इन्तज़ार! (उर्दू में एक बेतुकी कविता)
शब गुज़र ना जाये, है इन्तज़ार–ए-यार का
बस शौक़ है हमें तो दीदारे-यार का।
मन्ज़र जुदाईयों का देखा गया ना हम से
छुटता नहीं है दामन, अब ख्याले-यार का।
गोशाये-तन्हाई में तारीकी हर समत
दीदार होगा कैसे तस्वीरे-यार का।
डर है कहीं छीन ले अख्त्यारे-तसव्वर
तसव्वर ही है सहारा दिले-दाग़दार का।
तूफ़ान से तो लड़ने में लुत्फ़ ही और है
ले कर सहारा बह चले विसाले-यार का।
देखा है एक बारगी जलवाये-हुस्न-यार
भूलेगा न नज़ारा कूचाये-यार का।
ग़ैरों की बात का एतबार क्या करें
अब तो भरोसा ना रहा वफ़ाये-यार का।
इस लड़खड़ाती ज़िन्दगानी के सफ़र में
मिल जाये किसी मोड़ पर जलवाये-यार का।
ज़िन्दगी की शाम पर मिल जाये एक बार
रूह करेगी शुक्रिया अहसाने-यार का।।
महावीर शर्मा