“ मुहब्बत ” ?
मुहब्बत लफ़्ज़ सुनते ही हर दिल में एक ख़याली बिजली सी कौंध जाती है।
शायरों ने अपने अपने अंदाज़ में मुहब्बत का इज़हार किया है। तो मुलाहज़ा फ़रमाइयेः
बहज़ाद साहब मुहब्बत की पहचान इस अंदाज़ में कराते हैं;
"अश्कों को मिरे लेकर दामन पर ज़रा जांचो,
जम जाये तो ये खूँ है, बह जाये तो पानी है।"
मुहब्बत और मजबूरी का दामन और चोली का साथ है। इस बारे में;
"मजबूरी-ए-मुहब्बत अल्लाह तुझ से समझे,
उनके सितम भी सहकर देनी पड़ी दुआएं।"
आगे वो कहते हैं कि इश्क़ का ख़याल इबादत में भी पीछा नहीं छोड़ताः
"अब इस को कुफ़्र कहूं या कहूं कमाल-ए-इश्क़
नमाज़ में भी तुम्हारा ख़याल होता है?"
मुब्बत की हद्द कहां तक पहुंच जाती हैः
"जान लेने के लिये थोड़ी सी ख़ातिर करदी,
रात मुहं चूम लिया शमा ने परवाने का।"
ग़ालिब का ये शेर तो आपके ज़हन में न जाने कितनी बार गुज़रा होगाः
"इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
अर्श मलसियानी का ये शेर शायद पसंद आयेः
"तवाज़ुन ख़ूब ये इश्क़-ओ-सज़ाए-इश्क़ में देखा,
तबियत एक बार आई, मुसीबत बार बार आई।"
सवाल पैदा होता है कि 'मुहब्बत' है कौन सी बला?
इक़बाल साहब के इस शेर पर ग़ौर कीजियेगाः
"मुहब्बत क्या है? तासीर-ए-मुहब्बत किस को कहते हैं?
तेरा मजबूर कर देना, मेरा मजबूर हो जाना।"
और अदम साहब भी ढूंढते नज़र आते हैं;
"वो आते हैं तो दिल में कुछ कसक मालूम होती है,
मैं डरता हूं कहीं इसको मुहब्बत तो नहीं कहते!"
उन्हें तसल्लीबख़्श जवाब नहीं मिलाः
"ऐ दोस्त मेरे सीने की धड़कन को देखना,
वो चीज़ तो नहीं है,मुहब्बत कहें जिसे!"
कहते हैं कि इश्क़ अंधा होता है, लेकिन इससे भी आगे हैः
"इश्क़ नाज़ुक है बेहद,
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता।"
एक ज़माना था कि इश्क़ के मारों की ज़ुबान पर दाग़ साहब का ये शहर बेसाख़्ता निकल जाता थाः
दिल के आईने में है तसवीर-ए-यार,
जब ज़रा गर्दन झुकाई, देख ली।"
मेरे बांके जवान दोस्तो, इस शेर को ज़रूर याद रखनाः
"मुहब्बत शौक़ से कीजे मगर इक बात कहता हूं,
हर ख़ुश-रंग पत्थर गौहर-ओ-नीलम नहीं होता।"
और ये भी याद रखना जैसा कि इक़बाल साहब ने ताक़ीद की हैः
"ख़ामोश ऐ दिल ! भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा,
अदब पहला क़रीना है मुहब्बत के क़रीनों में।"
आखिर में फ़ैज़ साहब के इस शेर के साथ ख़त्म करता हूं जिसमें मानो सारी कायनात एक तरफ़ और मुहब्बत ???
"और क्या देखने को बाक़ी है,
आपसे दिल लगा के देख लिया!"
महावीर शर्मा
adaab
aap ki khoob surat tehriroN ne ik sadi ko chand satroN mai piro diya be had khush numa likhne per dili mubarik baad qabool kijiye bad qismati sr aaj tak aap ki web site per password nahi khool paaye
kuch QatAat aap ki nazar
mosam se baghawat ka sila aur mile ga
> shakhoN ko abhi zakham,e,hawa aur mile ga
> ik dar par khadhe rehna hai toheen,e gadaee
> aage to badho naam,e,khuda aur mile ga
> ………… ……… ……… ……… ….
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> raat dekha tha jise ye to woh hi chehera hai
> khowaab shamil hai mere khowaab ki taHbeer main kiya?
> es qadar ghour se kiya dekh rahe ho k GUL
> jaan padh jaaye gi aise kisi tasveer maiN kiya?
> ………… ……… ……… ……… ………
> ay zooq,e,safar ghar se nikalna achcha
> lag jaye jo thokhar to samahalna achcha
> ik baat magar apne zehen maiN rakhna
> be saakhiyaaN le kar nahi chalna achcha
>
> guldehelve
>
बहुत अच्छा लगा और मै क्या कहूँ…
शब्द ही साथ नहीं दे रहे…।