‘प्राण’ शर्मा जी की एक ग़ज़ल

मेरे दुखों में मुझ पे ये अहसान कर गए
कुछ लोग मशवरों से मेरी झोली भर गए

पुरवाईयों में कुछ इधर और कुछ उधर गए
पेड़ों से टूट कर कहीं पत्ते बिखर गए

वो प्यार के ऐ दोस्त उजाले किधर गए
हर ओर नफ़रतों के अंधेरे पसर गए

अपने घरों को जाने के क़ाबिल नहीं थे जो
मैं सोचता हूं कैसे वो औरों के घर गए

हर बार उनका शक की निगाहों से देखना
इक ये भी वजह थी कि वो दिल से उतर गए

तारीफ़ उनकी कीजिए, औरों के वास्ते
जो लोग चुपके चुपके सभी काम कर गए

यूं तो किसी भी बात का डर था नहीं हमें
डरने लगे तो अपने ही साए से डर गए

प्राण शर्मा

8 Comments »

  1. बढ़िया लगी प्राण साहब की गज़ल. आभार पेश करने का.

  2. 2
    MEET Says:

    क्या बात है. क्या बात है. बहुत ही उम्दा शेर. बहुत अच्छी ग़ज़ल. आभार इसे हम तक पहुंचाने का.

  3. 3
    Chaan shukla Says:

    महावीर जी
    बहुत अच्छा site है
    दिल खुश हो गया आपने सबरंग का लिंक देकर मन जीत लिया
    प्राण जी की ग़ज़ल लगा कर सोने पे सुहागा कर दिया है
    दिल से आभार
    चाँद शुक्ला डेनमार्क

  4. 4
    Shubhashish Pandey Says:

    kya baat hai
    bahut he sunder

  5. 5
    neeraj Says:

    आदरनिये महावीर जी
    प्राण साहेब की रचना आप के ब्लॉग पर पढ़ कर सुखद आश्चर्य हुआ. उनकी रचनाएँ सीधे दिल में उतर जाती हैं. उनकी रचना का सबसे परिचय करवाने के लिए अनेकानेक धन्यवाद. वो जितना अच्छा लिखते हैं उतने ही अच्छे इंसान भी हैं.
    “अपने घरों को जाने के क़ाबिल नहीं थे जो
    मैं सोचता हूं कैसे वो औरों के घर गए

    कितनी सरल जबान में कितनी गहरी बात…वाह वा.
    नीरज

  6. 6

    बढ़िया गज़ल …आभार

    रीतेश गुप्ता

  7. 7

    Bahut barhiya gazal hai…Maja aa gaya… Praan ji se milane ke liye dhanyavaad..

  8. 8
    Dwijendra Dwij Says:

    महावीर जी , प्राण साहब

    KHoobsoorat ashaar

    अपने घरों को जाने के क़ाबिल नहीं थे जो
    मैं सोचता हूं कैसे वो औरों के घर गए

    यूं तो किसी भी बात का डर था नहीं हमें
    डरने लगे तो अपने ही साए से डर गए

    आभार


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