प्राण शर्मा जी की दो रचनाएं :
प्राण शर्मा जी की रचनाएं पढ़ते हुए ऐसा लगने लगता है जैसे रचनाएं बोल रही हों।
प्राण जी एक दार्शनिक हैं और दर्शन जैसी गूढ़ रहस्यपूर्ण बातों को सरस और सरल
भाषा में लिखतें है जिससे पढ़ने वालों को समझने में परेशानी नहीं होती।
उनकी दो रचनाएं दे रहा हूं जिनमें दर्शन का व्यावहारिक पक्ष भी देखा जा सकता है
और उनका जीवन-दर्शन भी अन्तर्निहित हैः
प्राण शर्मा जी की दो रचनाएं
इस तरफ़ और उस तरफ़ उड़ता हुआ पंछी
छूता है आकाश की ऊंचाईयां दिन भर
ढूंढता है हर घड़ी छाया घने तरू की
आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
बिजलियों का शोर था यूं तो घड़ी भर का
था कभी आज़ाद औरों की तरह लेकिन
हाय री! मजबूरियां लाचारियां उसकी
भूला अपनी सब उड़ानें, पिंजरे में फिर भी
बन नहीं पाया कभी इन्सान भी वैसा
छोड़ कर तो देखिए इक बार आप इसको
देखते ही रह गई आंखें ज़माने की
ज़िन्दगी को ढूंढने निकला हूं मैं
चैन है आराम है हर चीज़ का
मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
मानता हूं आप सब के सामने
क्यों भला अभिमान हो मुझ को कभी
15 Comments »
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बिजलियों का शोर था यूं तो घड़ी भर का
घोंसले में देर तक सहमा रहा पंछी।
–हर धमाके के साथ यही हो रहा है…प्राण जी की रचनाओं ने तो लूट लिया…प्राण जी, आपकी जय हो. आपका बहुत आभार महावीर जी..प्रस्तुत करने का!!
प्राण जी की गज़लों का कथ्य व शिल्प प्रभावी है । उन्हें व आप को प्रस्तुति के लिए साधुवाद !
बहुत सुन्दर रचनाएं प्रेषित की हैं।आभार।
आदरणीय महावीर जी
श्रधेय प्राण जी रचनाएँ हम जैसे उनके मुरीदों को पढ़वाने का शुक्रिया. आप ने सच कहा उनकी रचनाएँ बोलती लगती हैं…शब्दों का ऐसा जादू बिखेरते हैं की बरबस मुहं से वा..वा..निकल जाता है.
नीरज
मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
हर किसी जैसा तेरा बंदा हूं मैं
बहुत सुंदर दिल के बेहद करीब
श्री भाई प्राणे शर्माजी को यहाँ प्रस्तुत करने का शुक्रिया आदरणीय महावीर जी
और उनकी गज़लेँ तो बहुत खूब हैँ ही !
.स्नेह
– लावण्या
मुझ से ही क्यों भेद है मेरे ख़ुदा
हर किसी जैसा तेरा बंदा हूं मैं
वाह! ख़ुदा से ही फ़रियाद? बहोत खूब!
महावीर जी
प्यार भरा नमस्कार
आज एक अरसे के बाद आपका ब्लॉग देखा
बहुत खुशी हुई प्राण जी की गज़लें देखीं
मज़ा आ गया मेरा ख्याल है के शब्दों को
भाव के साथ जोड़ दिया जाए तो उनकी “प्राण” प्रतिष्ठा हो जाया करती है
शब्द बोलने लगते हैं आज के इस “छपास” दौर मैं कोई किसी को नही पहचानता
यह आपका बड़ा पन है मेरा सलाम कबूल करें
मेरी दुआ है के तू खुश रहे आबाद रहे
तू तंदरुस्त दिखे और सेहतयाब रहे
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
No words
Simply amazing….
आदरणीय महावीर जी सर और प्राण जी सर,
बहुत बहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली ।
ढूंढता है हर घड़ी छाया घने तरू की
गर्मियों की धूप में जलता हुआ पंछी।
आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
बिन किसी अपराध के बन्दी बना पंछी।
चैन है आराम है हर चीज़ का
अपने घर में दोस्तों अच्छा हूं मैं …..
क्यों भला अभिमान हो मुझ को कभी
दीये सा जलता कभी बुझता हूं मैं …… वाह बहुत खूब
आदर
हेम ज्योत्स्ना
Pran Ji bahut achha likhte hain ..donon rachnaayen achhi lagin..
प्राण शर्मा जी की हर रचना में एक नयापन होता है। शब्दों केचुनाव और ख़यालातों के ख़ूबसूरत इज़हार से दोनों ही ग़ज़लें बहुत ही असरदारबन गई हैं। यह तो हम सब जानते ही हैं कि प्राण शर्मा जी ग़ज़ल विधा के उस्तादोंकी सफ़ में माने जाते हैं। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि उन्होंने मुझे इस ब्लॉग
पर पोस्ट करने की अनुमति दी है।
आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
एक दाने के लिए भटका हुआ पंछी।
बहुत खूब ग़ज़लें हैं
बधाई
द्विजेन्द्र द्विज
bahut sunder bhavnayen,dard ki tasweer hain /
mil sake is moda per ,yeh apni hi taqdeer hai//
dr.bhoopendra
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