

आज गांधी-जयंती पर श्रद्धेय बापू को शत् शत् नमन!
१९६३ में संस्था के कार्य-वश ‘साबरमती आश्रम’ में दो दिवस के लिये रहने का स्वर्णिम शुभ अवसर मिला था। यह कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि जो शांति और आध्यात्मिक अनुभव इन दो दिनों में मिला वह कितने ही विख्यात मंदिरों और तीर्थों में नहीं मिल सका। उस समय कोई उत्सव या पर्व नहीं था तो वातावरण बहुत ही शांतमय और सुखद था।
महात्मा गांधी जब अपने २५ साथियों के साथ दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे तो २५ मई १९१५ को अहमदाबाद में कोचरब स्थान पर ” सत्याग्रह आश्रम ” की स्थापना की गई। दो वर्ष के पश्चात जुलाई १९१७ में आश्रम साबरमती नदी के किनारे पर बनाया गया जो बाद में साबरमती आश्रम के नाम से कहलाता है। यह ३६ एकड़ ऐसी खाली भूमि थी जहां सांपों की भरमार थी किंतु उन्हें मारने की आज्ञा नहीं थी। १९६३ में ४६ वर्ष के बाद भी मैंने स्वयं सांयकाल बाहर घूमते हुए एक छोटे से सर्प को देखा जो मेरी चप्पल के पास से उछलता हुआ गुजर गया। मेरे साथी ने बताया कि यह पद्म-सर्प था जो उछल कर व्यक्ति के माथे तक पहुंच सकता है।
‘सत्याग्रह-आश्रम’ के बाद उसे ‘हरिजन-आश्रम’ का नाम दिया गया। आश्रम के दो उद्देश्य थे – एक तो ‘सत्य’ की खोज और दूसरा अहिंसात्मक कार्य-कर्ताओं का गुट तैयार करना। ये लोग देश की स्वतंत्रता के लिये अहिंसा-प्रणाली का अनुसरण करते हुए कार्यान्वित रहे।
महात्मा गांधी जी ने १२ मार्च १९३० को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च आरम्भ किया था। २४१ मील की दूरी करके ५ अप्रैल १९३० को दांडी पहुंचे और अगले दिन नमक-क़ानून तोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ दिया। जनता में एक नया जोश उमड़ गया।
बापू जी ने आश्रम में १९१५ से १९३३ तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी “ह्रदय-कुञ्ज” कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहां उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं। ‘ह्रदय-कुञ्ज’ के दाईं ओर ‘नन्दिनी’ है। यह इस समय ‘अतिथि-कक्ष’ है जहां देश और विदेश से आए हुए अतिथि ठहराए जाते थे। वहीं ‘विनोबा कुटीर’ है जहां आचार्य विनोबा भावे ठहरे थे। गांधी जी की अनन्य अनुयायी और शिष्या मीरा बहन जो एक ब्रिटिश एडमिरल की पुत्री थी, उस के नाम पर ‘मीरा कुटीर’ भी कहलाई जाती है।
‘ह्रदय कुञ्ज’ और ‘मगन कुटीर’ के मध्य का खुला स्थान ‘उपासना मंदिर’ था। ‘मगन कुटीर’ में आश्रम के प्रबंधक श्री मगन लाल गांधी रहा करते थे। ‘उपासना मंदिर’ में प्रार्थना के बाद प्रश्न – उत्तर के लिये समय दिया जाता था।
१० मई १९६३ में प. जवाहर लाल नेहरू जी द्वारा ‘आश्रम में ‘गांधी संग्रहालय’ का प्रतिष्ठापन किया गया। इसमें ५ कक्ष, पुस्तकालय, २ फ़ोटो गैलरी और श्रोत-कक्ष (आडिटोरियम) हैं। ‘माई लाईफ़ इज़ माई मैसेज’ गांधी जी के जीवन पर एक प्रदर्शनी आयोजित है। एक पुरा-अभिलेखागार (archive) स्थापित किया गया है जिसमें गांधी जी के ३४०६६ पत्र, ८६३३ हस्तलिखित लेख, ६३६७ फ़ोटो के नेगिटिव, उनके लिखित लेखों की माइक्रोफ़िल्म की १३४ रीलों में सुरक्षित हैं। गांधी जी की स्वतंत्रता-संग्राम की फ़िल्में हैं। पुस्तकालय में ३०,००० पुस्तकें, गांधी जी को भेजे हुए १५५ पत्र और अन्य वस्तुएं जैसे सिक्के, डाक-टिकट आदि हैं। पुस्तकों की संख्या समयानुसार बढ़ती रहती ही होगी। इस संग्रहालय में २०’ x २०’ के ५४ कक्ष हैं। सभा-मंडप और श्रोता-कक्ष का उपयोग फ़िल्में और विडियो देखने के लिये होता है। संग्रहालय प्रातः ८ बजे से सांय ७ बजे तक खुला रहता है।
आज मस्तिष्क सोचने को बाध्य हो जाता है कि बापू के आदर्शों का आज के युग में क्या स्थान है। उनके भारत का स्वप्न आज की राजनीतिक भ्रष्टाचारिक व्यवस्था , स्वार्थपरायण हिंसात्मक प्रणाली, जातिवाद में स्वप्नावस्था में ही लुप्त हो गया।
कितनी विडम्बना है!
जय भारत!
महावीर शर्मा
पताः साबरमती आश्रम, गांधी स्मारक संग्रहालय, गांधी आश्रम,
अहमदाबाद – ३८०००२७, भारत।
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