सृजन-सम्मान द्वारा आयोजित सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक ब्लॉग पुरस्कारों के लिए चयन समिति के सदस्य श्री रवि रतलामी जी, बालेन्दु दाधीच जी और संयोजक जय प्रकाश मानस जी का यह जटिल कार्य सराहनीय है. यह कार्य और भी कठिन हो जाता है जब प्रविष्टियों के अतिरिक्त सभी अन्य ब्लॉगों को भी सम्मलित किया गया है. दस के स्केल में अंक देने के लिए निर्धारित मापदंडों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से निर्णय देने के लिए निर्णायक मंडल विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं. श्री रवि रतलामी जी ने स्पष्ट किया है की अंक देते समय ब्लॉगों के विषय की गुणवत्ता, सामयिकता, ब्लॉग की निरंतरता, उसके सक्रिय रहने की अवधि, भाषायी शुद्धता और रोचकता, प्रामाणिकता, पोस्टों की विविधता, कुल पोस्टों की संख्या तथा ब्लॉगिंग के प्रति उनके समर्पण और गंभीरता को पैमाना बनाया है, न कि सिर्फ ब्लॉगों की हिट संख्या को. और, इसी वजह से सिर्फ और सिर्फ 152 हिट्स वाला नैनो विज्ञान भी यहाँ पर सूची में स्थान पाने में सफल हुआ है.
इस प्रकार के आयोजन हिन्दी के प्रसार और विविधमुखी विकास में भी सहायक सिद्ध होते हैं. वह दिन दूर नहीं कि हिन्दी ब्लॉगों की बढ़ती हुई संख्या को देख कर पद्म भूषण सर मार्क टली के हृदय को भी एक सांत्वना मिलेगी जिन्होंने एक बार कहा था कि “जो बात मुझे अखरती है वह है भारतीय भाषाओं के ऊपर अंग्रेज़ी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषाओं के ‘भारतीय संस्कृति’ जिंदा नहीं रह सकती।”
विजेता अनूप जी, अजित जी तथा ममता जी को हार्दिक बधाइयाँ.
शीर्ष क्रम पर चयनित २२ ब्लॉगों में से पीले हाई लाईट में दिए हुए ब्लॉग को छोड़ कर अन्य २१ ब्लौगरों को हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित हैं.
http:// sarthi.info 6.5/10
http://hgdp.blogspot.com/ 6.5/10
http://alizakir.blogspot.com/ 6.5/10
http://nirmal-anand.blogspot.com 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://unmukt-hindi.blogspot.com/ 6/10
https://mahavir.wordpress.com 6/10
http://drparveenchopra.blogspot.com/ 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://nahar.wordpress.com/ 6/10
http://subeerin.blogspot.com/ 6/10
http://paramparik.blogspot.com/ 6/10
http://poonammisra.blogspot.com/ 5/10
http://rajdpk.wordpress.com/ 5/10
http://hemjyotsana.wordpress.com/ 5/10
http://antariksh.wordpress.com/ 5/10
http://hivcare.blogspot.com/ 5/10
http://sehatnama.blogspot.com/ 5/10
http://chhoolenaasmaan.blogspot.com/ 5/10
http://vigyan.wordpress.com/ 4/10
http://nanovigyan.wordpress.com/ 3/10
http://parulchaandpukhraajka.blogspot.com/ 3/10
सम्भव है कुछ लोग सोचते हों कि बहुत से स्तरीय ब्लॉग विचारार्थ सम्मलित नहीं हुए, किंतु श्री रवि रतलामी जी ने ‘सृजन-गाथा’ में इसका स्पष्टीकरण कर दिया है.
महावीर शर्मा
sab farce haen wohi dhynaavaad kar rahen haen jo is mae haen aur baar baar is per aalekh de rahen he mamta toh iskae liyae manaa kar chuki hae
जी हाँ, महावीर जी, पहली शर्त ही यही थी कि चिट्ठे महानगरों व तकनीक के जानकारों के चिट्ठे न हों तो इस तरह के चिट्ठों पर प्रारंभ से ही विचार नहीं किया गया था.
निर्णायकों से सूचित किया है कि मेरा ब्लोग http://rajdpk.wordpress.com गलती से रेटिंग में चला गया था क्योंकि इस ब्लोग पर मैंने कुछ खास नहीं लिखा था और जिन पर लिखता हूँ उन पर उनकी नजर ही नहीं गयी है और इसके लिए वह क्षमा याचना कर चुके हैं
मेरे मूल ब्लोग हैं .
http://dpkraj.blogspot.comn
http://deepakbapukahin.wordpress.com
दीपक भारतदीप
निचाषर जी
प्रथम तो मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए मैं आपका स्वागत और धन्यवाद करता हूँ . आपके निजी विचारों का भी आदर करता हूँ.
जहाँ तक आपका यह प्रश्न है कि यह सब स्वांग या नाटक रचाया गया है, इसके लिए यही कहा जा सकता है कि ‘ख्याल अपना अपना’.
यह तो सर्वविदित है कि जब भी कोई ऐसा कार्य किया जाता है जिसमें अवार्ड या नाम की बात होती है, उसमें शत-प्रतिशत लोगों
की संतुष्टि नहीं हो सकती. अत: वादविवाद होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. इस प्रकार के अयोजन में चयन-कर्ताओं को बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. समय देने के कारण घर-बार और जॉब पर असर तो पड़ता ही है, मानसिक स्थिति को भी बनाए रखना, अनेक ब्लॉगों में से गुजरना — यदि इस स्थिति में स्वयं को डाल कर देखें तो अनगिनित परेशानियाँ सामने दिखायी देने लगेंगी. आप इस से सहमत होंगे कि इस कार्य के लिए जिन लोगों ने अपने समय की आहुति दी है, वे धन्यवाद के पात्र तो हैं.
आपने कहा है कि ममता जी तो इसके लिए मना कर चुकीं हैं, यह उनका अपना निजी निर्णय है और उन्हें अपने विचारों को अपने ढंग से व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार है. सन १९५८ में पास्तरनक ने नोबेल प्राईज़ को ठुकरा दिया था. यह बात अलग है कि इससे उसकी ख्याति और भी फैल गई.
एक छोटी सी कहानी है – एक आर्टिस्ट ने एक फूल का चित्र बना कर चौराहे पर रख दिया और साथ ही यह लिखा की इस में
कोई कमी दिखाई दे तो निशान लगा दें. अगले दिन देखा तो उस में इतने निशान लगे हुए थे की मूल चित्र का पता ही नहीं चलता था. उसने एक और नया चित्र बना कर वहीं रख दिया और कहा कि यदि इसमें कोई कमी दिखाई दे तो इसे ठीक करके अनुग्रहीत करें. चित्र में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, वैसा ही रखा रहा.
अत: आलोचकों से सकारत्मक तथा कार्यात्मक सुझाव अधिक लाभदायक सिद्ध होंगे.
आपकी टिप्पणी का आदर करते हुए धन्यवाद देते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता है.
दीपक भारतदीप जी
इस प्रकार के कार्यों में गलती से किसी आवश्यक बात के नजर-अंदाज हो जाने की सम्भावना तो रहती है. वे
क्षमा याचना कर चुके हैं तो अब कुछ कहने को ही नहीं रहता. टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
रवि जी, मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद.
आपको भी शुभकामनाऎं व बधाई.
avshya pade