमाके के साथ यही हो रहा है…प्राण जी की रचनाओं ने तो लूट लिया…प्राण जी, आपकी जय हो. आपका बहुत आभार महावीर जी..प्रस्तुत करने का!!

  2. प्राण जी की गज़लों का कथ्य व शिल्प प्रभावी है । उन्हें व आप को प्रस्तुति के लिए साधुवाद !

  3. 3

    बहुत सुन्दर रचनाएं प्रेषित की हैं।आभार।

  4. 4

    आदरणीय महावीर जी
    श्रधेय प्राण जी रचनाएँ हम जैसे उनके मुरीदों को पढ़वाने का शुक्रिया. आप ने सच कहा उनकी रचनाएँ बोलती लगती हैं…शब्दों का ऐसा जादू बिखेरते हैं की बरबस मुहं से वा..वा..निकल जाता है.
    नीरज

  5. 5
    ranju Says:

    मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
    हर किसी जैसा तेरा बंदा हूं मैं

    बहुत सुंदर दिल के बेहद करीब

  6. 6
    Lavanya Says:

    श्री भाई प्राणे शर्माजी को यहाँ प्रस्तुत करने का शुक्रिया आदरणीय महावीर जी
    और उनकी गज़लेँ तो बहुत खूब हैँ ही !
    .स्नेह
    – लावण्या

  7. 7
    razia786 Says:

    मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
    हर किसी जैसा तेरा बंदा हूं मैं
    वाह! ख़ुदा से ही फ़रियाद? बहोत खूब!

  8. 8
    Chaan shukla Says:

    महावीर जी
    प्यार भरा नमस्कार
    आज एक अरसे के बाद आपका ब्लॉग देखा
    बहुत खुशी हुई प्राण जी की गज़लें देखीं
    मज़ा आ गया मेरा ख्याल है के शब्दों को
    भाव के साथ जोड़ दिया जाए तो उनकी “प्राण” प्रतिष्ठा हो जाया करती है
    शब्द बोलने लगते हैं आज के इस “छपास” दौर मैं कोई किसी को नही पहचानता
    यह आपका बड़ा पन है मेरा सलाम कबूल करें

    मेरी दुआ है के तू खुश रहे आबाद रहे

    तू तंदरुस्त दिखे और सेहतयाब रहे

    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

  9. आदरणीय महावीर जी सर और प्राण जी सर,
    बहुत बहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली ।

    ढूंढता है हर घड़ी छाया घने तरू की
    गर्मियों की धूप में जलता हुआ पंछी।

    आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
    बिन किसी अपराध के बन्दी बना पंछी।

    चैन है आराम है हर चीज़ का
    अपने घर में दोस्तों अच्छा हूं मैं …..

    क्यों भला अभिमान हो मुझ को कभी
    दीये सा जलता कभी बुझता हूं मैं …… वाह बहुत खूब

    आदर
    हेम ज्योत्स्ना

  10. 11
    neeraj tripathi Says:

    Pran Ji bahut achha likhte hain ..donon rachnaayen achhi lagin..

  11. प्राण शर्मा जी की हर रचना में एक नयापन होता है। शब्दों केचुनाव और ख़यालातों के ख़ूबसूरत इज़हार से दोनों ही ग़ज़लें बहुत ही असरदारबन गई हैं। यह तो हम सब जानते ही हैं कि प्राण शर्मा जी ग़ज़ल विधा के उस्तादोंकी सफ़ में माने जाते हैं। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि उन्होंने मुझे इस ब्लॉग
    पर पोस्ट करने की अनुमति दी है।

  12. 13
    dwijendra dwij Says:

    आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
    एक दाने के लिए भटका हुआ पंछी।
    बहुत खूब ग़ज़लें हैं

    बधाई

    द्विजेन्द्र द्विज

  13. 14
    bhoopendra Says:

    bahut sunder bhavnayen,dard ki tasweer hain /
    mil sake is moda per ,yeh apni hi taqdeer hai//
    dr.bhoopendra

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